रोगी के लक्षण, शारीरिक एवं इमेजिंग परीक्षणों के परिणाम और रक्त परीक्षण से पता चलता है कि किसी व्यक्ति के अन्दर हड्डी का कैंसर मौजूद है। लेकिन ज्यादातर मामलों में डॉक्टर इस संदेह को सुनिश्चित करने के लिए माइक्रोस्कोप की सहायता से संबंधित ऊतकों या कोशिका के नमूना का परीक्षण कर इस बात का पुष्टि करते हैं। इस प्रक्रिया को 'बायोप्सी' के रूप में जाना जाता है।
अन्य रोग, जैसे हड्डी में संक्रमण के कारण भी बोन कैंसर के लक्षण और साथ ही साथ इन मामलों में इमेजिंग परीक्षण परिणाम भी आपको बोन कैंसर के लक्षणों को ले के भ्रमित कर सकता है। हड्डी के ट्यूमर का सही निदान उसके प्रभावित स्थान के बारे में पूरी जानकारी (इसके अंतर्गत प्रभावित हड्डी एवं संबंधित हड्डी का कौन सा हिस्सा प्रभावित है जैसी जानकारी का होना जरुरी है) और माइक्रोस्कोप परीक्षण पर निर्भर करता है।
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1. एक्स-रे:
अधिकांश बोन कैंसर, बोन एक्स-रे कराने पर दिखाई देते हैं। हड्डियों में मौजूद कैंसर के वजह से हड्डी जो ठोस होते हैं उसके जगह 'खुरखुरा' दिखाई दे सकती है। कैंसर हड्डी में छेद के रूप में भी प्रकट हो सकता है। कभी-कभी डॉक्टर प्रभावित हड्डी में ट्यूमर देख सकते हैं, जो आसपास के ऊतकों (जैसे मांसपेशियों या वसा) में फैल सकती है।
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2. गणना टोमोग्राफी (सीटी स्कैन):
सीटी स्कैन, स्टेजिंग कैंसर में काफी सहायक होते हैं। सीटी स्कैन से आपको यह पता चलता है कि आपकी हड्डी का कैंसर आपके फेफड़े, यकृत, या अन्य अंगों में फैला है या नहीं। सीटी स्कैन से लिम्फ नोड्स और शरीर के दूर के अंगों को देखने में मदद मिलती है, जहाँ मेटास्टाटिक कैंसर मौजूद हो सकता है।
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3. चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई स्कैन):
एमआरआई स्कैन हड्डी के ट्यूमर को रेखांकित करने के लिए सबसे अच्छा परीक्षण होता है।यह परीक्षण मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को देखने में भी विशेष रूप से उपयोगी होते हैं।
4. रेडियोन्यूक्लाइड बोन स्कैन:
अगर कैंसर शरीर के एक हड्डी से अन्य हड्डियों में फैल गई है तो इस प्रक्रिया से उसे दखने में मदद मिलती है । यह नियमित एक्स-रे से पहले ही 'मेटास्टेस' को खोज सकता है। इसके साथ ही साथ रेडियोन्यूक्लाइड बोन स्कैन के माध्यम से यह दिख सकता हैं कि प्राथमिक कैंसर की वजह से हड्डी में कितना नुकसान हुआ है।
5. पॉसीट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी स्कैन):
पीईटी स्कैन पूरे शरीर में कैंसर की तलाश करने में उपयोगी होता है। पीईटी स्कैन कभी-कभी यह बताने में भी सफल होते है कि ट्यूमर कैंसर जनक है या नहीं। कुछ प्रकार के कैंसर को बेहतर ढंग से समझने के लिए पीईटी स्कैन को सीटी स्कैन के साथ किया जाता है।
6. बायोप्सी (Biopsy):
'बायोप्सी' ट्यूमर से ली गई कोशिका (टिशू) का नमूना होता है, ताकि माइक्रोस्कोप की सहायता से इसका परीक्षण किया जा सके। बायोप्सी ही एकमात्र तरीका है, जिससे यह पता चलता है कि संबंधित ट्यूमर कैंसर है अथवा अन्य हड्डियों की बीमारी। यदि शरीर में कहीं भी कैंसर मौजूद है तो 'बायोप्सी' से डॉक्टर यह पता कर सकते है कि क्या यह एक प्राथमिक हड्डी का कैंसर है या कहीं और से शुरू होकर हड्डियों में फैल गया है। कई प्रकार के ऊतक और सेल के नमूने बोन कैंसर की जाँच हेतु उपयोगी होते है। यह बहुत महत्वपूर्ण है की जो सर्जन ट्यूमर के निदान और उपचार के लिए 'बायोप्सी' की प्रक्रिया करता है, उसे अनुभवी होना चाहिए।
- सुई बायोप्सी (Needle biopsy):
सुई बायोप्सी के दो प्रकार होते हैं: फाइन सुई बायोप्सी और कोर सुई बायोप्सी। फाइन सुई बायोप्सी (एफएनए) के अंतर्गत डॉक्टर एक बहुत पतली सुई को सिरिंज से जोड़ कर ट्यूमर से कुछ द्रव और कुछ कोशिकाओं को निकालते हैं। जबकि कोर सुई बायोप्सी में, चिकित्सक ऊतकों का एक छोटा समूह निकालने के लिए एक बड़ी सुई का उपयोग करते है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि प्राथमिक हड्डियों के कैंसर का निदान करने के लिए एफएनए(फाइन सुई बायोप्सी) की तुलना में कोर सुई बायोप्सी ज्यादा बेहतर होती है।
- सर्जिकल बोन बायोप्सी (Surgical bone biopsy):
इस प्रक्रिया में एक सर्जन को ट्यूमर तक पहुंचने के लिए त्वचा को काटने की जरूरत होती है ताकि वह ऊतकों का एक छोटा सा टुकड़ा निकाल सके। इसे इन्सिज़न (Incisional) बायोप्सी भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत यदि सारे ट्यूमर हटा दिया जाता है (न कि सिर्फ एक छोटा सा टुकड़ा) तो से 'एक्ससाइसिन बायोप्सी' (excisional biopsy ) कहा जाता है। यदि इस प्रकार की बायोप्सी की आवश्यकता होती है, तो यह महत्वपूर्ण है कि बायोप्सी करने वाला सर्जन भी वही हो, जो बाद में कैंसर को हटाएगा।