एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (एएलएस) तंत्रिका तंत्र की ऐसी बीमारी है, जिसमें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान होने लगता है, इसकी वजह से मांसपेशियों पर नियंत्रण धीरे-धीरे कम होने लगता है।
इस बीमारी को 'लू गेहरिग डिजीज' नाम से भी जाना जाता है। लू गेहरिग एक बेसबॉल खिलाड़ी का नाम था, जिनकी वजह से सबसे पहले इस बीमारी की पहचान हुई थी।
एएलएस के शुरुआत में मांसपेशियों की मरोड़, अंग में कमजोरी या बोलने में दिक्कत हो सकती है। एएलएस में ऐसी मांसपेशियों को नियंत्रित करने में समस्या आती है जो चलने, बोलने, खाने और सांस लेने के लिए जरूरी हैं।
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एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस के लक्षण
एएलएस के संकेत और लक्षण इस बीमारी से ग्रस्त हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन-सा न्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिका) प्रभावित हुआ है। इस बीमारी के संकेतों और लक्षणों में शामिल हो सकते हैं -
- दैनिक गतिविधियों को सामान्य रूप से करने में या चलने में कठिनाई
- लड़खड़ाना और गिरना
- टांग, पैर या टखनों में कमजोरी
- हाथ में कमजोरी या अकड़न होना
- बोलने में तकलीफ या निगलने में कठिनाई
- मांसपेशियों में ऐंठन और बाहों, कंधों व जीभ में मरोड़ की समस्या
- बिन बात के रोना, हंसना या जम्हाई लेना
- व्यवहार में बदलाव
- पतला और नाक के बल बोलना
- चबाने में दिक्कत
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एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस का कारण
एएलएस के कारण मोटर न्यूरॉन्स धीरे-धीरे बिगड़ने लगते हैं और अंततः पूरी तरह से खराब हो जाते हैं। मोटर न्यूरॉन्स मांसपेशियों के जरिए मस्तिष्क से लेकर रीढ़ की हड्डी तक फैले होते हैं। जब मोटर न्यूरॉन्स को किसी तरह का नुकसान पहुंचता है, तो वे मांसपेशियों को संदेश भेजना बंद कर देते हैं, इसलिए मांसपेशियां काम नहीं कर पाती हैं।
यह समस्या 5 से 10 फीसदी लोगों में जेनेटिक रूप से भी हो सकती है। बाकी 90 से 95 फीसदी मामलों के पीछे का कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है।
हालांकि शोधकर्ता इस बीमारी के संभावित कारणों पर अध्ययन कर रहे हैं। अधिकांश सिद्धांतों के अनुसार यह आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों के बीच की एक जटिल स्थिति हो सकती है।
एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस का जोखिम
एएलएस के जोखिम कारकों में शामिल हो सकते हैं :
- वंशानुगत: एएलएस से ग्रसित लगभग 10 प्रतिशत मामले जेनेटिक हो सकते हैं यानी कि यह समस्या परिवार के अन्य सदस्यों में भी ट्रांस्फर हो सकती है। जेनेटिक रूप से एएलएस वाले मामलों में इस बीमारी के पारित होने का जोखिम 50 फीसदी होता है।
- उम्र: एएलएस का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता जाता है और 40 से 60 वर्ष की उम्र के लोगों में यह बीमारी सबसे ज्यादा होती है।
- सेक्स: 65 वर्ष की आयु से पहले यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा प्रभावित करती है। हालांकि, यह सेक्स अंतर 70 वर्ष की आयु के बाद गायब हो जाता है।
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एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस का इलाज
एएलएस का कोई इलाज नहीं है, इसलिए उपचार के तौर पर लक्षणों को कम करने पर ध्यान दिया जाता है। इसमें होने वाली समस्याओं को ठीक करना और रोग की प्रगति की दर को धीमा करना शामिल है।
1995 में खाद्य और औषधि प्रशासन ने एएलएस के उपचार के लिए रेल्यूजोल नामक दवा को मान्यता दी थी। यह रोग की प्रगति को धीमा करने में सक्षम है। इसके बाद मई 2017 में रेल्यूजोल को एएलएस के इलाज के लिए मंजूरी दी गई थी। यह एक तिहाई तक शारीरिक कार्य में आई कमी में सुधार ला सकता है।
इसके अलावा कुछ थेरेपी की भी मदद ली जा सकती है :
- फिजिकल थेरेपी: फिजिकल थेरेपी के जरिए दर्द और गतिशीलता से जुड़ी समस्याओं को ठीक करने में मदद मिल सकती है।
- ऑक्यूपेशनल थेरेपी: मानसिक या शारीरिक रोग या अक्षमता से ग्रस्त लोगों को सामान्य जीवन जीने और जितना संभव हो सक्रिय बनाने के लिए ऑक्यूपेशनल थेरेपी का सहारा लिया जा सकता है।
- ब्रीथिंग थेरेपी: सांस लेने वाली मांसपेशियों के कमजोर होने पर ब्रीथिंग थेरेपी की जरूरत पड़ सकती है। इसमें ब्रीथिंग डिवाइस के जरिए प्रभावित व्यक्ति को रात में बेहतर सांस लेने में मदद मिलती है। हालांकि, कुछ व्यक्तियों को मैकेनिकल वेंटिलेशन की आवश्यकता हो सकती है।
इस बीमारी के बढ़ने पर लक्षणों को रोकने के लिए इलाज महंगा होता जाता है। ऐसे में बीमारी के संकेतों को पहचानने के बाद तुरंत डॉक्टर को बताएं, ताकि शुरुआती स्तर पर ही इसे नियंत्रित किया जा सके।