वैली फीवर क्या है?
वैली फीवर (कोक्सीडिओडोमाइकोसिस) फंगी (fungi) के कारण होता है। अधिकतर लोगों को इस रोग के लक्षण महसूस नहीं होते या हल्के लक्षण ही महसूस होते हैं, इसीलिए इसके लिए लोग डॉक्टर के पास नहीं जाते। यह फैलने वाला रोग नहीं है। इसका फंगस जमीन पर उगता है और हवा के कारण फंगस के कण उड़ते हुए व्यक्ति की सांसों से शरीर में चले जाते हैं।
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वैली फीवर के लक्षण क्या हैं?
वैली फीवर के लक्षण आमतौर पर आपके फेफड़ों में फंगस जाने के 2 से 3 सप्ताह के बाद दिखाई देते हैं। वैली फीवर होने पर आपको निम्न लक्षण महसूस होते हैं-
- बुखार,
- सीने में दर्द, (और पढ़ें - छाती में दर्द के घरेलू उपाय )
- खांसी, (और पढ़ें - खांसी के लिए घरेलू उपाय)
- ठंड लगना
- रात को पसीना आना
- सिरदर्द (और पढ़ें - सिर दर्द से छुटकारा पाने के उपाय)
- थकान, (और पढ़ें - थकान दूर करने के लिए क्या खाएं)
- जोड़ों में दर्द, (और पढ़ें - जोड़ों में दर्द के घरेलू उपाय)
- खासकर पैर के निचले हिस्से पर लाल रैशेज होना, आदि।
वैली फीवर क्यों होता है?
कोक्सीडीओआईडीस ईम्मिटिस (Coccidioides immitis) और कोक्सीडीओआईडीस पोसाडासी (Coccidioides posadasii) नामक दो तरह के फंगस वैली फीवर के कारण होते हैं। अधिकतर ये फंगस सांस लेने पर श्वसन तंत्र में चले जाते हैं।
कोक्सीडीओआईडीस के बीजाणु बेहद ही छोटे होते हैं और यह हवाओं के साथ सैकड़ों मील दूर तक जा सकते हैं।
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वैली फीवर का इलाज कैसे होता है?
जिन लोगों को एक्यूट वैली फीवर होता है, उनको किसी प्रकार के इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। इसके गंभीर लक्षण होने पर भी व्यक्ति को आराम करने और नियमित तरल पदार्थ लेने की सलाह दी जाती है।
यदि लक्षणों में सुधार न आए और स्थिति गंभीर होती जाए, तो डॉक्टर रोगी को एंटीफंगल दवाएं देते हैं। सामान्य रूप से फ्लू्कोनैजोल (fluconazole) और (itraconazole) इट्राकोनैजोल दवाओं रोगी को दी जा सकती हैं, लेकिन डॉक्टर केवल गंभीर स्थिति में ही इन दवाओं को लेने की सलाह देते हैं।
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