हेपेटाइटिस सी के कितने चरण होते हैं ?
हेपेटाइटिस सी के निम्नलिखित चरण होते हैं -
एक्यूट चरण-
संक्रमण होने के बाद के पहले छह महीने हेपेटाइटिस का एक्यूट चरण होता है। प्रारंभिक लक्षणों में थकान, भूख कम लगना या त्वचा और आंखों में हल्का पीलापन (पीलिया) हो सकते हैं। ज्यादातर मामलों में, लक्षण कुछ हफ्तों में ठीक हो जाते हैं। यदि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली इस समस्या का समाधान स्वयं नहीं करती है, तो यह संक्रमण क्रॉनिक चरण में बदल जाता है। लक्षणों की कमी के कारण, क्रॉनिक हेपेटाइटिस सी का सालों तक निदान नहीं हो पाता है। इसका निदान अक्सर रक्त परीक्षण के दौरान होता है जो अन्य कारणों से किया जाता है।
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क्रॉनिक चरण-
क्रॉनिक चरण में, लक्षणों को दिखने के लिए वर्षों लग सकते हैं। इसमें लिवर की सूजन के बाद लिवर कोशिकाओं की मृत्यु होती है। इससे लिवर के ऊतक में धब्बे और उनका सख्त होना हो सकता है (सिरोसिस)। क्रॉनिक हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त 20 प्रतिशत लोगों को कई वर्षों में धीरे-धीरे लिवर का नुकसान अनुभव होता है और 15 से 20 वर्षों में लिवर के सिरोसिस को विकसित करते हैं।
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सिरोसिस-
जब स्थायी धब्बे वाले ऊतक स्वस्थ लिवर कोशिकाओं की जगह ले लेते हैं, उसे सिरोसिस कहा जाता है। इसमें लिवर में इतने धब्बे हो जाते हैं कि वह खुद को ठीक नहीं कर पाता है। इससे स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न प्रकार कि समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जैसे पेट में तरल पदार्थ का निर्माण और अन्नप्रणाली में नसों से रक्तस्राव। जब लिवर विषाक्त पदार्थों को फिल्टर करने में विफल हो जाता है तो वे खून में जा सकते हैं और दिमाग की गतिविधि को नुकसान पहुंचा सकते हैं। सिरोसिस से ग्रस्त कुछ लोगों में लिवर कैंसर विकसित हो सकता है। यह जोखिम उन लोगों में अधिक होता है, जो अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन करते हैं।
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अंतिम चरण-
क्रॉनिक हेपेटाइटिस सी गंभीर दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है, जैसे लिवर की विफलता, लिवर कैंसर और मौत। अंतिम चरण हेपेटाइटिस सी तब होता है जब लिवर गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाता है और ठीक से काम नहीं कर पाता। इसके लक्षणों में थकान, पीलिया, मतली, भूख कम लगना, पेट में सूजन और अव्यवस्थित सोच हो सकते हैं। सिरोसिस से ग्रस्त लोगों को अन्नप्रणाली में रक्तस्राव हो सकता है और मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र का नुकसान भी हो सकता है।
लिवर रोग का एकमात्र उपचार होता है लिवर प्रत्यारोपण। अधिकांश प्रत्यारोपण रोगी पांच सालों तक ज़िंदा रह पाते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश हेपेटाइटिस सी लगभग इन सब रोगियों में फिर से होता है।
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