जन्म लेने के बाद बच्चे की पहली सांस ही उसके पूरी जीवन में श्वसन संबंधी बदलावों (पॉजिटिव-नेगेटिव दोनों) को सक्रिय कर सकती है। इतना ही नहीं, इससे नवजात बच्चों की अचानक मृत्यु (सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम या एसआईडीएस) होने से जुड़े जरूरी तथ्यों का भी पता चला सकता है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया (यूवीए) के स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने अध्ययन के तहत इस जानकारी और इससे जुड़े पहलुओं पर रोशनी डालनी है। दरअसल, यूवीए की एक रिसर्च टीम ने श्वसन मार्ग में एक ऐसे सिग्नलिंग सिस्टम का पता लगाया है, जो जन्म के तुरंत बाद एक्टिवेट होकर बच्चे की प्रारंभिक श्वसन प्रक्रिया को सपोर्ट करता है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि बच्चे की जिस पहली सांस पर माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहता, संभवतः वह इसी सपोर्ट सिस्टम के चलते सक्रिय होती है।
इस जानकारी पर बात करते हुए यूवीए के डिपार्टमेंट ऑफ फार्माकोलॉजी के चेयरमैन डगल बेलिस कहते हैं, 'नवजात बच्चों के लिए जन्म लेने के क्षण मानसिक रूप से संवेदनशील होते हैं, क्योंकि उस समय उन्हें अपने शरीर के कई फंक्शन पर स्वयं ही नियंत्रण करना होता है। इसमें सांस लेना भी शामिल है। हमारा मानना है कि इस सपोर्ट सिस्टम के एक्टिव होने के कारण बच्चों को इस नाजुक समय में अतिरिक्त सुरक्षा मिलती है।'
अध्ययन के तहत मिले परिणामों से शोधकर्ता को यह समझने में मदद मिली है कि कैसे सांस संबंधी ट्रांजिशन्स एक कोमल बच्चे को ब्रेन डैमेजिंग और संभावित जानलेवा ब्रीथिंग पॉजेज (सांस लेते समय होने वाली रुकावटें) के खतरे में डाल सकते हैं और आगे चलकर एक स्थिर और मजबूत फिजियोलॉजिकल सिस्टम के निर्माण में भूमिका निभाते हैं, जो बाकी पूरे जीवन शरीर को बिना किसी बाधा के शरीर को निरंतर ऑक्सीजन पहुंचाता है।
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जन्म से पहले बच्चे को सांस लेने की जरूरत नहीं पड़ती। उसकी ब्रीथिंग मूवमेंट रुक-रुक कर होती हैं। इस कारण जन्म के समय उसकी सांस लेने की प्रक्रिया में जो बदलाव या ट्रांजिशन होता है, वह काफी जोखिम भरा हो सकता है। यूवीए के शोधकर्ताओं और उनके साथ काम कर रहे यूनिवर्सिटी ऑफ ऐल्बर्टा और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने चूहों की मदद से किए परीक्षणों में एक विशेष जीन के बारे में जाना है, जो जन्म के समय तुरंत सक्रिय हो जाता है। यह वंशाणु बच्चे के न्यूरॉन्स के एक समूह में सक्रिय होता है और एक छोटा सा न्यूरोट्रांसमीटर बनाता है। यह ट्रांसमीटर असल में अमीनो एसिड की एक श्रृंखला होती है जो न्यूरॉन्स के बीच सूचना को प्रसारित करती है। पीएसीएपी नामक यह ट्रांसमीटर बच्चे के जन्म के तुरंत बाद इन न्यूरॉन्स द्वारा स्टार्ट कर दिया जाता है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि चूहों में इस पेप्टाइड को दबाने से उनमें सांस से जुड़ी समस्याएं पैदा हुई थीं और श्वसन प्रक्रिया में रुकावट आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ गई थी। ये रुकावटें ब्रीथिंग के लिहाज से काफी खतरनाक मानी जाती हैं। माहौल के साथ बदलते तापमान में इस प्रकार की श्वसन संबंधी रुकावटों में और बढ़ोतरी देखी गई है। अध्ययन में किए गए ऑब्जर्वेशंस के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि न्यूरोपेप्टाइड सिस्टम के साथ ये समस्याएं एसआईडीएस का कारण बन सकती हैं।
जन्म के एक साल के अंदर बच्चे की अकारण मौते होने को एसआईडीएस कहते हैं, जिसे मेडिकल क्षेत्र के लोग क्रिब डेथ भी कहते हैं। पश्चिमी देशों में नवजात बच्चों की आकस्मिक मौत के लिए इसे एक प्रमुख कारण माना जाता है। एसआईडीएस के लिए शोधकर्ता जेनेटिक और पर्यावरण संबंधी फैक्टर्स को जिम्मेदार बताते हैं, जिनमें तापमान शामिल है। वहीं, अब यूवीए का रिसर्च भी कहता है कि न्यूरोपेप्टाइड सिस्टम के साथ पैदा हुई श्वसन संबंधी रुकावटें बच्चों में एसआईडीएस का खतरा बढ़ाने के साथ अन्य प्रकार की ब्रीथिंग प्रॉब्लम्स में इजाफा कर सकती हैं।
वहीं, पीएसीएपी को लेकर वैज्ञानिकों ने कहा है, 'यह पहला सिग्नलिंग मॉलिक्यूल है जो जन्म के समय ब्रीथिंग नेटवर्क (श्वसनमार्ग) द्वारा विशेष रूप से और व्यापक स्तर पर सक्रिय होता है। इसे बच्चों में एसआईडीएस के खतरे से भी आनुवंशिक रूप से जोड़कर देखा गया है। एसआईडीएस के कारण जटिल हो सकते हैं और ऐसा होने के अन्य महत्वपूर्ण फैक्टर्स भी हो सकते हैं, जिनके बारे में पता लगाने की जरूरत है।'