भारत में मलेरिया को एक आम रोग माना जाता है। मलेरिया हर वर्ष लाखों को लोगों को अपनी चपेट में लेता है, जिसमें बच्चों को भी शामिल किया जाता है। इस रोग में बच्चे को ठंड लगना, पसीना आना और बुखार आदि कुछ मुख्य लक्षण दिखाई देते हैं। भारत में उड़ीसा, छ्त्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व झारखंड कुछ ऐसे प्रदेश हैं जहां से मलेरिया के अधिक मामले सामने आते हैं। हालांकि मलेरिया का इलाज संभव है, लेकिन बच्चों में मलेरिया की गंभीर स्थिति घातक हो सकती है।

इस रोग की गंभीरता के कारण आपको इस लेख में बच्चों में मलेरिया के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही आपको बच्चों में मलेरिया के लक्षण, बच्चों में मलेरिया के कारण, बच्चों का मलेरिया से बचाव और बच्चों के मलेरिया का इलाज आदि विषयों को भी विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है। 

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  1. बच्चों में मलेरिया के लक्षण - Baccho me malaria ke lakshan
  2. बच्चों में मलेरिया का कारण - Baccho me malaria ka karan
  3. बच्चों का मलेरिया से बचाव - Baccho ka malaria se bachav
  4. बच्चों के मलेरिया का इलाज - Baccho ke malaria ka ilaj

शिशुओं को जन्म के बाद शुरुआती दो माह में मलेरिया होने की संभावनाएं बेहद कम होती है। गर्भावस्था के दौरान मां के द्वारा लिए जाने वाले पौष्टिक आहार और विटामिन्स की दवाओं के प्रभाव से जन्म के समय बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। लेकिन जैसे ही बच्चे के शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, उसको मलेरिया की तरह ही अन्य रोग होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।

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पांच साल से कम आयु के बच्चों में मलेरिया के गंभीर लक्षण होने का जोखिम अधिक होता है।

आगे आपको पांच साल से कम आयु के बच्चों में मलेरिया के लक्षणों के बारे में बताया गया है।

कुछ मामलों में बच्चों को बुखार की जगह पर हाइपोथर्मिया (hypothermia) हो जाता है। हाइपोथर्मिया एक ऐसी स्थिति हैं, जिसमें बच्चे के शरीर में सामान्य तापमान का स्तर काफी कम हो जाता है और यह लक्षण सामान्यतः पांच साल से कम आयु के बच्चों में दिखाई देते हैं।

मलेरिया में व्यस्कों में जो लक्षण दिखाई देते है, वैसे ही लक्षण बड़े बच्चों को भी महसूस होते हैं। जिसमें निम्नलिखित को शामिल किया जाता है।

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मलेरिया प्लाज़्मोडियम (plasmodium) नामक परजीवी (parasite) के कारण होता है। यह परजीवी मादा एनोफेलीज मच्छर (Anopheles mosquito) के काटने से शरीर में प्रवेश करता है। मादा एनोफेलीज मच्छर जब मलेरिया से ग्रसित व्यक्ति के खून को चूसता है, तो वह प्लाज्मोडियम परजीवी अपने अंदर ले लेता है। इसके बाद जब यही मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह प्लाज्मोडियम से स्वस्थ व्यक्ति के रक्त को संक्रमित कर देता है। इस तरह से मलेरिया एक व्यक्ति से दूसरे तक फैलता है।

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प्लोज्मोडियम परजीवी शरीर में प्रवेश करने के बाद यह सीधे आपके लीवर में पहुंच जाता है और लीवर में यह तेजी से अपनी संख्या में इजाफा कर लेता है। यह परजीवी शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने वाली रक्त की कोशिकाओं को नष्ट करने का काम करते हैं। इसके लिए परजीवी इन कोशिकाओं के अंदर चले जाते हैं और इनमें अंडे देकर अपनी संख्या को तब तक बढ़ाते हैं जब तक लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट न हो जाएं।

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यह परजीवी तेजी से रक्त में फैलकर स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करते हैं, जिससे आप बीमार महसूस करने लगते हैं।

नीचे व्यक्तियों को प्रभावित करने वाली प्लोज्मोडियम परजीवी की पांच अन्य प्रजातियों के बारे में बताया जा रहा है। इन प्रजातियों से संक्रमित होने पर लक्षणों को सामने आने में अलग-अलग समय लगता है।

  1. प्लोज्मोडियम फैलसीपारम (plasmodium falciparum):
    यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय (topical) और उप उष्णकटिबंधीय (sub-topical) इलाकों में पाया जाता है। यह मलेरिया के गंभीर मामलों से संबंध रखता है। इसके लक्षण करीब 9 से 14 दिनों के बाद सामने आते हैं। (और पढ़ें - लाल बुखार का इलाज
     
  2. प्लोज्मोडियम विवैक्स (plasmodium vivax):
    यह मुख्य रूप से एशिया और लैटिन अमेरिका में पाया जात है। इसके लक्षण प्लोज्मोडियम फैलसीपारम की अपेक्षा कम होते हैं। यह परजीवी एक साल तक निष्क्रिय अवस्था में जीवित रह सकता है, जो वयक्ति को ठीक होने के बाद दोबारा बीमार करने का कारण बनाता है।

    इस परजीवी के लक्षण करीब 12 से 18 दिनों में सामने आते हैं, जबकि इसके ही कुछ अन्य प्रकार के बैक्टीरिया के लक्षण 8 से 10 माह या इससे ज्यादा समय के बाद भी दिखाई दे सकते हैं। (और पढ़ें - बच्चों को मोटा करने के उपाय)
     
