डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर एक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थिति है जिसे डिपर्सनलाइजेशन-डीरियलाइजेशन डिसऑर्डर (डीडीडी) के नाम से भी जाना जाता है। डिपर्सनलाइजेशन का अर्थ स्वयं से विरक्त होना। यानी आपको ऐसा एहसास होने लगता है कि आप वास्तविक नहीं हैं। वहीं डीरियलाइजेशन, दूसरे लोगों के प्रति आपके व्यवहार को प्रभावित करता है। इसमें आपको ऐसा महसूस होता है कि आपके आसपास के लोग वास्तविक नहीं हैं। अर्थात यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें आप स्वयं और आसपास की दुनिया से दूर या अलग-थलग महसूस करने लगते हैं।

दूसरे शब्दों में विशेषज्ञ इसे ऐसी मानसिक स्थिति के रूप में देखते हैं, जिसमें व्यक्ति को ऐसा एहसास होता है कि वह स्वयं को शरीर के बाहर से देख रहा है, वैसा ही जैसा अनुभव सपने के दौरान होता है। हालांकि, इस विकार से ग्रसित लोग वास्तविकता को जान पाने में सक्षम होते हैं। उन्हें इस बात का एहसास होता है कि जैसा उन्हें महसूस हो रहा है वास्तव में वैसा होता नहीं है। किसी व्यक्ति को ऐसा अनुभव कुछ समय के लिए अथवा लगातार कई वर्षों तक भी हो सकता है। डिपर्सनलाइजेशन एक मानसिक समस्या होने के साथ कई अन्य विकारों का लक्षण भी हो सकता है। जिसमें कई प्रकार के व्यक्तित्व विकार, सीजर डिसऑर्डर और कुछ अन्य मस्तिष्क संबंधी रोग शामिल हैं।

डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर, डिसोसिएटिव डिसआर्डर नाम की स्थितियों के समूह में से एक है। कई सारी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों जैसे याददाश्त, चेतना, जागरुकता, पहचान आदि की शक्ति के कम होने को डिसोसिएटिव डिसआर्डर कहा जाता है। इनमें से एक या अधिक समस्याओं की स्थिति में आपको लक्षण नजर आ सकते हैं।

इस लेख में हम डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानेंगे।

व्यक्तित्वलोप (डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर) के लक्षण - Symptoms of Depersonalization and Derealization in Hindi

डीडीडी के लक्षणों को आमतौर पर दो श्रेणियों में बांटा गया है। प​हला डिपर्सनलाइजेशन के लक्षण और दूसरा डीरियलाइजेशन के लक्षण। डीडीडी के शिकार लोगों में एक या दोनों श्रेणियों के लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

डिपर्सनलाइजेशन के लक्षण

  • ऐसा महसूस करना जैसे आप अपने शरीर से बाहर हैं। कभी-कभी ऐसा लगना जैसे बाहर से आप स्वयं को देख रहे हों।
  • स्वयं से अलग महसूस करना, ऐसा लगना जैसे आप वास्तविक नहीं हैं।
  • मन या शरीर का सुन्न हो जाना।
  • ऐसा महसूस करना कि आप जो कह या कर रहे हैं उस पर आपका नियंत्रित नहीं है।
  • ऐसा महसूस करना जैसे आपके शरीर के कुछ हिस्सों का आकार गलत है।
  • यादों का अनुभव कर पाने में असमर्थता

डीरियलाइजेशन के लक्षण

  • अपने आसपास की चीजों को समझ पाने में दिक्क्त, ऐसा महसूस होना जैसे सबकुछ सपना हो।
  • अपने और बाकी दुनिया के बीच एक कांच की दीवार जैसा अनुभव करना, जिसमें आप सबकुछ देख तो रहे हैं लेकिन उनसे जुड़ नहीं पा रहे हैं।
  • समय का अनुभव न होना। बहुत पुरानी चीजें ऐसा लगना जैसे तुरंत हुई हैं, जबकि हाल की घटनाओं का बहुत पहले जैसा अनुभव होना।
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डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर के क्या कारण हैं? - Causes of Depersonalization disorder in Hindi

