9 महीने के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार आपके जिगर का टुकड़ा, आपका शिशु आपकी गोद में आ गया और आपके पैंरटहुड की शुरुआत हो गई है। अपने बच्चे के स्वागत को लेकर आप बेहद उत्साहित होंगे और जल्द ही अपने नवजात शिशु के साथ टाइम इंजॉय करने लग जाएंगे। लेकिन आपको यह समझना होगा कि अपने शिशु के जन्म के शुरुआती कुछ घंटे, कुछ दिन, कुछ हफ्ते और कुछ महीने आपको पूरी तरह से व्यस्त रखने वाले होंगे और इस दौरान आपको बहुत सारा काम करना होगा। आपको ऐसा भी महसूस हो सकता है कि इतनी सारी केयर की वजह से आपका शिशु बहुत तेज गति से बढ़ रहा है, खासकर तब जब आप नए पैरंट्स हों।
आपने प्रेगनेंसी के दौरान नवजात शिशु से जुड़ी क्लासेज ली हों या नहीं, जमीनी हकीकत यही है कि शिशु के जन्म के बाद आपको उसकी जरूरतों को पूरा करना होगा, उसका पेट भरना होगा, उसकी साफ-सफाई करनी होगी, उसे सुलाना होगा और हर वक्त शिशु का ध्यान रखना होगा। लिहाजा बेहद जरूरी है कि आप अपने शिशु के आगमन को लेकर तैयार रहें।
जन्म के बाद पहले घंटे में शिशु और मां के बीच स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट होना जरूरी है इसलिए आवश्यक है कि आप डॉक्टर से कहें कि वह आपको अपने शिशु के साथ ही रखें। इस समय से ही आपको यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि शिशु को संभालने की जिम्मेदारी अकेले मां की नहीं है बल्कि पिता की भी उतनी ही है। नए पैरंट्स को एक्स्ट्रा सपोर्ट की भी जरूरत होती है। ऐसे में अगर आप पेड नर्स (नैनी) का खर्च नहीं उठा सकते तो आपके लिए जरूरी होगा कि आप शिशु के दादा-दादी या नाना-नानी (ग्रैंड पैरंट्स) या फिर किसी रिश्तेदार की मदद लें। लिहाजा मां और शिशु जब प्रसव के बाद अस्पताल में हैं तभी आपको कुछ जरूरी मूलभूत चीजों के बारे में सीख लेना होगा।
अस्पताल में मौजूद नर्स आपको यह सिखा सकती हैं कि आखिर शिशु जन्म के बाद शुरुआती 24 घंटे में क्यों रोते हैं, शिशु को सही तरीके से गोद में कैसे उठाना है और शिशु को ब्रेस्टफीड कराते वक्त अपने ब्रेस्ट से कैसे जोड़ना है (लैचिंग)। शिशु के जन्म के तुरंत बाद किसी पीडियाट्रिशन से भी जुड़ना अच्छा रहेगा ताकि अगर आपको परामर्श की जरूरत हो या कोई आपातकालीन स्थिति हो जाए तो आप शिशु को डॉक्टर के पास ले जाएं। अब बारी है टीकाकरण की तो जन्म के बाद आपके शिशु को अस्पताल में ही हेपेटाइटिस बी और बीसीजी का बर्थ शॉर्ट दिया जाएगा ताकि उसे हेपेटाइटिस और टीबी जैसी बीमारियों से सुरक्षित रखा जा सके। अस्पताल में मौजूद मेडिकल स्टाफ कई दूसरे मेट्रिक्स के साथ-साथ शिशु की त्वचा का रंग-रूप, आकार और मांसपेशियों की रंगत भी देखते हैं ताकि शिशु के अपगार स्कोर में उसे शामिल किया जा सके।
शिशु की साफ-सफाई कैसे करनी है और उसे दूध कब और किस तरह से पिलाना है, इसके साथ-साथ माता-पिता को इस बात पर भी नजर रखनी चाहिए कि शिशु में किसी छोटी-मोटी या गंभीर बीमारी के लक्षण तो नजर नहीं आ रहे। आपको पता होना चाहिए कि शिशु के शरीर का तापमान कैसे नापना है, अगर शिशु को बुखार हो या पेट खराब हो तो क्या करना है और अगर शिशु ज्यादा रो रहा हो तो उसे चुप कैसे कराना है। इन सबके अतिरिक्त आपको आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) जैसी गंभीर जटिलताओं के बारे में भी पता होना चाहिए क्योंकि जब तक शिशु 12 से 18 महीने का नहीं हो जाता तब तक sids का खतरा बना रहता है।
ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि अपने शिशु को अस्पताल से घर लाने के बाद उसे संभालने और सही तरीके से उसका पालन-पोषण करने का तरीका क्या है:
शिशु को दूध पिलाना और डकार दिलवाना - Baby ko doodh pilana aur dakar dilana
अमेरिकन अकैडमी ऑफ पीडियाट्रिशन्स (AAP) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की मानें तो शिशु के जन्म के बाद शुरुआती 6 महीने तक उसे सिर्फ मां का दूध ही पिलाना चाहिए। शिशु को मां का दूध पिलाना मां और शिशु दोनों के लिए कई तरह से फायदेमंद है। इसलिए बेहद जरूरी है कि नई मां, शिशु को ब्रेस्टफीडिंग करवाएं लेकिन अगर आप ह्यूमन इम्यूनोडिफिशियेंसी वायरस (एचआईवी) से संक्रमित हैं तो शिशु को दूध न पिलाएं। इसके अलावा अगर शिशु को ब्रेस्ट से जोड़ने में दिक्कत आ रही हो या अगर आप पूरी तरह से ब्रेस्टफीड न करवाना चाहती हों तो।
इस तरह के मामलों में आमतौर पर शिशु को बोतल से फॉर्मूला मिल्क पिलाया जाता है लेकिन आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि फॉर्मूला मिल्क गाय के दूध से बनता है जिसमें वे खूबियां और एंटीबॉडीज नहीं होतीं जो मां के ब्रेस्ट मिल्क में होती हैं। ये एंटीबॉडीज शिशु के लिए जरूरी होती हैं क्योंकि यह शिशु के लिए पोषण का अहम स्त्रोत होने के साथ-साथ कई तरह की बीमारियों से भी शिशु की रक्षा करती हैं। जब तक शिशु को सभी तरह के टीके न लग जाएं, ब्रेस्ट मिल्क में मौजूद एंटीबॉडीज शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने और बीमारियों से सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।
आप शिशु को ब्रेस्टफीडिंग करवा रही हों या फिर बोतल से दूध पिला रही हों आपको निम्नलिखित बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए:
- शिशु को उसकी जरूरत और मांग के हिसाब से दूध पिलाते रहें। शिशु को जब भूख लगती है तो वे कई तरह के संकेत देते हैं जैसे- रोना, आवाजें निकालना, अपना अंगूठा या उंगलियां चूसना आदि।
- नवजात शिशु को वैसे भी हर 2-3 घंटे में दूध पिलाने की जरूरत पड़ती है। जैसे-जैसे शिशु बड़े होने लगते हैं उन्हें दूध पिलाने का समय और दूध पिलाने की मात्रा बढ़ती जाती है लेकिन कितनी बार दूध पिलाना है इसकी संख्या कम होती जाती है।
- शिशु को ब्रेस्ट से जोड़ने से पहले सही तरीके से शिशु को उठाएं, गोद में लें या फिर लिटाकर रखें। शुरुआत में हो सकता है कि आपको ये सब सीखने में कुछ समय लगे लेकिन फिर आप धीरे-धीरे ये सब सीख जाएंगी और आपका शिशु भी आसानी से अडजस्ट कर लेगा।
- अगर आप शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराती हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि शिशु को दोनों ब्रेस्ट से दूध पिलाएं। अगर आप ऐसा नहीं करेंगी तो आपके ब्रेस्ट में सूजन हो सकती है, ब्रेस्ट में दर्द हो सकता है, निप्पल में दर्द हो सकता है और कई दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं।
