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गर्भावस्था किसी भी महिला के लिए सुखद अनुभव होता है. भले ही इस दौरान उन्हें कई उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़े. जैसे-जैसे गर्भावस्था आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे महिला की उत्सुकता और चिंता दोनों ही बढ़ने लगती हैं. यह अनुभव असहज होने के साथ-साथ भावनात्मक भी होता है. ऐसे में जो पहली बार मां बन रही हैं, उनके मन में अक्सर यह सवाल आता है कि डिलीवरी कितने वीक में हो जानी चाहिए.

आज इस लेख में हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि कितने हफ्तों में डिलीवरी का होना सुरक्षित माना गया है -

महिलाओं की शारीरिक समस्याओं का है एकमात्र इलाज आयुर्वेदिक अशोकारिष्ठ दवा.

  1. डिलीवरी होने के सही हफ्ते
  2. अधिकांश शिशु किस हफ्ते में पैदा होते हैं?
  3. प्रीटर्म डिलीवरी के कारण व जोखिम कारक
  4. प्रीटर्म डिलीवरी के कारण शिशु को होने वाले जोखिम
  5. सारांश
कितने हफ्ते में डिलीवरी होनी चाहिए? के डॉक्टर

स्वस्थ गर्भावस्था को 40 सप्ताह लंबा माना गया है. 39 से 41 सप्ताह के बीच की स्वस्थ गर्भावस्था में नवजात शिशु को जन्म लेने के बाद कम जोखिमों का सामना करना पड़ता है. गर्भावस्था की अवधि को सप्ताह के अनुसार इस प्रकार समझ सकते हैं -

  • अर्ली टर्म : 37 से 38 सप्ताह
  • फुल टर्म: 39 से 40 सप्ताह
  • लेट टर्म: 41 से 41 सप्ताह
  • पोस्ट-टर्म: 42 सप्ताह और उससे ज्यादा

इस आधार पर कह सकते हैं कि गर्भावस्था लगभग 280 दिन या 40 सप्ताह की होती है. अगर 37वें सप्ताह से पहले किसी शिशु का जन्म होता है, तो वह प्रीटर्म डिलीवरी या समय पूर्व जन्म माना जाता है. 39वें सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में सांस लेने में तकलीफलो ब्लड शुगर और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की आशंका अधिक होती है. इसके परिणामस्वरूप उन्हें नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में रखने की जरूरत भी पड़ सकती है.

(और पढ़ें - नॉर्मल डिलीवरी में दर्द का कारण व उपाय)

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नेशनल सेंटर फॉर हेल्थ स्टैटिस्टिक्स के अनुसार, अधिकांश बच्चे पूर्ण अवधि में पैदा होते हैं. इस बारे में विस्तार से जाने -

  • 57.5 प्रतिशत शिशुओं का जन्म 39 और 41वें सप्ताह के बीच होता है.
  • 26 प्रतिशत शिशुओं का जन्म 37 से 38वें सप्ताह में होता है.
  • लगभग 7 प्रतिशत शिशुओं का जन्म 34 से 36 सप्ताह के बीच होता है.
  • लगभग 6.5 प्रतिशत शिशुओं का जन्म 41वें सप्ताह या उसके बाद होता है.
  • लगभग 3 प्रतिशत शिशुओं का जन्म गर्भावस्था के 34वें सप्ताह से पहले होता है.

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मधुमेहहृदय रोगकिडनी की बीमारी या उच्च रक्तचाप की समस्या से ग्रस्त महिलाओं में समय से पहले प्रसव होने का जोखिम अधिक होता है. इसके अलावा, अन्य जोखिम कारक इस प्रकार हैं -

महिलाओं से जुड़ी समस्या पीसीओडी का आयुर्वेदिक इलाज जानने के लिए कृपया यहां दिए लिंक पर क्लिक करें.

प्रीटर्म शिशुओं के लिए कई स्वास्थ्य संबंधी जोखिम हो सकते हैं. मस्तिष्क या फेफड़ों में रक्तस्राव जैसी समस्या हो सकती है. इसके अलावा अन्य जोखिम कारक निम्न प्रकार से हैं -

  • विकासात्मक देरी.
  • सांस लेने में कठिनाई.
  • देखने और सुनने की समस्याएं.
  • जन्म के समय कम वजन.
  • दूध पीने में कठिनाई.
  • पीलिया की समस्या.
  • शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में कठिनाई.

(और पढ़ें - प्रसव में जटिलता का इलाज)

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ऐसे में यह आवश्यक है कि गर्भावस्था के पहले और दौरान महिला को अपना पूरा ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. स्वस्थ आहार, जरूरी पोषक तत्वों का सेवन आवश्यक है. इसके अलावा, भरपूर आराम और अच्छी नींद भी जरूरी है. उम्मीद है इस लेख से महिलाओं को डिलीवरी के सही वक्त का अनुमान लगाने में मदद मिली होगी. साथ ही हमारा सुझाव है कि डिलीवरी डेट की सभी महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए अपने डॉक्टर से सलाह-परामर्श लेते रहें.

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