लेप्टोस्पायरोसिस क्या है?
लेप्टोस्पायरोसिस एक दुर्लभ बैक्टीरियल संक्रमण है जो जानवरों से फैलता है। ये इन्फेक्शन जानवरों के मूत्र से लोगों में फैलता है, खासकर कुत्तों, चूहों और खेत में रहने वाले जानवरों से। हो सकता है किसी जानवर को इस बैक्टीरिया से संक्रमित होने पर कोई लक्षण न हों, लेकिन वे संक्रामक हो सकते हैं। ज्यादातर मामलों में लेप्टोस्पायरोसिस के लक्षण परेशान तो करते हैं, लेकिन ये घातक नहीं होते।
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लेप्टोस्पायरोसिस के लक्षण क्या हैं?
लेप्टोस्पायरोसिस से ग्रस्त व्यक्ति को तेज बुखार, चकत्ते, सिरदर्द, दस्त, उल्टी, आंखें लाल होना और पीलिया जैसी समस्याएं होने लगती हैं। इससे बचने का तरीका है कि ऐसी जगह पर नंगे पैर न घूमें जहां जानवरों का मूत्र हो सकता है, जैसे खेत में। इसके अलावा ऐसे किसी भी जानवर के संपर्क में आने से बचें, जो लेप्टोस्पायरोसिस से संक्रमित हो सकता है। इसके लिए किसी संक्रमित जगह पर जाने से पहले पूरे कपडे और जूते पहन लें, क्योंकि अगर आपके शरीर में कहीं, घाव, चोट या खरोंच है, तो लेप्टोस्पायरोसिस का बैक्टीरिया आपके शरीर में जा सकता है। वैसे तो ये बैक्टीरिया एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता, लेकिन स्तनपान या सेक्स के माध्यम से ये फैल सकता है।
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लेप्टोस्पायरोसिस क्यों होता है?
लेप्टोस्पायरोसिस से संक्रमित होने पर कुछ दिनों के लिए इसका बैक्टीरिया खून में और मस्तिष्क व रीढ़ की हड्डी में मौजूद द्रव में पाया जा सकता है। इसके बाद ये बैक्टीरिया किडनी में चला जाता है, इसीलिए इसके निदान के लिए सीरम टेस्ट, ब्लड टेस्ट और लिवर व किडनी फंक्शन टेस्ट किए जाते हैं।
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लेप्टोस्पायरोसिस का इलाज कैसे होता है?
लेप्टोस्पायरोसिस के इलाज के लिए डॉक्सीसाइक्लिन या पेनिसिलिन जैसी एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है जो कि बीमारी के शुरूआती चरणों में दी जाती हैं। जिन लोगों के लक्षण ज्यादा गंभीर होते हैं, उन्हें ये एंटीबायोटिक दवाएं नसों के द्वारा दी जाती हैं।
अगर लेप्टोस्पायरोसिस का सही समय पर उचित इलाज न किया जाए, तो इससे फेफड़ों में रक्तस्त्राव, पीलिया, किडनी की समस्याएं, मायोकार्डिटिस और यूवाइटिस जैसी जटिलताएं हो सकती हैं।
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