शतावरी क्या है?
हिमालय की गोद में प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए कई अनमोल उपहार मौजूद हैं। हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक जड़ी बूटियों की भरमार है और शायद ही मनुष्य की जरूरत की ऐसी कोई जड़ी बूटी होगी जो हिमालय में मौजूद न हो। शतावरी भी हिमालय और हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों में से एक है।
शतावरी आयुर्वेद में सबसे पुरानी जड़ी बूटियों में से एक है और भारतीय औषधियों पर लिखे गए अधिकतर प्राचीन ग्रंथों में भी शतावरी का उल्लेख मिलता है। चरक संहिता औरअष्टांग हृदयम दोनों में ही शतावरी को स्त्रियों के लिए शक्तिवर्द्धक बताया गया है।
शतावरी एक ऐसी जड़ी बूटी है जो स्त्री प्रजनन प्रणाली में सुधार लाने में मदद करती है। आयुर्वेद में शतावरी को ‘सौ रोगों में प्रभावकारी’ बताया गया है। इसके अलावा तनाव-रोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से युक्त होने के कारण शतावरी तनाव एवं बढ़ती उम्र से संबंधित समस्याओं के इलाज में बहुत असरकारी जड़ी बूटी मानी जाती है। इस जड़ी बूटी के महत्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आयुर्वेद में शतावरी को ‘जड़ी बूटियों की रानी’ कहा जाता है।
शतावरी के बारे में तथ्य:
- वानस्पतिक नाम: ऐस्पेरेगस रेसीमोसस
- कुल: लिलिएसी
- सामान्य नाम: शतावरी, ऐस्पैरेगस जड़, भारतीय एस्पैरेगस
- संस्कृत नाम: शतावरी, शतमूली, सतमूली
- उपयोगी भाग: जड़ी और पत्तियां
- भौगोलिक विवरण: मूल रूप से शतावरी भारतीय उपमहाद्वीप के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है लेकिन भारत के हिमालयी क्षेत्रों में भी शतावरी बहुतायत में पाई जाती है। श्रीलंका और नेपाल में शतावरी की मिलती है। शीतल,
- गुण: शीतल और नमी प्रदान करने वाली। आयुर्वेद में इसे वात और पित्त दोष को संतुलित करने के लिए जाना जाता है। (और पढ़ें - वात पित्त कफ क्या होता है)