नए माता-पिता अपने शिशु को स्वस्थ रखने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। लेकिन कुछ मामलों में एक पूरी तरह से स्वस्थ दिख रहे बच्चे की बिना किसी कारण के मृत्यु हो जाती है। जब ऐसा किसी 1 वर्ष से कम आयु वाले शिशु के साथ होता है, तो इसे आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम कहा जाता है। आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम को अंग्रेजी में सड्डन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम या एसआईडीएस भी कहा जाता है। इस स्थिति में नवजात शिशु की अचानक बिना किसी कारण के मृत्यु हो जाती है।
विकसित देशों में पिछले 25 सालों में इस रोग के मामलों की संख्या लगभग 10 गुना कम हो चुकी है। हालांकि विश्व भर के आंकड़ों के अनुसार 1990 में हुई 22,000 मौतें घट कर 2015 में 19,200 पर आ गई हैं।
आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम के लक्षण
आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम के कोई ज्ञात लक्षण नहीं हैं। यह किसी स्वस्थ शिशु को अचानक से और बिना किसी प्रकार का संकेत दिए होता है।
आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम के कारण
शारीरिक व नींद के वातावरण से संबंधित कुछ कारक हो सकते हैं, जो शिशु को एसआईडीएस होने का खतरा बढ़ाते हैं। शिशु के अनुसार ये कारक भी अलग-अलग हो सकते हैं, जिसमें निम्न शामिल हैं:
शारीरिक कारक
- मस्तिष्क संबंधी दोष:
कुछ शिशु ऐसी विकृति या समस्या के साथ पैदा होते हैं, जिनकी एसआईडीएस के कारण मृत्यु होने की अधिक संभावना होती है। ऐसे कई शिशुओं में मस्तिष्क का वह भाग सही ढंग से विकसित नहीं हुआ होता जो सांस लेना और अन्य कार्य करने की प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है।
- जन्म के समय, शिशु का वजन कम होना:
समय से पहले जन्म या एक साथ कई बच्चों का जन्म मस्तिष्क को पूरी तरह से विकसित नहीं होने देता, इसके कारण शिशु का मस्तिष्क सांस लेने और दिल धड़कने जैसी स्वचालित प्रक्रिया को नियंत्रित नहीं कर पाता।
- श्वसन संक्रमण:
कई शिशु, जो एसआईडीएस के कारण मरते हैं, उन्हें हाल ही में सर्दी-जुकाम हुआ होता है जिसके कारण सांस लेने की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
सोने के दौरान आसपास का वातावरण
बच्चे के सोने के स्थान पर रखा सामान और उसके सोने की पॉजिशन के साथ उसकी शारीरिक समस्याएं एसआईडीएस होने के जोखिम को बढ़ा सकती हैं, उदाहरण के लिए-
- पेट के बल सोना:
कमर के बल सुलाने से शिशु को कोई समस्या नहीं होती जबकि पेट के बल सुलाने की पोजीशन से सांस लेने में दिक्क्त हो सकती है।
- नरम सतह पर सोना:
बच्चे को मुंह के बल किसी नरम सतह पर न सुलाएं, इससे सांस आनी बंद हो सकती है।
- अपने बिस्तर पर सुलाना:
जहां, शिशु को माता-पिता के कमरे में सुलाने से एसआईडीएस की संभावना कम होती है, वहीं उसे माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति और पालतू जानवर के साथ सुलाने से इस रोग की संभावना बढ़ सकती है।
- शिशु को अधिक गर्मी लगना:
सोते समय यदि बच्चे को जरूरत से ज्यादा गर्मी लगे तो एसआईडीएस विकसित होने की संभावना बढ़ सकती है।
आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम का इलाज
इस स्थिति का कोई इलाज संभव नहीं है क्योंकि यह बिना किसी लक्षण चेतावनी के अचानक से ोते है। लेकिन इस तरह के मामले ज्यादातर शिशु के सोने के दौरान होते हैं इसलिए बच्चे को सुलाते समय या नींद के दौरान निम्न सावधानियां बरतना जरूरी है
पीठ के बल सुलाएं:
1 वर्ष से कम आयु वाले शिशु को कभी भी उसके पेट या अन्य भाग के सहारे न सुलाएं, शिशु को केवल उसकी कमर के सहारे सुलाएं। ऐसा करना उसके जागते समय जरूरी नहीं है। बेबीसीटर या परिवार के अन्य सदस्यों को अपने शिशु को सही पॉजिशन में सुलाने का तरीका बताएं।
बच्चे के सोने की जगह को ज्यादा से ज्यादा खाली रखने की कोशिश करें:
शिशु को नरम या मोटी सतह वाले गद्दे की जगह किसी पतले गद्दे पर सुलाएं। शिशु के पास कोई तकिया या खिलौना न छोड़े। इन चीजों को शिशु के मुंह के पास रखने से उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
शिशु को गर्मी न लगने दें:
शिशु के लिए किसी गर्म चादर या कपड़ों का इस्तेमाल न करें, ताकि उन्हें अधिक गर्मी न लगे। शिशु का सिर न ढकें।
स्तनपान:
शिशु को महीने तक स्तनपान करने से एसआईडीएस की संभावना कम हो जाती है।
धूम्रपान:
किसी को भी शिशु के आसपास धूम्रपान का सेवन न करने दें।