सिस्टीन्यूरिया क्या है?
सिस्टीन्यूरिया में गुर्दे, मुत्राशय और गर्भाशय में एमिनो एसिड सिस्टीन जमा होने लगता है और कठोर होकर यह एक पथरी का रूप ले लेता है। गुर्दे मूत्र बनाने के लिए रक्त फ़िल्टर करते हैं, इसलिए सिस्टीन आमतौर पर रक्त प्रवाह में अवशोषित हो जाता है। सिस्टीन्यूरिया से ग्रस्त लोगों के रक्त प्रवाह में सिस्टीन सही ढंग से पुन: अवशोषित नहीं हो पाता है, इसलिए यह एमिनो एसिड उनके मूत्र में मिलता रहता है। यह एक आनुवंशिक रोग है, जो माता या पिता से आगे संतान में भी हो सकता है।
मूत्र अधिकतर समय किडनी में ही रहता है, इसलिए इसमें मौजूद सिस्टीन जमा होकर क्रिस्टल (पथरी) का रूप धारण करने लगता है, धीरे-धीरे यह पथरी एक बड़ा रूप धारण कर लेती है, जिससे गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है। गुर्दों की बजाए मूत्राशय या गर्भाशय में भी क्रिस्टल जमा होने लग सकता है। कभी-कभी ये सिस्टीन क्रिस्टल कैल्शियम अणुओं के साथ जुड़ने लगते हैं, ऐसी स्थिति में पथरी का आकार और बड़ा हो जाता है।
सिस्टीन्यूरिया में बने ये क्रिस्टल मूत्र पथ में अवरोध पैदा करने लगते हैं, जिस कारण से किडनी पेशाब के माध्यम से शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने में असमर्थ हो जाती है। इतना ही नहीं सिस्टीन्यूरिया में बैक्टीरियल संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि लंबे समय तक एक जगह पर पेशाब रहने से उसमें मौजूद अपशिष्ट पदार्थों में बैक्टीरिया हो सकते हैं।
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सिस्टीन्यूरिया के लक्षण क्या हैं?
सिस्टीन्यूरिया एक दीर्घकालिक रोग है, इसके लक्षण आमतौर पर छोटे बच्चों में अधिक देखे जाते हैं। हालांकि, कुछ अध्ययनों के अनुसार यह पता लगा है कि शिशुओं और किशोरों में इसके लक्षण कम देखे जाते हैं। सिस्टीन्यूरिया में विकसित होने वाले लक्षण निर्भर करते हैं कि पथरी का आकार कितना है। इसके आम लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं -
- पेशाब बंद होना
- पेशाब में दर्द और जलन
- पेशाब में खून
- पसली के नीचे दोनों तरफ दर्द
- बार-बार मूत्र पथ में संक्रमण
- क्रोनिक किडनी फेलियर
- जी मिचलाना
कई बार सिस्टीन्यूरिया से किसी प्रकार के लक्षण विकसित नहीं होते हैं, ऐसा आमतौर पर तब होता है जब तक पथरी न बनी हो या फिर उसका आकार काफी छोटा हो। यदि पथरी का आकार बढ़ने लगे, तो लक्षण भी धीरे-धीरे विकसित होने लगते हैं।
डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
यदि बार-बार पेशाब संबंधी समस्याएं हो रही हैं या फिर उपरोक्त में से कोई भी लक्षण महसूस हो रहा है, तो डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए। इसके अलावा यदि आपको पहले कभी पथरी की समस्या हो चुकी है या पहले आपको कभी सिस्टीन्यूरिया हो चुका है, तो भी आपको जरा से लक्षण महसूस होते ही एक बार डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए।
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सिस्टीन्यूरिया क्यों होता है?