  3. प्लोज्मोडियम ओवेल (plasmodium ovale):
    यह परजीवी बेहद दुलर्भ होते हैं, जो सामान्यतः प्रशांत द्वीप और पशिचमी अफ्रीका में पाये जाते हैं। इस परजीवी से संक्रमित होन के बाद रोगी के लक्षण करीब 12 से 18 दिनों के बाद सामने आते हैं। (और पढ़ें - टाइफाइड का इलाज)
     
  4. प्लोज्मोडियम मालेरियाई (plasmodium malariae):
    यह परजीवी भी दुर्लभ होते हैं और यह पश्चिमी अफ्रिका में मिलते हैं। ये वयक्ति दीर्घकालिक संक्रमण का कारण बनते हैं। प्लोज्मोडियम मालेरियाई से संक्रमित होने के बाद मरीज को करीब 18 से 40 दिनों के बाद लक्षण महसूस होते हैं। (और पढ़ें - नवजात शिशु में पीलिया का इलाज)
     
  5. प्लोज्मोडियम नोलिसी (plasmodium knowlesi):
    इस परजीवी की हाल ही में खोज की गई है। यह प्रजाति दुर्लभ होती है और यह दक्षिणी एशिया में पाई जाती है। इस प्रजाति से हल्के मामलों का तेजी से गंभीरता की ओर बढ़ने की संभावना होती है। रोगी को इसके लक्षण लगभग 9 से 12 दिनों बाद अनुभव होते हैं। (और पढ़ें - वायरल बुखार में क्या करें)

 मच्छर के काटने के अलावा भी बच्चों में मलेरिया फैलने के अन्य कारण होते हैं। जैसे:

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मलेरिया एक गंभीर रोग है। मलेरिया का इलाज मौजूद है, लेकिन आप अपने बच्चे का इस रोग से बचाव कर सकती हैं। बच्चे को मलेरिया से बचाने का प्राथमिक उपाय है एनोफेलीज मच्छर (Anopheles mosquito) से बच्चे को दूर रखें। इसके लिए आप निम्नलिखित तरीकों को आजमां सकते हैं।

  • घर के आसपास की जगहों पर पानी न भरने दें: 
    अपने घर के आसपास की जगहों को साफ सुथरा रखें। यदि कोई ऐसी जगह हो जहां पर मच्छर पनप सकते हैं तो उस जगह को साफ कर दें। (और पढ़ें - बच्चे के निमोनिया का इलाज)
     
  • बच्चे के शरीर को ढककर रखें:
     बच्चे को हल्के रंग और शरीर को पूरा ढकने वाले कपड़े पहनाएं। इससे बच्चे को मच्छरों से बचाया जा सकता है। 
     
  • एसी का इस्तेमाल करें:
    मच्छर गर्म और नमी वाले माहौल में पैदा होते हैं। ऐसे में घर में एसी लगाने से मच्छर घर से दूर रहते हैं। (और पढ़ें - बच्चों को सिखाएं अच्छी सेहत के लिए अच्छी आदतें)
     
  • मच्छरदानी का इतेमाल करें:
    हर घर में एसी लगाना संभव नहीं होता है, ऐसे में बच्चे को मच्छरों से बचाने का सरल उपाय है मच्छरदानी का इस्तेमाल करना। यह एक जालीदार नेट होता है, जिसको अधिकतर घरों में सोने से पहले बिस्तर के ऊपर लगाया जाता है।
     
  • मच्छर मारने वाली दवाएं:
    यदि बच्चा ज्यादा छोटा हो तो डॉक्टर से पूछने के बाद घर में मच्छर मारने वाली दवाओं का भी उपयोग किया जा सकता है। (और पढ़ें - नवजात शिशु को नहलाने का तरीका)
     
  • नीम के पत्ते व नारियल के छिलकों को जलाएं:
    घर के अंदर व आसपास की जगहों पर नीम के सूखे पत्तों व नारियल के छिलकों को जलाकर धुआं करें। ये धुआं भी मच्छरों को भगाने का काम करता है।     

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परीक्षण में मलेरिया की पहचान करने के बाद डॉक्टर बच्चे के मलेरिया का इलाज शुरू कर देते हैं। बच्चों में मलेरिया की पहचान के लिए डॉक्टर आपको बच्चे का ब्लड टेस्ट करने की सलाह देते हैं। इस इलाज में मलेरिया को कम करने कई दवाएं दी जाती हैं। यह दवाएं टेबलेट, इंजेक्शन या सीधे नसों में दी जाने वाली दवाओं (intravenously) के रूप में बच्चे को दी जा सकती है। बच्चे के मलेरिया के प्रकार और गंभीरता के आधार पर उसको निम्नलिखित दवाएं दी जाती हैं।

  • क्लोरोक्विन (अरलेन)
  • मेफ्लोक्विन (लारीअम)
  • डोक्सिसाइक्लिन (विब्रामाईसिन)
  • एटोवोक्वॉन (मेप्रीन)
  • प्राइमाक्विन, आदि।

बच्चों के मलेरिया की घरेलू देखभाल

  • मलेरिया के कारण बच्चे को कमजोरी और थकान होने लगती है, ऐसे में बच्चे को ज्यादा से ज्यादा आराम करने दें। (और पढ़ें - थकान दूर करने के लिए क्या खाएं)
  • मलेरिया के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए बच्चे के शरीर को स्वस्थ और पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है। इस समय आप बच्चे को आसानी से पचाने वाला और स्वस्थ आहार दें। (और पढ़ें - मलेरिया में क्या खाएं)
  • बच्चे के बुखार को कम करने के लिए आप उसके शरीर को स्पंज (sponging : गीले कपड़े से बच्चे के शरीर को पोछना) से पोछते रहें। दवाईयों के अलावा डॉक्टर की सलाह पर बुखार को नियंत्रित करने के लिए इस उपाय को आजमाया जा सकता है। 

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