डिपर्सनलाइजेशन-डीरियलाइजेशन डिसऑर्डर किन कारणों से होता है यह अब तक स्पष्ट नहीं हो सका है। विशेषज्ञों का मानना है कि जिन लोगों को कम उम्र में बहुत अधिक तनाव या बचपन में किसी गंभीर घटना का सामना करना पड़ा हो, उनमें इसके लक्षणों के विकसित होने का खतरा रहता है। उदाहरण के लिए यदि आपका बचपन ऐसी जगह में बीता हो जहां हिंसा और उपद्रव रहा हो तो आपका दिमाग उन स्थितियों से खुद को अलग करने का प्रयास करने लगता है। इसके अलावा कुछ दवाइयों के सेवन से भी दिमाग पर नकारात्मक असर पड़ता है, जिसके कारण डीडीडी के लक्षण विकसित हो सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कई प्रकार के जैविक, मनोवैज्ञानिक और पर्यावरणीय कारकों के चलते भी लोगों को डीडीडी के लक्षणों का अनुभव हो सकता है। अन्य मानसिक विकारों की तरह डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर भी आमतौर पर युद्ध, दुर्व्यवहार, दुर्घटना, आपदा या अत्यधिक हिंसा जैसी स्थितियों में ट्रिगर होता है।

डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर का निदान - Diagnosis of Depersonalization disorder in hindi

यदि किसी व्यक्ति में डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर के लक्षण नजर आते हैं तो डॉक्टर उससे मेडिकल हिस्ट्री जानने के साथ पुष्टि के लिए शारीरिक परीक्षण करते हैं। वैसे तो अब तक डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर के निदान के लिए कोई विशेष लैब परीक्षण नहीं है, इसलिए डॉक्टर आवश्यकतानुसार कई प्रकार के नैदानिक परीक्षण और खून की जांच कराने की सलाह दे सकते हैं। इससे समस्या के कारणों का पता लगा पाना आसान होता है। उपरोक्त परीक्षणों के बाद भी डॉक्टर को समस्या का कोई पुख्ता कारण समझ नहीं आता है तो वह रोगी को मनोचिकित्सक या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के पास भेज सकते हैं।

यहां ध्यान रखें कि कई बार मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का सही से निदान करने में कुछ समय लग सकता है। ऐसे में रोगी और उसके परिजनों को चाहिए कि वह सभी प्रकार की समस्याओं को डॉक्टर को बताएं। यदि आपको अवसाद या चिंता भी रहती है तो इस बारे में भी डॉक्टर को बताएं। साल 2003 में डीडीडी के 117 मामलों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि ज्यादातर लोगों में अवसाद और चिंता दोनों ही लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर की रोकथाम

डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर की रोकथाम नहीं की जा सकती है। हालांकि, लक्षण के शुरुआती समय में ही यदि इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे ठीक करने में काफी हद तक मदद जरूर मिल सकती है।

डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर का इलाज -Treatment of Depersonalization disorder in hindi

डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर के इलाज में आमतौर पर थेरपी को प्रयोग में लाया जाता है। जिनमें साइकोडायनेमिक थेरपी और कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी (सीबीटी) को प्रयोग में लाया जाता है।

मनोचिकित्सा : मानसिक और भावनात्मक विकारों के लिए इस थेरपी को काफी प्रभावी माना जाता है। इसकी मदद से रोगी को विचारों और भावनाओं को बेहतर ढंग से व्यक्त करने में मदद मिलती है। कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी (सीबीटी) इसी चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत आता है, जिसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति की सोच में परिवर्तन लाना होता है।

दवाइयां : आमतौर पर डिसोसिएटिव डिसऑर्डरों के उपचार के लिए दवाइयों को प्रयोग में नहीं लाया जाता है। अगर रोगी अवसाद या चिंता से ग्रस्त है, आवश्यकतानुसार चिकित्सक उसे एंटीडिप्रेशन वाली दवाइयों के सेवन की सलाह दे सकते हैं।

फैमिली थेरेपी : इस तरह की थेरेपी के दौरान रोगी के परिवार को विकार और उसके कारणों के बारे में बताया जाता है। इसका मुख्य कारण यह होता है कि परिवार के सदस्य भी लक्षणों को पहचान कर, रोगी के साथ ऐसा व्यवहार करें, जिससे लक्षणों को जल्दी से जल्दी ठीक किया जा सके।

डिपर्सनलाइजेशन डिसऑर्डर के ज्यादातर रोगी पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। इस विकार से जुड़े लक्षण अक्सर अपने आप दूर हो जाते हैं। जिन लोगों को लंबे समय से यह समस्या हो ही हो उनमें इलाज के उपरोक्त माध्यमों को प्रयोग में लाकर समस्या को ट्रिगर करने वाले लक्षणों को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।

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