प्रोस्टेट बढ़ने का उपचार कैसे किया जाता है?
प्रोस्टेट बढ़ने की समस्या के लिए काफी संख्या में उपचार उपलब्ध हैं, जिनमें मेडिकेशन, कम इनवेसिव थेरेपी और सर्जरी आदि शामिल हैं। इन सब में से आपके लिए एक बेहतर उपचार निम्न कारकों पर निर्भर करता है -
- आपके प्रोस्टेट का आकार
- आपकी उम्र
- आपका समग्र स्वास्थ्य
- आपको होने वाली परेशानी व तकलीफ की मात्रा
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मेडिकेशन –
पौरुष ग्रंथि के मध्यम से औसत लक्षणों के लिए मेडिकेशन एक सामान्य उपचार होता है। कुछ पुरूषों में बिना उपचार के ही लक्षण कम होने लगते हैं। इस उपचार के विकल्पों में निम्न शामिल हैं:
अल्फा ब्लॉकर – ये दवाएं मूत्राशय ग्रीवा की मांसपेशियों और प्रोस्टेट की मासपेशियों के रेशों को शिथिल बना देती है,
अल्फा ब्लॉकर में निम्न दवाएं शामिल हैं:
- अल्फूजोसिन (Alfuzosin)
- डोक्साजोसिन (Doxazosin)
- टैमसुलोसिन (Tamsulosin)
- सीलोडॉसिन (Tilodosin)
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ये दवाएं आमतौर पर उन पुरूषों में शीघ्रता से काम करती हैं, जिनके प्रोस्टेट अपेक्षाकृत छोटे होते हैं।
अल्फा रिडक्टेस इनहीबिटर – ये दवाएं प्रोस्टेट को बढ़ाने वाले हार्मोन्स में बदलाव करके प्रोस्टेट के आकार को छोटा कर देती है।
इन दवाओं में शामिल हैं:
- फिनास्टेराइड (Finasteride)
- ड्यूटेस्टेराइड (Dutasteride)
ये दवाएं अपने प्रभाव को दिखाने में 6 महीनों तक का समय लेती हैं।
कॉम्बिनेशन ड्रग थेरेपी – अगर उपरोक्त दोनों दवाओं में से कोई भी दवा प्रभावशील नहीं है, तो ऐसे में कई बार डॉक्टर अल्फा ब्लॉकर और A-5 अल्फा रिडक्टेस इनहीबिटर दोनों को एक साथ लेने का सुझाव देते हैं।
कम इनवेसिव और सर्जिकल थेरेपी –
कम आक्रामक और सर्जिकल थेरेपी का इस्तेमाल निम्न स्थितियों में किया जाता है:
- आपके लक्षण मध्यम से गंभीर हो,
- दवाओं से आपके लक्षणों में राहत नहीं मिल रही हो,
- अगर आपको ब्लैडर में पथरी, मूत्रमार्ग में रुकावट, पेशाब में खून या किडनी संबंधी समस्या हो,
- अगर आप एक निश्चित उपचार पसंद करते हों, इत्यादि।
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कम आक्रामक और सर्जिकल थेरेपी का विकल्प आपके लिए नहीं होगा, अगर आपको:
- मूत्र पथ में संक्रमण है, जिसका उपचार नहीं किया गया हो,
- यूरेथरन स्ट्रीक्चर रोग हो,
- पहले कभी प्रोस्टेट रेडिएशन थेरेपी या मूत्र पथ की सर्जरी करवाई हो,
- अगर आपको कोई न्यूरोलॉजिकल विकार है, जैसे कि पार्किंसंस रोग या मल्टीपल स्केलेरोसिस इत्यादि।
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प्रोस्टेट संबंधी किसी भी प्रकार की प्रक्रिया से साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इसके साइड इफेक्ट उस प्रक्रिया पर निर्भर करते हैं, जो आपके लिए चुनी जाती है। कुछ जटिलताएं जिनमें निम्न शामिल हैं -
- स्खलन के दौरान वीर्य लिंग के माध्यम से बाहर आने की बजाए वापस मूत्राशय में जाना, इस स्थिति को प्रतिगामी स्खलन (Retrograde ejaculation) कहा जाता है।
- मूत्र संबंधी कुछ अस्थायी कठिनाईयां।
- मूत्र पथ में संक्रमण। (और पढ़ें - यूरिन इन्फेक्शन के उपाय)
- खून बहना।
- स्तंभन दोष। (और पढ़ें - कामेच्छा बढ़ाने के उपाय)
- बहुत ही दुर्लभ मामलों में, मूत्राशय का नियंत्रण खो देना (Incontinence)।
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अन्य प्रकार की कम इनवेसिव या सर्जिकल थेरेपी हैं -
ट्रांसयूरेथरल रिसेक्शन ऑफ प्रोस्टेट (TURP)
