टेस्ट कितने प्रकार के होते हैं?
मेडिकल में कई प्रकार के टेस्ट मौजूद है और डॉक्टर आपको आपकी स्थिति के अनुसार कभी-कभी एक से अधिक टेस्ट करवाने को भी कह सकते हैं। हालांकि, विस्तृत तौर पर टेस्टों को निम्न प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है -
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बॉडी फ्लूइड एनालिसिस - कई टेस्टों में शरीर के द्रवों की जांच करनी पड़ती है। जिन द्रवों की जांच की जाती है उनमें रक्त, यूरिन, बलगम, पसीना, साइनोवियल द्रव (जोड़ों में मौजूद द्रव) और इंटरस्टीशियल द्रव (शरीर की कोशिकाओं के बीच में मौजूद द्रव) जैसे सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (सीएसएफ) जो कि आपके मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड के बीच में मौजूद होता है, प्लयूरल फ्लूइड (छाती में मौजूद द्रव), एस्कीटिक फ्लूइड (जो आपके पेट में मौजूद होता है)।
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एक ब्लड सैंपल के लिए फिंगर प्रिक, वेनिपंक्चर या हील (एड़ी) प्रिक की जरूरत होती है। यूरिन सैंपल के लिए मरीज को एक कीटाणुरहित कंटेनर दिया जाता है। अन्य द्रव आमतौर पर उस विशेष भाग में सुई लगाकर लिए जाते हैं उदाहरण के तौर पर सीएसएफ का सैंपल लेने के लिए स्पाइनल टैप किया जाता है। इस प्रक्रिया में एक खोखली सुई को दो कशेरुकाओं के अंदर डालकर सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड लिया जाता है।
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पैथोलोजिकल टेस्ट के लिए आमतौर पर शरीर के द्रवों की जांच की जाती है जैसे इन द्रवों के तत्वों में असामान्यता, कैंसर कारक कोशिकाओं की मौजूदगी, संक्रमणकारी सूक्ष्मजीव या कुछ विशेष सूक्ष्मजीवों के विरोध में बने एंटीबॉडीज (सेरोलॉजिकल टेस्ट)। किसी व्यक्ति के शरीर में दवा की थेरेप्यूटिक रेंज का पता लगाने के लिए भी ब्लड व यूरिन के सैंपल की जांच की जाती है।
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जेनेटिक टेस्टिंग - जेनेटिक टेस्टिंग से डीएनए, क्रोमोसोम या प्रोटीन में मौजूद असामान्यताओं के बारे में पता लगाने में मदद मिलती है। इससे यह जांचने में मदद मिलती है कि किसी व्यक्ति के शरीर में जेनेटिक स्थितियां मौजूद हैं या फिर विकसित हो सकती हैं। यह टेस्ट शरीर के द्रवों या ऊतकों पर जीन का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। इस टेस्ट की मदद से जेनेटिक अनुक्रम में बदलाव और कुछ विशेष प्रोटीन में उत्पादन की जांच भी की जाती है, ताकि डीएनए के खिंचाव की क्रिया का पता लगाया जा सके। जेनेटिक टेस्टिंग प्रक्रियाएं जैसे एमनियोसेंटेसिस और क्रोनिक विल्लस सैंपलिंग गर्भावस्था के दौरान शिशु में जन्मजात विकार का पता लगाने के लिए किए जाते हैं। इसके साथ ही जेनेटिक टेस्टिंग की मदद से ब्रेस्ट कैंसर के कुछ विशेष प्रकारों और कोलोरेक्टल कैंसर का शुरुआती अवस्था में पता लगाया जा सकता है। इससे इन कैंसर के ट्रीटमेंट पर नजर रखने और उसे तैयार करने में भी मदद मिलती है।
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शरीर की कार्य प्रक्रिया की जांच - ये टेस्ट शरीर के किसी विशेष अंग की कार्य प्रक्रिया का पता लगाते हैं कि वह अंग किस तरह से कार्य कर रहा है, इसमें ईसीजी व ईईजी टेस्ट शामिल हैं। ये टेस्ट आपके हृदय और मस्तिष्क के कार्यों की जांच करते हैं साथ ही ये लिवर, किडनी और लंग फंक्शन के साथ किए जाते हैं।
