हाइपरफॉस्फेटेमिया क्या है?
व्यक्ति के रक्त में फास्फेट की असाधारण रूप से अधिकता को हाइपरफॉस्फेटेमिया कहा जाता है। फॉस्फेट एक प्रकार का इलेक्ट्रोलाइट होता है। यह विद्युत रूप से आवेशित होता है, जिसमें फास्फोरस खनिज पाए जाते हैं।
शरीर को हड्डियां व दांत मजबूत बनाने और कोशिकाओं के लिए झिल्ली बनाने के लिए कुछ निश्चित मात्रा में फास्फेट की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा ऊर्जा बनाने के लिए भी शरीर फॉस्फेट का उपयोग करता है। लेकिन फॉस्फेट की अधिक मात्रा विपरीत अवस्था में काम करती है और इससे हड्डियों व मांसपेशियों संबंधी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। यहां तक कि हाइपरफॉस्फेटेमिया के कारण दिल का दौरा पड़ना और स्ट्रोक जैसी गंभीर समस्याएं होने का खतरा भी काफी बढ़ जाता है।
हाइपरफॉस्फेटेमिया या रक्त में फॉस्फेट का अत्यधिक स्तर गुर्दे संबंधी समस्याएं होने का संकेत भी देता है। यह आमतौर पर उन लोगों को होता है, जिन्हें लंबे समय से गुर्दे के रोग (Chronic kidney disease) है। जो लोग क्रोनिक किडनी डिजीज की अंतिम स्टेज पर हैं, उन्हें हाइपरफॉस्फेटेमिया होने का सबसे अधिक खतरा रहता है।
हाइपरफॉस्फेटेमिया के लक्षण क्या हैं?
हाइपरफॉस्फेटेमिया से ग्रस्त अधिकतर लोगों को आमतौर पर किसी प्रकार के लक्षण विकसित नहीं होते हैं। जिन लोगों को लंबे समय से गुर्दे संबंधी रोग हैं, उनके रक्त में फॉस्फेट का स्तर बढ़ जाता है और उसके परिणामस्वरूप कैल्शियम का स्तर कम हो जाता है। शरीर में कैल्शयम की कमी होने पर निम्न लक्षण हो सकते हैं -
- मांसपेशियों में दर्द
- मांसपेशियों में ऐंठन होना
- मुंह के आस-पास सुन्न होना
- हड्डियों में दर्द
- जोड़ों में दर्द
- हड्डियां कमजोर होना
- त्वचा पर चकत्ते होना
- त्वचा में खुजली होना
- किसी हिस्से पर सूजन होना
हाइपरफॉस्फेटेमिया या उसके कारण होने वाली अन्य जटिलताओं के कारण मरीज का स्वास्थ्य कई बार काफी प्रभावित हो जाता है और परिणामस्वरूप अन्य लक्षण भी विकसित होने लग जाते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -
डॉक्टर को कब दिखाएं?
कई बार मरीज को हाफरफॉस्फेटेमिया का पता नहीं चल पाता है और किसी अन्य बीमारी के लिए टेस्ट करवाने के बाद ही इस रोग का पता चलता है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर खुद देख निर्धारित करते हैं कि यह स्थिति कितनी गंभीर है और इसका इलाज करना है या नहीं। इसके अलावा यदि आपको उपरोक्त में से कोई लक्षण महसूस हो रहा है या फिर किसी अन्य कारण से आपको लगता है कि आपको हाइपरफॉस्फेटेमिया हो सकता है, तो आपको डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए।
हाइपरफॉस्फेटेमिया के कारण क्या हैं?
