थैलासीमिया, खून से जुड़ी आनुवांशिक (जीन्स के जरिए माता-पिता से मिलने वाली) बीमारी है जिसमें हमारा शरीर खून में मौजूद हीमोग्लोबिन का पर्याप्त मात्रा में निर्माण नहीं कर पाता है। हीमोग्लोबिन एक तरह का प्रोटीन है जो लाल रक्त कोशिकाओं (rbc) का एक बेहद अहम हिस्सा है। जब शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी होने लगती है तो लाल रक्त कोशिकाएं सही तरीके से काम नहीं कर पाती हैं और बेहद कम समय के लिए जीवित रहती हैं जिस कारण खून में स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है।
दरअसल, हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद वह प्रोटीन कण है जो शरीर की हर एक कोशिका तक ऑक्सीजन को पहुंचाने का काम करता है। ऑक्सीजन एक तरह से कोशिकाओं के लिए भोजन का काम करता है जिसकी मदद से वे बेहतर तरीके से अपना काम कर पाती हैं। जब शरीर में स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है तो शरीर की हर एक कोशिका तक ऑक्सीजन भी कम पहुंचता है जिससे व्यक्ति को थकान, कमजोरी और सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है। ऐसी स्थिति को एनीमिया कहते हैं। थैलासीमिया से पीड़ित मरीज को हल्का या गंभीर एनीमिया हो सकता है। अगर एनीमिया गंभीर हो जाए तो अंदरूनी अंगों को नुकसान होने लगता है जिससे मौत का खतरा भी बढ़ जाता है।
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थैलासीमिया आनुवांशिक बीमारी है यानी माता-पिता में से कोई एक जब इस बीमारी के कैरियर होते हैं तो यह बीमारी बच्चे में भी ट्रांसफर हो जाती है। साथ ही यह जीन्स में होने वाले किसी तरह के परिवर्तन (जीन म्यूटेशन) की वजह से होती है या फिर जीन के किसी प्रमुख अंश के मिट जाने की वजह से। थैलासीमिया माइनर बीमारी का कम गंभीर रूप है। लेकिन अल्फा थैलासीमिया और बीटा थैलासीमिया बीमारी के गंभीर रूप हैं।
थैलासीमिया से गंभीर रूप से पीड़ित मरीज के शरीर में खून की कमी न हो इसके लिए उसे नियमित रूप से खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा थकान से निपटने के लिए स्वस्थ आहार का सेवन करना चाहिए और नियमित रूप से एक्सरसाइज भी करनी चाहिए। तो आखिर थैलासीमिया होने का कारण क्या है, किन लक्षणों या संकेतों से जान सकते हैं किसी को थैलासीमिया हुआ है, इसका इलाज कैसे होता है, इस बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।