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इमेजिंग टेस्ट - इमेजिंग टेस्ट में कोई चीरा नहीं लगाया जाता है, इसमें शरीर के आंतरिक अंगों की तस्वीर को स्क्रीन पर देखकर जांचा जाता है। कुछ सामान्य इमेजिंग टेस्ट निम्न हैं -
एक्स रे - इस टेस्ट में व्यक्ति को एक्स रे मशीन के सामने खड़ा रहने, लेटने या फिर बैठने के लिए कहा जाता है। एक्स-रे ऐसी रेडिएशन होती हैं, जिनको देखा और छुआ नहीं जा सकता है इसलिए ये पूरे शरीर से निकल सकती हैं। चूंकि वे मानव शरीर से निकलती हैं, इसलिए एक्स रे की कुछ मात्रा बड़े घनत्व वाले ऊतकों से अवशोषित कर ली जाती हैं (जैसे हड्डियां) वहीं नरम ऊतक वाले अंग इन किरणों को अवशोषित नहीं कर पाते हैं। बाकि बचा हुआ भाग मरीज के दूसरी तरफ रखे हुए डिटेक्टर में देखा जा सकता है, जो कि बाद में उस विशेष अंग की तस्वीरें निकालने में मदद करता है, जिसकी जांच की जानी है। ऐसे में जब एक्स रे में हड्डियां सफ़ेद नज़र आएगी तो फेफड़े काले दिखाई देंगे।
एक्स रे का प्रयोग हड्डियों व नरम ऊतकों दोनों को देखने के लिए किया जा सकता है। साथ ही यह दांतों और हड्डियों की जांच व चोट, फेफड़ों की समस्याएं, स्तन कैंसर (एक्स रे मैमोग्राम) की जांच करने के लिए भी किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति के शरीर में कोई धातु चली जाती है जैसे सिक्के आदि तो इनकी उपस्थिति का पता लगाने में भी एक्स रे मदद करते हैं। एक्स रे से सर्जिकल प्रक्रिया को दिशा देने में भी मदद मिलती है, जैसे हड्डियों के जोड़ों में ठीक स्थान पर मेटल इम्प्लांट और कोरोनरी एंजियोप्लास्टी में बैलून को सही रक्त वाहिका में लगाने में सहायता मिलती है।
अल्ट्रासाउंड - अल्ट्रासाउंड टेस्ट एक छोटे प्रोब की मदद से मरीज के शरीर के विशेष भाग में ध्वनि तरंगें भेजता है। ये तरंगें शरीर के ऊतकों को छूती हैं और वापस प्रोब तक आती हैं जिससे कंप्यूटर को विशेष जानकारी प्राप्त होती है और जांच किए जा रहे भाग की तस्वीर बनाने में मदद मिलती है। तस्वीरों को तुरंत भी देखा जा सकता है साथ ही बाद में परीक्षण के लिए जांचा भी जा सकता है। अल्ट्रासाउंड, एक्स रे की तुलना में काफी सुरक्षित होते हैं, क्योंकि उनमें रेडिएशन से कोई संपर्क नहीं होता है। साथ ही ये टेस्ट शरीर में हो रहे रियल टाइम बदलावों को देखने में मदद करते हैं जैसे गर्भ में शिशु की गति और किसी रक्त वाहिका में रक्त का प्रवाह जो कि डॉप्लर अल्ट्रासाउंड में जांचा जाता है।
जिस स्थिति की जांच की जानी है, उसके ऊपर निर्भर करते हुए प्रोब को या तो शरीर के ऊपर से प्रयोग किया जाता है (एक्सटर्नल अल्ट्रासाउंड) या फिर शरीर के अंदर डाला जाता है (इंटरनल अल्ट्रासाउंड)। एंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड वो है जिसमे प्रोब को एंडोस्कोप के अंतिम सिरे से लगाया जाता है और मरीज के शरीर में डाला जाता है, ताकि तस्वीर ली जा सके।