हाइपरफॉस्फेटेमिया के विभिन्न मामलों के अंदरूनी कारण भी अलग-अलग हो सकते हैं। इसके कुछ मामलों में अंदरूनी कारण का सटीक रूप से पता नहीं चल पाता है। जबकि कुछ विशेषज्ञों के अनुसार गुर्दे संबंधी रोग ही हाइपरफॉस्फेटेमिया का सबसे मुख्य कारण होते हैं।
एक स्वस्थ किडनी रक्त में खनिज पदार्थों को सामान्य स्तर पर बनाए रखने का काम करती है। लेकिन जब किसी रोग के कारण किडनी ठीक से काम न कर पाए तो खनिज के स्तर असामान्य होने लगते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य समस्याएं भी हैं, जो रक्त में फॉस्फेट के स्तर की अधिकता से जुड़ी हो सकती हैं, इनमें निम्न शामिल हैं -
- डायबिटीज नियंत्रित न रहना
- डायबिटिक कीटोएसिडोसिस
- हाइपरथायरॉइडिज्म
- विटामिन डी का स्तर बढ़ जाना
- कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाना
कुछ निश्चित प्रकार की दवाएं भी हैं, जो रक्त में फॉस्फेट का स्तर बढ़ा सकती हैं और कई बार यह असामान्य रूप से बढ़ जाता है, जिससे हाइपरफॉस्फेटेमिया रोग हो जाता है। इसके अलावा जीवनशैली संबंधी अच्छी आदतें न अपनाना और स्वास्थ्यकर व पौष्टिक आहार न खाना भी कुछ हद तक गुर्दे संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है।
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हाइपरफॉस्फेटेमिया का परीक्षण कैसे किया जाता है?
यदि किसी व्यक्ति को हाइपरफॉस्फेटेमिया या उससे संबंधी किसी बीमारी के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो डॉक्टर सबसे पहले उनके लक्षणों की जांच करते हैं। परीक्षण के दौरान मरीज या उनके करीबियों से उनकी जीवनशैली संबंधी आदतों के बारे में पूछा जाता है और यह भी पूछा जाता है कि मरीज हाल ही में कौन सी दवाएं ले रहा है।
यदि इन परीक्षणों की मदद से स्पष्ट नहीं हो पा रहा है, तो डॉक्टर कुछ अन्य टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं, जिनकी मदद से शरीर में फॉस्फेट के स्तर का पता लगाकर पुष्टि की जा सकती है -
कुछ गंभीर मामलों में डॉक्टर गुर्दों का एक्स रे करवाने की सलाह देते हैं, ताकि गुर्दों में किसी भी प्रकार की क्षति या असामान्यता का पता लगाया जा सके।
हाइपरफॉस्फेटेमिया का इलाज कैसे होता है?
हाइपरफॉस्फेटेमिया का इलाज स्थिति की गंभीरता, अंदरूनी कारण और मरीज के द्वारा महसूस किए जाने वाले लक्षणों के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। यदि गुर्दे क्षतिग्रस्त होने के कारण हाइपरफॉस्फेटेमिया रोग हुआ है, तो डॉक्टर तीन तरीकों से इस स्थिति का इलाज कर सकते हैं -
- आहार में फॉस्फेट के स्तर को कम करना
- डायलिसिस की मदद से अतिरिक्त फॉस्फेट को बाहर निकालना
- दवाओं की मदद से आंतों द्वारा फॉस्फेट को अवशोषित करने की क्षमता को कम करना
डॉक्टर इलाज के लिए सबसे पहले मरीज के आहार से उन खाद्य पदार्थों को कम कर देते हैं, जिनमें अधिक मात्रा में फॉस्फेट पाया जाता है, जिनमें निम्न शामिल है -
डायलिसिस की मदद से अतिरिक्त फॉस्फेट को शरीर से बाहर निकालना -
सिर्फ आहार में कमी करके ही फॉस्फेट को कम नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। इस इलाज प्रक्रिया का उपयोग आमतौर पर किडनी खराब होने पर ही किया जाता है, जब किडनी अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में असमर्थ हो जाती है। डायलिसिस एक विशेष मशीन होती है, जो किडनी की जगह काम करती है और शरीर से अतिरिक्त पानी, नमक, केमिकल व अन्य अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल देती है।
दवाएं -
आहार में बदलाव और डायलिसिस के बाद डॉक्टर कुछ प्रकार की दवाएं भी दे सकते हैं। ये दवाएं भी शरीर से अतिरिक्त फॉस्फेट को बाहर निकालने में मदद करती हैं। कुछ प्रकार की दवाएं हैं, जो आंतों द्वारा अवशोषित की जा रही फॉस्फेट की मात्रा को कम कर देती हैं। इनमें निम्न दवाएं शामिल हैं -
- कैल्शियम बेस्ड फॉस्फेट बाइंडर्स (कैल्शियम एस्टेट और कैल्शियम कार्बोनेट)
- लैन्थानम
- सिवेल्म हाइड्रोक्लोराइड
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