ऊपरी सांस नली में रुकावट क्या है?
सांस लेने में रुकावट मुख्य रूप से ऊपरी श्वसनमार्ग में किसी प्रकार की रुकावट के कारण होती है। नाक व मुंह के बीच की वायु नली को ऊपरी श्वसनमार्ग कहा जाता है।
सांस न लेने की रुकावट एक्यूट व क्रोनिक दोनों ही तरह से हो सकती है। यह समस्या तीव्रता (Acute) से होने पर रोगी की कुछ ही मिनटों में मृत्यु हो सकती है। जबकि सांस लेने में हो रही रुकावट धीरे-धीरे (Chronic) विकसित हो, तो इसकी वजह से मरीज को सांस फूलना या व्यायाम ना कर पाने जैसी समस्याएं होने लग जाती है।
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सांस लेने में रुकावट के लक्षण क्या हैं?
सांस लेने में रुकावट से होने लक्षण हल्के से गंभीर हो सकते हैं। इसके लक्षणों में रोगी को मुख्य रूप से खांसी होना, श्वसन तंत्र से गंभीर आवाज आना, सांस फूलना, एफोनिया (मूकता या बे आवाज हो जाना), दम घुटने जैसा महसूस होना, मुंह से पानी आना और गला घुटने के कारण उबकाई जैसे लक्षण जिन्हें गैगिंग (Gagging) कहा जाता है, आदि महसूस होेते हैं।
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सांस लेने में रुकावट के कारण क्या होते हैं?
मुख्य रूप से ऊपरी श्वसनमार्गों में रुकावट के कारण व्यक्ति को सांस लेने में रुकावट महसूस होती है। जिसके मुख्य कारण हैं, श्वसन मार्गों में इन्फेक्शन, सूजन व जलन संबंधी विकार, श्वसन मार्गों में चोट लगना और श्वसन मार्गों कैंसर या कोई बड़ा ट्यूमर विकसित हो जाना आदि। इसके अलावा कई मेडिकल स्थितियां हो सकती हैं, जिनके कारण सांस लेने में रुकावट महसूस होने लगती है। हल्के व गंभीर ट्यूमर और कैंसर आदि के कारण सांस लेने में रुकावट होने के काफी मामले देखे गए हैं।
सांस लेने में रुकावट के अन्य कारणों में ओरोफेंरिंक्स और लेरिंक्स में सूजन होना और श्वसन मार्गों में कोई बाहरी वस्तु फंस जाना आदि शामिल है।
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सांस लेनें में रुकावट का इलाज कैसे किया जाता है?
सांस लेने में रुकावट का इलाज इस स्थिति के कारण व इसकी गंभीरता के आधार पर किया जाता है। इस दौरान डॉक्टर सबसे पहले यह सुनिश्चित करते हैं, कि मरीज के श्वसन मार्ग पूरी तरह से खुले हैं या नहीं। स्थिति के अनुसार मरीज को ऑक्सीजन मास्क दिया जाता है और नसों के द्वारा कुछ प्रकार के द्रव दिए जाते हैं। इस समस्या के इलाज के दौरान मरीज को एपिनेफ्रिन, एंटीहिस्टामिन और स्टेरॉयड दवाएं दी जाती हैं।
कुछ गंभीर मामलों का इलाज करने के लिए मरीज का ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है। हालांकि यदि किसी स्थिति के कारण ऑपरेशन करना संभव ना हो, तो अन्य प्रकार की इलाज प्रक्रियाएं की जाती हैं, जिनकी मदद से लक्षणों को कम करके स्थिति में सुधार किया जाता है। इन प्रक्रियाओं में क्रायोथेरेपी, लेजर एलेशन, एंडोस्कोप रिसेक्शन और स्टेंट प्लेसमेंट आदि शामिल है।
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