ऐसी बहुत सारी महिलाएं हैं जो गर्भावस्था के इस दौर को बिना किसी समस्या के पार कर जाती हैं। हालांकि ऐसी बहुत सी अन्य महिलाएं हैं जिनकी प्रेगनेंसी अपने या शिशु के स्वास्थ्य में समस्या होने के कारण मुश्किल हो जाती हैं। हालांकि गर्भवती होने से पहले यदि ठीक तरह से पूर्वोपाय (जैसे धूम्रपान न करना या शराब न पीना और संतुलित आहार लेना) किए जाए तो ऐसी समस्याओं की संभावना को कम किया जा सकता है। जो महिलाएं गर्भवती होने से पहले स्वस्थ थी उनकी प्रेगनेंसी में भी समस्याएं हो सकती हैं।
ऐसी गर्भावस्थाओं को हाई-रिस्क प्रेगनेंसी कहा जाता है। ऐसे में मां और शिशु दोनों को ठीक रखने के लिए अधिक प्री नेटल केयर, मेडिकल ट्रीटमेंट और यहां तक कि सर्जरी भी की जा सकती है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को निम्न समस्याएं हो सकती हैं।
उच्च रक्तचाप
हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप एक स्थिति है जो कि शिशु के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। उच्च रक्तचाप की वजह से गर्भनाल में रक्त का प्रवाह कम हो सकता है। गर्भनाल शिशु को गर्भ में पोषण और ऑक्सीजन पहुंचाती है। गर्भनाल तक रक्त का कम प्रवाह शिशु के विकास को धीमा कर सकता है। इसके अलावा, इससे प्री मेच्योर डिलीवरी या मां में प्री-एक्लेम्पसिया स्थिति पैदा हो सकती है।
जिन महिलाओं को गर्भवती होने से पहले उच्च रक्तचाप था उन्हें गर्भावस्था के दौरान बार-बार जांच करवानी चाहिए। यदि महिला को गर्भवती होने के बाद उच्च रक्तचाप होता है तो इस स्थिति को जेस्टेशनल हाई ब्लड प्रेशर कहा जाता है। जेस्टेशनल हाई ब्लड प्रेशर दूसरी या तीसरी तिमाही के दौरान होता है और प्रसव के बाद स्वयं ही ठीक हो जाता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज
किसी महिला को गर्भवती होने के बाद शुगर समस्या या डायबिटीज हो तो इस स्थिति को जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है। पैंक्रियास इन्सुलिन नामक एक हार्मोन स्त्रावित करते हैं जो ग्लूकोज को तोड़कर ऊर्जा के रूप में कोशिकाओं तक पहुंचाता है। गर्भावस्था में हो रहे हार्मोनल बदलावों के कारण ऐसा हो सकता है कि शरीर में पर्याप्त इन्सुली न बने या शरीर में उसका उपयुक्त तरह से प्रयोग न हो पाए। इससे रक्त में ग्लूकोज का जमाव बढ़ सकता है। रक्त में ब्लड शुगर लेवल बढ़ने से जेस्टेशनल डायबिटीज की स्थिति पैदा हो सकती है।
यदि आपको जेस्टेशनल डायबिटीज है तो यह जरूरी है कि आप डॉक्टर द्वारा सुझाया गया ट्रीटमेंट करवाएं। इन ट्रीटमेंट को करवाना जरूरी इसलिए होता है क्योंकि न करवाने पर प्री मेच्योर बर्थ जैसी स्थितियां पैदा हो सकती है
संक्रमण
यदि गर्भावस्था के दौरान मां को किसी भी तरह का संक्रमण जैसे बैक्टीरियल इन्फेक्शन, वायरल इन्फेक्शन, फंगल इन्फेक्शन या फिर एसटीडी होते हैं तो इससे माता और शिशु दोनों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। ये सभी भ्रूण में जा सकते हैं और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनमें से कई संक्रमणों का इलाज गर्भावस्था के दौरान या उससे पहले किया जा सकता है।
अपने शरीर में संक्रमणों की जांच करवाना और उनके प्रति सही पूर्वोपायों को अपनाना जरूरी है क्योंकि इससे गर्भपात, एक्टोपिक प्रेगनेंसी, समय से पहले डिलीवरी,जन्मजात विकार समस्याएं हो सकती हैं। इन संक्रमणों के बारे में आपको डॉक्टर से बात करनी चाहिए और अगर आपको यह होने का खतरा है तो ट्रीटमेंट और वैक्सिनेशन लेनी चाहिए।
गर्भपात