- इस बात का ध्यान रखें कि आपका शिशु भरपूर दूध पिए। शिशु को दूध पिलाने से पहले आपका ब्रेस्ट भरा हुआ होना चाहिए और दूध पिलाने के बाद खाली महसूस होना चाहिए। अगर आप शिशु को बोतल से दूध पिला रही हैं तो शिशु पूरा दूध खत्म रहा है या नहीं यह जानना आसान है क्योंकि बोतल पर मेजर्मेंट बना होता है।
- अगर आपका शिशु दूध पीने में दिलचस्पी न दिखाए तो तुरंत अपने शिशु के डॉक्टर पीडियाट्रिशन से संपर्क करें।
शिशु अगर दूध पीते वक्त हवा भी अंदर ले लेते हैं इसलिए उन्हें दूध पिलाने के बाद या एक ब्रेस्ट से दूसरे ब्रेस्ट में ले जाने से पहले डकार दिलाना भी जरूरी है। अगर दूध पिलाने के दौरान शिशु को डकार दिलाने की जरूरत हो तो शिशु खुद ही इसका संकेत देने लगता है जैसे- मुंह से दूध निकालना, गैस पास करना, चिड़चिड़ापन दिखाना आदि।
शिशु को डकार दिलवाने के लिए इन टिप्स को अपनाएं:
- शिशु के सिर और गर्दन को सपोर्ट देते हुए शिशु को सीधा खड़ा रखें।
- आप शिशु को अपनी छाती से लगाकर, अपनी गोदी में या फिर घुटने पर सीधा रख सकती हैं।
- इसके बाद शिशु की पीठ पर आराम से थपकी दें।
- अगर शिशु इस दौरान सही तरीके से डकार न ले रहा हो तो उसकी पोजिशन को बदल दें।
- शिशु को लेकर हिलने वाली रॉकिंग चेयर पर बैठने से भी डकार आने में मदद मिलती है।
- अगर आपका शिशु बहुत ज्यादा दूध निकालता हो तो डॉक्टर से मिलकर बात करें कि कहीं आपके शिशु को इंस्टेंट रिफ्लक्स की समस्या तो नहीं।
अपने रोते हुए शिशु को चुप कराना - Baby ko chup karana
अपने नवजात शिशु के साथ इंजॉय करने का सबसे अच्छा तरीका है शिशु के साथ अपनी बॉन्डिंग यानी जुड़ाव को बढ़ाना। यह बॉन्डिंग इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इससे शिशु का विकास होता है और माता-पिता के प्रति शिशु का प्यार और लगाव भी बढ़ता है। स्किन-टू-स्किन टच, बाहों के झूले में शिशु को झुलाना, उससे बात करना, शिशु को गाना सुनाना, ब्रेस्टफीडिंग करवाना- इन सभी तरीकों से माता-पिता शिशु के साथ अपने जुड़ाव को बढ़ा सकते हैं। बेहद जरूरी है कि यह भावनात्मक जुड़ाव सिर्फ मां और बच्चे तक सीमित न रहे बल्कि पिता और शिशु के बीच भी बॉन्डिंग होना उतना ही जरूरी है।
इस भावनात्मक जुड़ाव की मदद से जब भी शिशु परेशान हो, रो रहा हो, भूखा हो, गुस्से में हो, डरा हुआ हो या बेचैन हो तो उसे शांत किया जा सकता है। हम आपको कुछ टिप्स के बारे में बता रहे हैं जिसकी मदद से जब भी शिशु रो रहा हो तो आप उसे चुप करा सकती हैं:
- शिशु को अच्छी तरह से कपड़े में लपेट दें। ऐसा करने से शिशु को सुरक्षित महसूस होता है।
- अपनी गोद में लेकर शिशु को हल्के से हिलाए-डुलाएं या बाहों के झुले में झुलाएं।
- शिशु के लिए कोई अच्छे रिदम वाला गाना गाएं, इससे भी शिशु चुप हो सकता है।
- पंखा चला दें, वैक्यूम क्लीनर या कोई ऐसी मशीन जिसकी आवाज धीमी हो लेकिन वह निरंतर आवाज करे।
- शिशु के पैर, हाथ, पीठ या छाती पर हल्के हाथों से मसाज करें।
इस बात का पता कैसे लगाएं कि आपका शिशु स्वस्थ है? - Baby healthy hai iska pata kaise lagaye?
