जलोदर की पहचान कैसे होती है?
जिन बीमारियों के होने की वजह से जलोदर होता है, उनमें से अधिकतर बीमारियां जानलेवा होती हैं।
शुरुआत में पहली जांच आमतौर पर पेट की होती है। डॉक्टर व्यक्ति के लेटने और खड़े होने पर उसके पेट को देखकर पेट के आकार को जांचते हैं जिससे पता चल सके कि पेट में तरल पदार्थ बना है या नहीं।
नियमित रूप से पेट के आकार को जांचने और शरीर का वजन तोलने से जलोदर के बढ़ने का पता किया जा सकता है। ये जांच सहायक होती हैं क्योंकि पेट के तरल पदार्थ में परिवर्तन के कारण से हुआ वजन में उतार-चढ़ाव, शरीर में मौजूद फैट के कारण से हुए वजन में उतार-चढाव से अधिक तेज़ी से होता है।
(और पढ़ें - लैब टेस्ट क्या है)
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एक बार जलोदर की पुष्टि हो जाने के बाद, कारण का पता करने के लिए अन्य परीक्षणों की आवश्यकता हो सकती है, जिसमें शामिल है:
ब्लड टेस्ट:
आमतौर पर लिवर और किडनी सही प्रकार से काम कर रहे है या नहीं यह पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। यदि सिरोसिस की पुष्टि हो जाती है, तो कारणों का पता लगाने के लिए, और परीक्षणों की आवश्यकता होती है जेसे कि हेपेटाइटिस बी या सी के लिए एंटीबॉडी परीक्षण। (और पढ़ें - किडनी फंक्शन टेस्ट रेंज)
तरल पदार्थ की जांच:
तरल पदार्थ के नमूने में कैंसर की कोशिकाएं मौजूद हो सकती हैं या कोई संक्रमण हो सकता है। डॉक्टर एक सिरिंज (सुई) की मदद से पेट से दूषित तरल पदार्थ को निकालकर लैब में जांच के लिए भेजते हैं। (और पढ़ें - पैप स्मीयर टेस्ट)
पेट का अल्ट्रासाउंड:
यह जलोदर के अन्य कारणों की पहचान के लिए सहायक है। इससे कैंसर का पता लगाया जा सकता है, साथ ही ये भी पता किया जा सकता है कि कैंसर लिवर में फैला है या नहीं।
अगर अल्ट्रासाउंड से जलोदर के कारण का पता नहीं लगता है, तो डॉक्टर एमआरआई कराने को कह सकते हैं। एक्स-रे भी जलोदर का पता लगाने में लाभकारी है। इससे लिवर में तरल पदार्थ का निर्माण, फेफड़ों में फैले कैंसर, या हार्ट फेल होने की पुष्टि कर सकते हैं।
(और पढ़ें - लिवर फंक्शन टेस्ट क्या है)