केराटाइटिस इचिथियोसिस डिफनेस सिंड्रोम क्या है?

केराटाइटिस इचिथियोसिस डिफनेस सिंड्रोम को "केआईडी सिंड्रोम" भी कहा जाता है, यह एक गंभीर स्थिति होती है जिसमें देखने, सुनने व त्वचा संबंधी कई समस्याएं पैदा हो जाती है। 

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केराटाइटिस इचिथियोसिस डिफनेस सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं?

केआईडी सिंड्रोम जन्म के दौरान ही मौजूद होता है। केआईडी सिंड्रोम से ग्रस्त लगभग सभी व्यक्तियों में त्वचा संबंधी समस्याएं, बहरापन या सुनाई देने की क्षमता बुरी तरह से बिगड़ जाती है। त्वचा पर होने वाले लक्षण जैसे हाथ व पैरों की निचली त्वचा मोटी व कठोर हो जाना, त्वचा पर लाल रंग के मोटे दाग बन जाना और त्वचा पर पपड़ी बनना आदि, जो शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकते हैं। सुनाई ना देने की समस्या अक्सर गंभीर होती है, लेकिन कुछ मामलों में यह स्थिति गंभीर नहीं होती। 

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केराटाइटिस इचिथियोसिस डिफनेस सिंड्रोम क्यों होता है?

केआईडी सिंड्रोम एक आनुवंशिक विकार होता है, जो मां-बाप से बच्चे को होता है, जिसे ऑटोसोमल डोमिनेंट रोग कहा जाता है। इसका मतलब होता है इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति में एक जीन असामान्य और दूसरी सामान्य होती है। जब असाधारण जीन संतान में प्रसारित की जाती है, तो बच्चा केआईडी सिंड्रोम से संक्रमित होकर जन्म लेता है। यदि माता-पिता में से कोई एक केआईडी सिंड्रोम से ग्रस्त है, तो 50 प्रतिशत संभावना इस रोग से ग्रस्त बच्चा पैदा होने की होती है। 

केराटाइटिस इचिथियोसिस डिफनेस सिंड्रोम का इलाज कैसे होता हैं?

इस स्थिति की जांच करने के लिए डॉक्टर मरीज के लक्षणों की जांच, शारीरिक परीक्षण और स्वास्थ्य स्थिति की पिछली जानकारी लेते हैं। इसके अलावा परीक्षण करने के लिए कुछ प्रकार के लेबोरेटरी टेस्ट भी किए जा सकते हैं। इन सभी जनकारियों की मदद से केआईडी सिंड्रोम का परीक्षण किया जाता है। परीक्षण के दौरान जीटीआर (Genetic Testing Registry) टेस्ट किया जाता है, जो इस आनुवंशिक विकार से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी देता है। 

केआईडी सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों को देखने, सुनने व शरीर के अंदरुनी अंगों संबंधित समस्याएं हो जाती हैं, इसलिए उन्हें आमतौर पर कई प्रकार की उपचार प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ती है। केआईडी सिंड्रोम के कारण क्षतिग्रस्त होने वाली त्वचा का इलाज कुछ प्रकार की स्किन क्रीम से किया जा सकता है। 

इसके कारण त्वचा पर होने वाले दाग छील जाने से संक्रमण फैलने लग जाता है, जो कुछ मामलों में जीवन के लिए घातक स्थिति बन सकती है (खासकर नवजात शिशुओं में)। सुनने और देखने, दोनो में कमी होने के कारण शरीर के विकास की गति धीमी हो जाती है। 

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