टूरेट सिंड्रोम का इलाज कैसे किया जाता है?
टूरेट सिंड्रोम को ठीक करने का कोई इलाज नहीं है। इसके इलाज में उन टिक्स को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है, जो रोजाना की गतिविधियों में हस्तक्षेप करती हैं। अगर टिक्स गंभीर नहीं हैं, तो हो सकता है उनका इलाज करना आवश्यक भी न हो।
दवाइयां:
कुछ प्रकार की दवाइयां, जो टिक्स को नियंत्रित करने और इससे संबंधित लक्षणों को कम करने में मदद करती हैं, उनमें निम्न शामिल हैं -
- दवाएं जो डोपामाइन को कम या अवरुद्ध कर देती हैं:
- फ्लूफेनाजाइन (Fluphenazine)
- हैलोपेरीडोल (Haloperidol)
- पिमोजाइड (Pimozide)
- इसके संभावित दुष्प्रभावों में वजन बढ़ना और अनैच्छिक रूप से किसी गतिविधि को दोहराते रहना शामिल है। इसके साथ ही साथ टूरेट सिंड्रोम में टेट्राबिनाजीन (Tetrabenazine) दी जा सकती है, हालांकि यह गंभीर अवसाद पैदा कर सकती है। (और पढ़ें - वजन कम करने का तरीका)
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- बोटुलिनम (बोटोक्स) इन्जेक्शन (Botulinum injections) -
यह इन्जेक्शन प्रभावित मांसपेशी में लगाया जाता है, जिस से टिक की समस्या से राहत मिलती है। (और पढ़ें - मांसपेशियों में खिंचाव का इलाज)
- एडीएचडी दवाएं (ADHD medications) -
मेथिलफेनिडेट जैसे उत्तेजक दवाएं, जिनमें डेक्स्ट्रोएमफेटामिन (Dextroamphetamine) होता है, ये ध्यान और एकाग्रता में वृद्धि कर सकते हैं। हालांकि, टूरेट सिंड्रोम के कुछ मरीजों में एडीएचडी दवाएं टिक्स की स्थिति को खराब कर देती हैं। (और पढ़ें - एडीएचडी के लिए व्यवहार थेरेपी)
- सेंट्रल एड्रीनर्जिक इनहिबिटरस (Central adrenergic inhibitors) - क्लोनिडाइन और गॉनफैसिन जैसे दवाएं, जिनको डॉक्टर आमतौर पर हाई बीपी के लिए लिखते हैं। ये दवाएं कुछ बिहेवियरल लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं, जैसे मनोवेग नियंत्रण संबधी समस्या या अचानक से गुस्सा आना। इन दवाओं के दुष्प्रभाव में तंद्रा (Sleepiness) शामिल है। (और पढ़ें - bp kam karne ke upay)
- एंटीडिप्रेसेंट (Antidepressants) -
फ्लुऑक्सोटीन (Fluoxetine) दवाएं उदासी, चिंता और ओसीडी (OCD) के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। (और पढ़ें - ओसीडी का इलाज)
- मिर्गी की रोकथाम करने वाली दवाएं (Antiseizure medications) -
हाल ही में किए गए अध्ययन से पता चला कि टूरेट सिंड्रोम, टोपिरामेट (Topiramate) नामक दवा पर प्रतिक्रिया करता है। इस दवा को मिर्गी के दौरों की समस्या में इस्तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - मिर्गी के दौरे क्यों आते हैं)
थेरेपी:
बिहेवियरल थेरेपी:
बिहेवियरल थेरेपी को आमतौर पर एक मनोवैज्ञानिक या एक विशेष रूप से प्रशिक्षित थेरेपिस्ट द्वारा किया जाता है। बिहेवियरल थेरेपी टिक्स पर नजर रखने, पूर्वसूचक क्रोध की पहचान करने और उन गतिविधियों को सीखने में मदद करती है जो टिक्स के साथ नहीं हो पाती। (और पढ़ें - थेरेपी के फायदे)
ऐसी दो प्रकार की बिहेवियरल थेरेपी हैं, जो टिक्स को कम करने में मदद करती हैं, जैसे:
हेबिट रिवर्सल ट्रेनिंग:
इस थेरेपी में उन भावनाओं पर काम किया जाता है, जो टिक्स को ट्रिगर (संचालित) करती हैं। इसके अगले चरण में टिक्स की तीव्र इच्छा से राहत देने के लिए किसी वैकल्पिक या कम ध्यान देने योग्य तरीकों की खोज की जाती है। (और पढ़ें - जोंक चिकित्सा क्या है)
एक्सपोजर विद रिस्पोंस प्रिवेंशन (ERP):
यह तरीका आपको टिक्स की इच्छा को अच्छे से नियंत्रित करना सिखाती है। इसमें कुछ ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे टिक्स की इच्छा फिर से जागने लगती है। इस दौरान बिना टिक किए इसकी भावनाओं को तब तक सहन करना सीखाया जाता है, जब तक इच्छा शांत नहीं हो जाती। (और पढ़ें - क्रायो चिकित्सा क्या है)
साइकोथेरेपी (Psychotherapy):
यह टूरेट सिंड्रोम का मुकाबला करने में आपकी मदद करती है। साइकोथेरेपी इस विकार के साथ में होने वाली अन्य समस्याओं में भी आपकी मदद करती है, जैसे एडीएचडी, स्थिर विचार (Obsessions), अवसाद या चिंता आदि।
टूरेट सिंड्रोम से ग्रस्त हर बच्चे को एक सहिष्णु और सहानुभूतिशील व्यवस्था की जरूरत होती है, ये दोनों उन्हें अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और अपनी विशेष आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए पर्याप्त लचीलापन प्रदान करते हैं। इस व्यवस्था में निजी अध्ययन क्षेत्र, नियमित कक्षा के बाहर परीक्षा लिया जाना, असमय परीक्षण या मौखिक परीक्षा को भी शामिल किया जाता है।
(और पढ़ें - मनोचिकित्सा क्या है)
टिक्स को मैनेज करना:
ऐसी गतिविधियां, जिनमें प्रतिस्पर्धी खेल, कोई मनोरंजक कंप्यूटर गेम खेलना या कोई दिलचस्प किताब पढ़ना आदि शामिल हो सकते हैं। हालांकि, अत्यधिक उत्साह होने से भी कुछ लोगो में टिक्स हो जाता है, इसलिए कुछ गतिविधियों का उल्टा असर भी पड़ सकता है।
कई लोग टिक्स को कंट्रोल करने का तरीका स्कूल या काम के दौरान ही सीख लेते हैं। लेकिन कई बार टिक्स दबाने से तनाव बढ़ सकता है, जब तक फिर टिक न किया जाए।
समय के साथ-साथ टिक्स के प्रकार, आवृत्ति और उसकी गंभीरता में बदलाव आ सकते हैं। टिक्स अक्सर किशोरावस्था की उम्र में अधिक गंभीर होती है और वयस्कता आते-आते इसमें सुधार आने लगता है।
(और पढ़ें - एनेस्थीसिया कैसे काम करता है)