अल्ट्रासाउंड शरीर के किसी अंग के ढांचे और कार्यों की जांच करने के लिए भी प्रयोग में लाया जा सकता है। डॉक्टर आमतौर पर अल्ट्रासाउंड की सलाह रसौली, पथरी, गांठ, ट्यूमर और शरीर में सिस्ट होने की स्थिति में देते हैं। हाई-इंटेंसिटी फॉकस्ड अल्ट्रासाउंड थेराप्यूटिक अल्ट्रासाउंड का एक प्रकार है, जिसमें बहुत उच्च घनत्व की ध्वनि किरणों के प्रयोग से हीट बनती है और रक्त के थक्के साफ हो जाते हैं। इनका प्रयोग गर्भाश्य में रसौली और ट्यूमर को ठीक करने के लिए भी किया जाता है।
एमआरआई - मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग या एमआरआई स्कैन मैग्नेटिक फील्ड और रेडियो तरंगों का प्रयोग करके शरीर के आंतरिक ढांचे की तस्वीर निकालता है। एमआरआई मशीन एक सुरंग की तरह होती है, व्यक्ति एमआरआई टेबल पर लेटता है, जो कि सुरंग के अंदर चली जाती है। स्कैन के दौरान मशीन बहुत सारा शोर पैदा करती है और मरीज को आवाज बंद करने के लिए हेडफ़ोन दिए जाते हैं। डॉक्टर अन्य कमरे में होते हैं, लेकिन मरीज इंटर कॉम के जरिये उनसे बात कर सकता है।
जो मरीज क्लॉस्ट्रोफोबिक (बंद जगहों से डरने वाले) होते हैं उनके लिए कुछ स्थानों पर रीक्लाइंड ओपन और स्टैंडिंग एमआरआई भी किया जाता है। जहां पर मरीज को एमआरआई मशीन में या तो बैठने या लेटने को कहा जाता है। एमआरआई स्कैन का प्रयोग शरीर के किसी भी भाग जैसे हड्डियों, जोड़ों और नरम ऊतकों को देखने के लिए किया जा सकता है। इस इमेजिंग टेस्ट से मस्तिष्क की रियल टाइम कार्य प्रक्रिया की जांच भी की जा सकती है।
सिटी स्कैन - कम्प्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन में भी शरीर के आंतरिक अंगों की तस्वीर निकालने के लिए एक्स रे रेडिएशन का प्रयोग किया जाता है। हालांकि, सिटी स्कैन मशीन में एक विशेष स्कैनर होता है जो कि स्कैन के दौरान और मरीज के शरीर की टोमोग्राफिक इमेज निकालने के दौरान शरीर के चारों तरफ घूमता है। इस मशीन से जुड़ा कम्प्यूटर इन सभी तस्वीरों को इकट्ठा करके एक पूरी 3-डी तस्वीर बनाता है।
इसीलिए सामान्य एक्स रे की तुलना में सिटी स्कैन से मिली तस्वीरें ज्यादा विस्तृत होती हैं। साथ ही सिटी स्कैन शरीर के किसी भी भाग को देखने में मदद कर सकता है। यहां तक कि इसकी मदद से शरीर के नरम ऊतक भी देखे जा सकते हैं। ऐसी कुछ चीज़ें जिन्हें देखने में सिटी स्कैन मदद करता है, उनमें मुख्य रूप से चोट, ट्यूमर, रक्त का प्रवाह, स्ट्रोक और निमोनिया व एम्फसीमा जैसी स्थितियां शामिल हैं।
कंट्रास्ट और नॉन कंट्रास्ट इमेजिंग टेस्ट - कभी-कभी इमेजिंग टेस्ट करवाने से पहले मरीज के शरीर में कंट्रास्ट डाई डाली जाती है या फिर उसे खाने के लिए दिया जाता है। ये डाई उन ऊतकों द्वारा अवशोषित कर ली जाती है, जिनकी जांच होनी होती है जो कि बाद में आसपास के ऊतकों से थोड़े भिन्न नजर आते हैं। टेस्ट के बाद डाई धीरे-धीरे शरीर से निकलने लगती है।
पीईटी स्कैन - पॉज़िट्रान एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) स्कैन में व्यक्ति के शरीर में रेडियोएक्टिव ट्रेसर डाला जाता है। यह व्यक्ति को इंजेक्शन द्वारा, दवा के रूप में निगल कर दिया जा सकता है। यह ट्रेसर ऊतकों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है और शरीर के अंदर गामा किरणें उत्सर्जित करता है। पीईटी स्कैन मशीन, सिटी स्कैन मशीन की तरह दिखाई देता है और इन ऊतकों द्वारा उत्सर्जित की गई रेडिएशन को उठा लिया जाता है और उस विशेष ऊतक की तस्वीर को स्क्रीन पर दिखाया जाता है। पीईटी स्कैन सिटी स्कैन और एमआरआई से बहुत अधिक संवेदनशील होता है क्योंकि यह कोशिकाओं तक की जानकारी देता है। पीईटी स्कैन आमतौर पर कैंसर के परीक्षण, स्क्रीनिंग और कैंसर के किसी विशेष ट्रीटमेंट पर नजर रखने के लिए किया जाता है। साथ ही यह पार्किंसन रोग, मिर्गी और कोरोनरी आर्टरी रोग के परीक्षण करने के लिए भी किया जाता है।