अपने शिशु के विकास और स्वास्थ्य पर नजर रखना बेहद जरूरी है। चूंकि आपका शिशु आपसे सीधे तौर पर बात कर अपनी जरूरतें नहीं बता सकता इसलिए अगर शिशु को सेहत से जुड़ी कोई समस्या होगी तो उसके लक्षण शिशु के शरीर पर दिखेंगे। आपको सतर्क रहना होगा ताकि आपका शिशु हमेशा स्वस्थ रहे और उसका विकास सही तरीके से हो। अपने बच्चे की सेहत को लेकर इन बातों का ध्यान जरूर रखें:
टीकाकरण: ध्यान रहे कि आपके शिशु को उसके सभी जरूरी टीके समय पर लगें। ऐसा करने से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि आपके शिशु को कोई गंभीर बीमारी नहीं होगी। सबसे पहले टीके की शुरुआत हेपेटाइटिस बी वैक्सीन से होती है जो जन्म के 24 घंटे के अंदर दिया जाता है। इसके बाद रोटावायरस, काली खांसी, डिप्थीरिया, टेटनस, पोलियो और न्यूमोकॉकल टीका के 3 राउंड (जिसे आमतौर पर दूसरे महीने में, चौथे महीने में और छठे महीने में) दिए जाते हैं। फ्लू, चिकन पॉक्स, मीजल्स, मम्प्स, रूबेला, हेपेटाइटिस ए आदि के टीके जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है उसे दिए जाते हैं।
डॉक्टर का चेकअप: अपने पीडियाट्रिशन के पास जाकर शिशु का रेग्युलर बेसिस पर चेकअप करवाना न भूलें। भले ही आप फोन पर डॉक्टर के साथ संपर्क में रहें, उसके बावजूद डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि डॉक्टर द्वारा शिशु का शारीरिक चेकअप किया जाना बेहद जरूरी है ताकि पता चल सके कि शिशु के अंदर सबकुछ ठीक है या नहीं। जन्म से लेकर 6 महीने तक इस तरह के चेकअप के लिए बार-बार जाने की जरूरत पड़ती है।
शिशु के माइलस्टोन की डायरी: बहुत से अस्पताल शिशु के जन्म पर न्यू पैरंट्स को एक माइलस्टोन डायरी देते हैं। लेकिन अगर आपको ऐसी कोई डायरी नहीं मिली तब भी यह जरूरी है कि आप अपने शिशु के शुरुआती 12 या 18 महीनों के विकास से जुड़ी बातें इस डायरी में नोट करें। ऐसा करने से आपको यह पता चलेगा कि आपके शिशु का विकास सही तरीके से हो रहा है या नहीं खासकर शिशु का वजन, शिशु की हाइट, संज्ञानात्मक विकास और मोटर स्किल्स से जुड़े माइलस्टोन्स।
चिकित्सीय जरूरतें: बहुत सी ऐसी दवाइयां और मेडिकल टूल्स हैं जिन्हें शिशु के लिए सुरक्षित माना जाता है। इन दवाइयों को खरीदकर रखने से पहले अपने डॉक्टर से एक बार बात जरूर कर लें। इन दवाइयों और उपकरणों को हमेशा अपने पास रखें जैसे:
- डिजिटल रेक्टल थर्मोमीटर
- डायपर रैश क्रीम
- बेबी सोप
- बेबी लोशन
- पेट्रोलियम जेली
- दवाई पिलाने वाले ड्रॉपर
- रुई का बंडल
- इन्फेंट एसटामिनोफेन बुखार के लिए (या कोई और दवा जो आपके पीडियाट्रिशन) ने बतायी हो
- एंटीबायोटिक क्रीम
- ट्वीजर या शिशु के नाखून काटने के लिए नेल क्लिपर