एक लाइट वाली स्कोप (Lighted scope) को मूत्रमार्ग में डाला जाता है और सर्जन बाहरी प्रोस्टेट के पूरे भाग को हटा देते हैं। टीयूआरपी आमतौर पर लक्षणों से जल्दी राहत देता है, ज्यादातर लोगों में प्रक्रिया के बाद तुरंत तेज पेशाब का बहाव बनता है। टीयूआरपी के बाद आपको अपने मूत्राशय को खाली करने के लिए अस्थायी रूप से कैथेटर का इस्तेमाल करने की आवश्यकता पड़ सकती है।
प्रोस्टेट में ट्रांसयूरेथरल चीरा (TUIP) -
लाइट वाली स्कोप को मूत्रमार्ग में डाला जाता है और सर्जन पौरुष ग्रंथि में दो छोटे कट लगाते हैं, जिससे पेशाब को मूत्रमार्ग से जाने में आसानी हो जाती है। यदि आपकी पौरुष ग्रंथि का आकार थोड़ा ही बढ़ा हुआ है या ज्यादा बड़ा नहीं है, तो यह सर्जरी आपके लिए एक विकल्प हो सकती है।
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ट्रांसयूरेथरल माइक्रोवेव थर्मोथेरेपी (TUMT) –
इस प्रक्रिया में डॉक्टर एक विशेष प्रकार की इलेक्ट्रोड (Electrode) को मूत्रमार्ग के माध्यम से पौरुष ग्रंथि क्षेत्र तक पहुंचाते हैं। इलेक्ट्रोड की माइक्रोवेव एनर्जी पौरुष ग्रंथि के बढ़े हुऐ क्षेत्र के अंदरुनी हिस्से को नष्ट करके पौरुष ग्रंथि के आकार को छोटा कर देती है और मूत्र प्रवाह को सरल बना देती है। टीयूएमटी किसी हिस्से के लक्षणों को ही कम कर पाती है और इसके द्वारा दिए गए रिजल्ट को सामने आने में समय लग सकता है। आमतौर पर इस प्रक्रिया का इस्तेमाल छोटे प्रोस्टेट के लिए और विशेष परिस्थितियों में किया जाता है, क्योंकि फिर से उपचार करना आवश्यक हो सकता है।
ट्रांसयूरेथरल नीडल एब्लेशन (TUNA) –
यह एक आउटपेशेंट प्रक्रिया होती है, जिसमें मरीज को अस्पताल में रुकने की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रक्रिया में मरीज के मूत्रमार्ग में स्कोप डाला जाता है, जिससे प्रोस्टेट ग्रंथि में सुई डालने में मदद मिलती है। सुई के माध्यम से रेडियो किरणों को भेजा जाता है जिसकी मदद से पेशाब में रुकावट पैदा करने वाले प्रोस्टेट ऊतकों को नष्ट किया जाता है।
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लेजर थेरेपी –
एक उच्च उर्जा वाली लेजर की मदद से अधिक बढ़े हुऐ प्रोस्टेट के ऊतकों को नष्ट कर दिया जाता है। लेजर थेरेपी आमतौर पर उसी समय लक्षणों को कम कर देती है और बिना लेजर वाली प्रक्रियाओं के मुकाबले इसमें साइड इफेक्ट के जोखिम भी कम होते हैं। लेजर थेरेपी उन पुरूषों के लिए की जाती है, जिनपर किसी अन्य प्रोस्टेट प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया गया हो।
लेजर थेरेपी के विकल्पों में निम्न शामिल हो सकते हैं:
- एब्लेटिव प्रोसीजर – मूत्र प्रवाह को बढ़ाने के लिए यह प्रक्रिया प्रोस्टेट के बढ़े हुऐ ऊतकों का वाष्पीकरण करके उन्हें हटा देती है।
- इनूक्लिएटिव प्रोसीजर – यह प्रक्रिया पेशाब में ब्लॉकेज पैदा करने वाले सभी प्रोस्टेट ऊतकों को हटा देती है और उन ऊतकों को फिर से विकसित होने से रोकती है। प्रोस्टेट में कैंसर या अन्य स्थितियों का पता लगाने के लिए निकाले गए ऊतकों की जांच की जाती है। यह प्रक्रिया ओपन प्रोस्टेटक्टोमी (Open prostatectomy) के जैसी प्रक्रिया होती है।
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ओपन प्रोस्टेटक्टोमी –
इस प्रक्रिया में सर्जरी करने वाले डॉक्टर पेट के निचले हिस्से में एक चीरा लगाते हैं, जिसकी मदद से वे पौरुष ग्रंथि तक पहुंच पाते हैं और ऊतकों को निकाल देते हैं। ओपन प्रोस्टेटक्टोमी को आमतौर पर तब किया जाता है, जब आपका प्रोस्टेट का आकार अधिक बढ़ गया हो, मूत्राशय में क्षति या अन्य जटिलताएं विकसित हो गई हों। इस प्रक्रिया के लिए अस्पताल में रुक कर सर्जरी करवाने की आवश्यकता पड़ती है, इस प्रक्रिया के साथ खून चढ़ाने जैसे जोखिम भी जुड़े होते हैं।
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