बायोप्सी - बायोप्सी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें शरीर के अंदर हल्का-सा चीरा लगाकर ऊतकों के सैंपल लिए जाते हैं। इन सैंपल की जांच फिर सूक्ष्मदर्शी की मदद से की जाती है। ऊतक का सैंपल लेने के लिए ऊतक में हल्का सा छेद किया जाता है, जो कि स्किन बायोप्सी की तरह होता है। एंडोस्कोप या एक सुई की मदद से यह काम किया जाता है। बायोप्सी से रोग का परीक्षण करने व रोग पर नजर रखने में मदद मिलती है। इनमें कैंसर, इंफ्लेमेटरी रोग, संक्रमण और त्वचा के रोग शामिल हैं।
साइटोलॉजी टेस्ट - साइटोलॉजी टेस्ट एक तरह के पैथोलॉजी टेस्ट होते हैं, जो कि कोशिकाओं के सैंपल को पढ़ने के लिए किए जाते हैं। इसमें या तो एक कोशिका या फिर कई सारी कोशिकाओं पर अध्ययन किया जाता है। यह टेस्ट शरीर के किसी भी द्रव या ऊतक के सैंपल पर किया जा सकता है। साइटोलॉजी टेस्ट के लिए ऊतक के सैंपल को स्क्रेप्पिंग, ब्रशिंग या फाइन नीडल एस्पिरेशन प्रक्रियाओं द्वारा लिया जाता है। फाइन नीडल एस्पिरेशन में एक पतली सुई को शरीर में लगाकर द्रवों को टेस्टिंग के लिए निकाला जाता है।
एंडोस्कोपी - इमेजिंग प्रक्रियाओं की तरह एंडोस्कोपी भी शरीर के आंतरिक अंगों की जांच करने के लिए की जाती है। इस प्रक्रिया में एक लचीली रॉड को शरीर में डाला जाता है, इसके सिरे पर कैमरा और लाइट लगी होती है। यह शरीर में किसी भी छिद्र जैसे नाक, मुंह, यूरेथ्रा या योनि द्वारा डाली जा सकती है। जैसे ही रॉड अंदर जाती है डॉक्टर को मरीज के आंतरिक अंग स्क्रीन पर नजर आने लगते हैं। कभी-कभी एंडोस्कोप को डालने के लिए एक छोटा सा चीरा भी लगाया जा सकता है उदाहरण के तौर पर इनमें लेप्रोस्कोपी (एब्डोमिनल कैविटी को देखने के लिए) और थोरकोस्कोपी (फेफड़ों और उनकी बाहरी परत को देखने के लिए)।
माइक्रोबायोलॉजी टेस्ट - माइक्रोबायोलॉजी टेस्ट वे होते हैं, जो पैथोलॉजी टेस्ट के साथ बाहरी सूक्ष्मजीवों की पहचान करने के लिए किए जाते हैं और इनकी मदद से यह देखा जाता है कि पहचाने गए सूक्ष्मजीवों के खिलाफ कौन से एंटीबायोटिक्स ठीक तरह से कार्य करेंगे। माइक्रोबायोलॉजी टेस्ट शरीर के किसी भी द्रव पर किए जा सकते हैं जैसे रक्त, बलगम, लार, यूरिन और सीएफएफ या फिर ऊतकों के सैंपल पर भी ये किए जा सकते हैं। सैंपल को एक विशेष कल्चर प्लेट पर फैलाया जाता है और एक विशेष तापमान पर सूक्ष्म जीवों को बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। बैक्टीरिया को बढ़ने में एक से दो दिन का समय लगता है और वहीं फंगी को बढ़ने में 5-7 दिनों का समय लग सकता है। इसके बाद इन माइक्रोब्स को स्टेन या अभिरंजित किया जाता है और पहचान करने के लिए माइक्रोस्कोप में देखा जाता है। मिले हुए सूक्ष्मजीव पर कौन सी एंटीबायोटिक सबसे प्रभावकारी तरह से काम करेगी यह जानने के लिए माइक्रोब को एक पेट्री प्लेट पर रखा जाता है, जिस पर या तो एंटीबायोटिक होता है या फिर उस एंटीबायोटिक की डिस्क रखी जाती है। जो एंटीबायोटिक सूक्ष्मजीव को बढ़ने से रोकता है उसे ट्रीटमेंट के लिए चुना जाता है।