गर्भपात का मतलब है भ्रूण की गर्भवस्था के बीसवें हफ्ते में स्वयं ही मृत्यु हो जाना। ऐसा कई सारे कारणों से हो सकता है जैसे संक्रमण, इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया और यूटेरिन असामान्यता। यदि आप शराब पीती हैं या धूम्रपान करती हैं तो गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। व्यायाम कम करने, तनाव में रहने और अत्यधिक कैफीन के सेवन से भी गर्भपात हो सकता है।
गर्भपात के लक्षणों में योनि से खून आना, पेट में ऐंठन, वजाइनल डिस्चार्ज आदि शामिल हैं। एक बार शुरू होने के बाद गर्भपात को वापस ठीक नहीं किया जा सकता है। गर्भपात या मिसकैरेज किसी भी महिला के लिए बहुत दुखदायी हो सकता है। इसके अलावा यदि आपका पहले भी मिसकैरेज हुआ है या आपकी जीवनशैली में धूम्रपान व शराब जैसी आदतें हैं तो इनके कारण भी गर्भपात का खतरा अधिक बढ़ जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप फिर से गर्भ धारण नहीं कर सकती हैं। इस समय बेहतर यह है कि आप घरवालों का और दोस्तों का भावनात्मक रूप से सहारा लें और स्वयं को मानसिक रूप से मजबूत रखें।
एक्टोपिक प्रेगनेंसी
आमतौर पर एम्ब्रयो गर्भ में फर्टिलाइज होता है लेकिन अगर यह निषेचन फेलोपियन ट्यूब्स में होता है तो इस स्थिति को एक्टोपिक प्रेगनेंसी या ट्यूबल प्रेगनेंसी कहते हैं। ऐसे में एक्टोपिक प्रेगनेंसी के लक्षणों को पहचानना जरूरी हो जाता है। इस लक्षणों में पेट दर्द, श्रोणि में दर्द, रक्तस्त्राव, जी मिचलाना और मल त्यागने की इच्छा होना शामिल हो सकते हैं।
एक्टोपिक प्रेगनेंसी को सामान्य तरह से जारी रखना असामान्य है इसलिए आपको इसका ट्रीटमेंट मेडिकल रूप से या सर्जरी से करवाना होगा। कुछ मामलों में यदि समय पर जांच नहीं की जाती है तो एक्टोपिक प्रेगनेंसी से फेलोपियन ट्यूब्स फट सकती हैं जो कि प्राण घातक हो सकता है। तो अगर आपको एक्टोपिक प्रेगनेंसी के कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं तो इनके बारे में डॉक्टर को बताएं और तुरंत अस्पताल जाएं।
समय से पहले प्रसव
यदि गर्भावस्था का दर्द 37वें हफ्ते में शुरू हो जाता है तो इसे प्री मेच्योर लेबर कहा जाता है। जो शिशु प्री मेच्योर लेबर में पैदा होते हैं उन्हें आमतौर पर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं और इसके अलावा जन्म के बाद धीमा विकास हो सकता है। गर्भावस्था के आखिरी हफ्तों में मस्तिष्क और फेफड़े का विकास पूरा होने पर यह स्थिति पैदा होती है।
समय से पहले प्रसव आमतौर पर माता की जीवनशैली में खराबी, जन्म से पूर्व खराब पोषण, धूम्रपान, शराब का सेवन, यूटेरिन असमान्यता और संक्रमणों के कारण हो सकता है। प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के कम स्तर से भी प्री मेच्योर लेबर हो सकता है इसलिए जिन महिलाओं को खतरा होता है, उन्हें प्रोजेस्टेरोन हार्मोन से ही ट्रीट किया जाता है ताकि डिलीवरी जब तक सुरक्षित न हो तब तक टाली जा सके।
शिशु का मृत पैदा होना (स्टिल बर्थ)
‘स्टिल बर्थ’ का मतलब है गर्भावस्था के 20 हफ्ते में गर्भावस्था खत्म होना या शिशु का मृत पैदा होना। इस शब्द का प्रयोग उन शिशुओं के लिए भी किया जाता है जिनकी मृत्यु प्रसव के दौरान होती है। बहुत सारे स्टिल बर्थ कई अनजान कारणों से होते हैं और इन्हें अनएक्सप्लेंड स्टिल बर्थ कहा जाता है। धूम्रपान, शराब, गर्भावस्था के लिए अधिक उम्र और मेडिकल स्थितियां जैसे डायबिटीज और मोटापे से स्टिल बर्थ का खतरा बढ़ जाता है। यह माता-पिता को मानसिक व भावनात्मक रूप से बहुत सदमा पहुंचा सकता है इसलिए माता-पिता को इस दौरान काउंसलिंग लेनी चाहिए।