बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षण क्या होते हैं?
वैसे बाइपोलर डिसऑर्डर किसी भी उम्र के लोगों में हो सकता है, खासकर इसे किशोरावस्था और 20 साल की उम्र या उससे पहले होते देखा गया है। इसके लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं और इसके लक्षण समय के साथ-साथ बदल भी सकते हैं।
1. मैनिया और हाइपोमैनिया
ये दोनों अलग-अलग प्रकार के प्रकरण हैं, पर इनके लक्षण एक समान होते हैं। मैनिया, हाइपोमैनिया से ज्यादा गंभीर होता है, इसके कारण काम, पढ़ाई और सामाजिक गतिविधियों को संभालने में कठिनाई होने लगती है। मैनिया, मनोवकृति को भी शुरू कर सकता है, जिससे अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति पैदा हो सकती है।
मैनिक और हाइपोमैनिक दोनों के लक्षणों में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं-
- असामान्य रूप से उत्साहित, चिड़चिड़ा या अजीबोगरीब महसूस होना
- गतिविधि, उर्जा या व्याकुलता में वृद्धि
- खुश होने और आत्मविश्वास की भावना का बढ़ना (Euphoria)
- नींद की कम जरूरत महसूस होना (और पढ़ें - कम सोने के नुकसान)
- बेवजह ज्यादा बातें करना या बोलना
- कुछ ना कुछ सोचते रहना
- अधिक व्याकुलता महसूस करना
- निर्णय लेने में परेशानी – उदाहरण के लिए कुछ खरीदने जाना और वहां पर कुछ भी लेना या ज्यादा पैसे दे देना
2. प्रमुख अवसादग्रस्त प्रकरण
एक प्रमुख अवसादग्रस्त प्रकरण में जो लक्षण होते हैं वे काफी गंभीर होते हैं, जिनसे रोजाना की गतिविधियां पूरी करने में काफी कठिनाई होती है। इसमें होने वाली कठिनाइयां काफी ध्यान देने योग्य होती हैं, जैसे स्कूल, काम व अन्य सामाजिक गतिविधि पूरा करने में कठिनाई या व्यक्तिगत दिक्कत आदि। इस प्रकरण के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं -
- अवसादग्रस्त मूड जैसे- उदास, खालीपन, निराशाजनक और शोक महसूस होना (बच्चों में इससे चिड़चिड़ापन भी बढ़ सकता है)।
- लगभग सभी प्रकार की गतिविधियो में कोई रूचि या इच्छा ना रखना।
- वजन बढ़ना या घटना, भूख कभी कम लगना तो कभी ज्यादा लगना, (बच्चों में वजन न बढ़ पाना अवसाद का एक संकेत हो सकता है)।
- अनिद्रा या फिर बहुत ज्यादा नींद आना।
- बेचैनी महसूस करना या धीरे-धीरे काम करना।
- थकान या उर्जा में कमी महसूस होना।
- खुद को नाकाबिल या दोषी महसूस करना।
- सोचने और ध्यान देने की क्षमता में कमी होना, निश्चय करने में कठिनाई।
- खुदखुशी करने की योजना बनाना या प्रयास करना।
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3. बाइपोलर डिसऑर्ड की अन्य विशेषताएं
बाइपोलर (I) और (II) दोनों के लक्षणों में कुछ अन्य विशेषताएं भी जुड़ सकती हैं, जैसे चिंतापूर्ण संकट, उदासी, मनोविकृति आदि।
4. बच्चों और किशोरों में लक्षण
बच्चों और किशोरो में बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षणों की पहचान करना काफी मुश्किल होता है। इस रोग में यह निर्धारित करना मुश्किल हो जाता है कि ये सामान्य मानसिक उतार-चढ़ाव हैं, तनाव या आघात के परिणाम हैं या फिर बाइपोल डिसऑर्डर के अलावा सामान्य मानसिक स्वास्थ्य समस्या है।
(और पढ़ें - तनाव दूर करने के उपाय)
बच्चों और किशोरावस्था वाले लोगों में प्रमुख अवसादग्रस्तता, मैनिक या हाइपोमैनिक के एपिसोड अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन, उनके पैटर्न बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित वयस्कों से अलग हो सकते हैं। प्रकरण के दौरान मूड में तीव्रता से बदलाव हो सकता है। कुछ बच्चों के प्रकरण के दौरान कुछ अवधि बिना मूड के लक्षणों के बिना भी हो सकती है।
डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए
मूड के चरम सीमाओं पर होने के बावजूद भी, बाइपोलर से ग्रसित लोग यह नहीं समझ पाते कि उनकी भावनात्मक अस्थिरता उनकी और उनके प्रियजनों के जीवन में कितना बाधा डाल रही है। जिस कारण से वे उपचार की जरूरत नहीं समझते।
अगर आपको अपने अंदर अवसाद या मैनिया के कुछ लक्षण दिख रहे हैं, तो डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से जांच करवा लेनी चाहिए। बाइपोलर डिसऑर्डर में कभी अपने आप सुधार नहीं होता। बाइपोलर डिसऑर्डर के अनुभवी डॉक्टर से उपचार करवाने से लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
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