सिस्टीन्यूरिया एक आनुवंशिक रोग है और यह अपने माता-पिता से ही मिलता है। उदाहरण के लिए यदि माता या पिता को अपने जीवन में कभी सिस्टीन्यूरिया की समस्या हुई है और उसके खराब जीन उसकी संतान को मिल जाते हैं तो उन्हें भी यह रोग हो सकता है। हालांकि, ऐसा जरूरी नहीं है कि जिनके माता-पिता को कभी सिस्टीन्यूरिया हुआ हो तभी बच्चे को होगा।
जब मूत्र में अधिक मात्रा में सिस्टीन हो जाता है, तो सिस्टीन्यूरिया रोग हो जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सिस्टीन गुर्दों में चला जाता है और फिर पेशाब में घुलकर शरीर से बाहर निकल जाता है। लेकिन सिस्टीन्यूरिया के मामलों में ऐसा नहीं हो पाता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि सिस्टीन्यूरिया से ग्रस्त लोगों के शरीर में आनुवंशिक रूप से एक दोष होता है, जो इस प्रक्रिया को प्रभावित करता है। परिणामस्वरूप सिस्टीन गुर्दों में ही रहता है और जमा होने लगता है व धीरे-धीरे एक कठोर क्रिस्टल के रूप मे ंविकसित हो जाता है। पेशाब के साथ बाहर निकलने के दौरान ये क्रिस्टल गुर्दे, मूत्रमार्ग या मूत्राशय में फंस जाते हैं, जिससे पेशाब संबंधी समस्याएं होने लगती हैं।
सिस्टीन्यूरिया होने का खतरा कब बढ़ता है?
कुछ अध्ययनों के अनुसार सिस्टीन्यूरिया एक दुर्लभ रोग है। कुछ अध्यनों के अनुसार यह आमतौर पर छोटे बच्चों में अधिक देखा जाता है, जिनमें 5 से 10 साल के बच्चे आते हैं। जबकि शिशु और किशोरावस्था में इसके मामले काफी कम देखे गए हैं।
हालांकि, एक अन्य अध्ययन के अनुसार 40 साल से कम आयु के वयस्कों में सिस्टीन स्टोन होने का खतरा पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ता है। मूत्र पथ में होने वाली पथरी में लगभग 3 प्रतिशत सिस्टीन स्टोन ही होते हैं।
सिस्टीन्यूरिया का परीक्षण कैसे किया जाता है?
यदि किसी व्यक्ति को बार-बार गुर्दे में पथरी होने की समस्या हो रही है, तो डॉक्टर विशेष रूप से सिस्टीन्यूरिया की जांच करने के लिए परीक्षण शुरू करते हैं। परीक्षण के दौरान यह पता लगाया जाता है कि गुर्दे में बनी हुई पथरी सिस्टीन से बनी है या किसी और चीज से बनी है जैसे प्रोटीन या कैल्शियम आदि। कुछ दुर्लभ मामलों में जेनेटिक टेस्टिंग भी की जा सकती है। इसके अलावा सिस्टीन्यूरिया की पुष्टि व उसकी गंभीरता का पता लगाने के लिए कुछ अन्य टेस्ट भी किए जा सकते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -
- 24 घंटे तक पेशाब जमा करके उसकी जांच करना
- इंट्रावेनस पाइलोग्राम
- पेट का सीटी स्कैन
- मूत्र विश्लेषण
सिस्टीन्यूरिया का इलाज कैसे होता है?
सिस्टीन्यूरिया का इलाज स्थिति की गंभीरता के अनुसार किया जाता है। इसके इलाज में मरीज के आहार में कुछ विशेष बदलाव करना, दवाएं और गंभीर मामलों में सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है। सिस्टीन्यूरिया के इलाज का मुख्य लक्ष्य गुर्दे, मूत्राशय या गर्भाश्य में बने सिस्टीन क्रिस्टल को नष्ट करना या पेशाब के माध्यम से बाहर निकालना होता है।
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सिस्टीन्यूरिया के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में कीलेशन एजेंट होते हैं, जो सिस्टीन क्रिस्टल को घोलने का काम करते हैं। इन दवाओं की मदद से सिस्टीन की पथरी पेशाब में घुल जाती है और शरीर से बाहर निकल जाती है। यदि सिस्टीन क्रिस्टल का आकार काफी बड़ा है, तो उसे दवाओं की मदद से नहीं घोला जा सकता है। ऐसे में सर्जरी की मदद से पथरी को निकालना पड़ता है। इसके इलाज में आमतौर पर दो प्रकार की सर्जिकल प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ती है -
- एक्सट्राकोर्पोरियल शॉकवेव लिथोट्रिप्सी
- प्रीक्युटेनियस नेफ्रोस्टोलिथोटोमी
यदि सही तरीके से इलाज नहीं किया जाता है, तो सिस्टीन्यूरिया बेहद दर्दनाक हो सकता है और गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है। इन जटिलताओं में स्टोन से किडनी या मूत्राशय की क्षति होना, मूत्र पथ में संक्रमण, किडनी में संक्रमण और पेशाब बंद होना आदि शामिल हैं।
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