थैलेमिक पेन सिंड्रोम - Thalamic Pain Syndrome in Hindi

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June 03, 2020

June 03, 2020

थैलेमिक पेन सिंड्रोम
थैलेमिक पेन सिंड्रोम

थैलेमिक पेन सिंड्रोम को डेजेरिन-रोजी सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है। यह एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है, जो तब विकसित होती है, जब स्ट्रोक के कारण मस्तिष्क में मौजूद थैलेमस क्षतिग्रस्त हो जाता है। इस स्थिति को सेंट्रल पोस्ट-स्ट्रोक और एनाल्जेसिया डोलोरोसा भी कहा जाता है।

थैलेमस मस्तिष्क में मौजूद एक छोटा हिस्सा है, जो सेरेब्रल कोर्टेक्स और मस्तिष्क के मध्यम हिस्से के बीच में मौजूद होता है। यह नसों के एक घने जाल की मदद से दोनों हिस्सों से जुड़ा होता है और शारीरिक गतिविधि व संवेदना से संबंधित गतिविधियों को नियंत्रित करता है।

हालांकि, इसे काफी दुर्लभ समस्या माना गया है, यह स्ट्रोक से ग्रस्त लोगों में सिर्फ 5 प्रतिशत लोगों में पाई जाती है। जिन लोगों को थैलेमिक स्ट्रोक से संबंधी समस्या है, उनमें से लगभग 50 प्रतिशत लोगों में थैलेमिक स्ट्रोक सिंड्रोम के मामले देखे जाते हैं। इस रोग में होने वाला दर्द अपने आप विकसित हो सकता है या फिर छूने पर भी दर्द शुरू हो सकता है। इलाज के दौरान भी इसमें होने वाला दर्द इतना गंभीर हो जाता है कि मरीज इसमें पूरी तरह से कमजोर पड़ जाता है।

डेजेरिन रोजी सिंड्रोम का नाम जॉसफ डेजेरिन और गुस्तवे रोजी के नाम पर पड़ा था, जिन्होनें 1906 सबसे पहले इस समस्या के बारे में बताया था। अब ज्यादातर लोग इस रोग को पोस्ट-स्ट्रोक पेन के नाम से जानने लगे हैं, जिसे एक नस संबंधी समस्या समझा जाता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मस्तिष्क के मध्य भाग से विकसित होने वाले लगभग सभी प्रकार के दर्दों को थैलेमिक पेन से संबंधित समझा जाता है।

स्ट्रोक के बाद होने वाले सेंट्रल पेन सिंड्रोम के साथ-साथ कुछ अन्य समस्याएं भी देखी जा सकती हैं, जिनमें मुख्य रूप से शरीर के एक हिस्से की बांह और टांग कमजोर पड़ जाना और उसी तरफ के चेहरे की मांसपेशियां ढीली पड़ जाना आदि शामिल है। हालांकि, कमजोरी समय के साथ-साथ चली जाती है, लेकिन थैलेमस से संबंधित कुछ लक्षण स्थायी रह सके हैं।

थैलेमिक पेन सिंड्रोम के लक्षण - Thalamic Pain Syndrome Symptoms in Hindi

लंबे समय से नसों से संबंधी दर्द रहना डेजेरिन-रोजी सिंड्रोम का सबसे मुख्य लक्षण माना जाता है। हालांकि, इस स्थिति के साथ कुछ अन्य लक्षण भी देखे जा सकते हैं -

  • शरीर के एक तरफ की बांह, टांग और चेहरे में ऐसा दर्द महसूस होना, जिस बारे में मरीज ठीक से बता न पाए।
  • शरीर का प्रभावित भाग सुन पड़ना, झुनझुनी होना या फिर सुई चुभने जैसा लगना आदि लक्षण भी देखे जा सकते हैं।
  • प्रभावित हिस्से की त्वचा में जलन, खुजली या त्वचा में अकड़न आ जाना, आदि समस्याएं भी देखी जा सकती हैं।
  • प्रभावित हिस्से को हल्का सा छू देने पर भी गंभीर दर्द हो जाना, जिसे एल्लोडीनिया के नाम से भी जाना जाता है।
  • ऐसा महसूस होना, जैसे शरीर के एक हिस्से में अधिक वजन हो गया है।

थैलेमिक पेन सिंड्रोम में होने वाला दर्द व तकलीफ कम भी हो सकती है और अत्यधिक गंभीर रूप भी धारण कर सकती है। हालांकि, कुछ कारक हैं, जिनके कारण थैलेमिक पेन सिंड्रोम की स्थिति और भी बदतर हो जाती है -

  • प्रभावित भाग को छूने से
  • हिलाने-डुलाने की कोशिश करने से
  • छींक आने या उबासी लेने पर भी दर्द बढ़ सकता है
  • अधिक तेज ध्वनि या अचानक से तेज प्रकाश होना भी दर्द को गंभीर बना सकता है
  • मौसम और तापमान में बदलाव होने पर
  • धूप या हवा के संपर्क में आने से
  • अधिक ऊंचाई वाले स्थान पर चले जाने से
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थैलेमिक पेन सिंड्रोम के कारण - Thalamic Pain Syndrome Causes in Hindi

यह नसों से संबंधी रोग है, जो नसों से जुड़ी विभिन्न प्रकार की समस्याओं के कारण विकसित हो सकता है। थैलेमिक पेन सिंड्रोम का कारण बनने वाले सबसे सामान्य कारणों में निम्न शामिल हो सकता है -

थैलेमिक पेन सिंड्रोम का परीक्षण - Diagnosis of Thalamic Pain Syndrome in Hindi

थैलेमिक पेन सिंड्रोम या पोस्ट-स्ट्रोक पेन सिंड्रोम एक काफी दुर्लभ रोग है, इसलिए परीक्षण करके इसका पता लगाना भी काफी मुश्किल हो जाता है। इसमें मरीज के द्वारा महसूस किया जाने वाला दर्द काफी हल्का भी हो सकता है और अत्यधिक गंभीर भी हो सकता है। साथ ही साथ दर्द किस प्रकार से महसूस हो रहा है, यह भी हर मरीज में अलग हो सकता है। डेजेरिन-रोजी सिंड्रोम का पता लगाने के लिए अभी तक कोई विशेष टेस्ट नहीं बन पाया है।

परीक्षण के दौरान डॉक्टर आमतौर पर मरीज के लक्षणों की जांच करते हैं। इस दौरान मरीज से उसके स्वास्थ्य संबंधी कुछ सवाल पूछे जाते हैं और पिछली मेडिकल समस्याओं का पता लगाया जाता है। परीक्षण करने में कठिनाई होने के बावजूद कई बार थेलेमिक पेन सिंड्रोम के अंदरूनी कारणों का पता नहीं लग पाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसका कारण बनने वाली स्थितियां कई बार विकसित व गायब होती रहती हैं। हालांकि, यह रोग ऊपर बताए गए कारणों के बिना विकसित नहीं होता है।

2016 में इंडियन जर्नल ऑफ पेन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, थैलेमिक पेन सिंड्रोम से लक्षणों वाले लगभग 70 प्रतिशत मरीजों में यह समस्या एक महीने के भीतर विकसित होती है। ऐसा उनका मस्तिष्क क्षतिग्रस्त होने के बाद होता है, क्योंकि आइसेमिक स्ट्रोक से लगभग 85 प्रतिशत लोग प्रभावित हो जाते हैं।

थैलेमिक पेन सिंड्रोम का इलाज - Thalamic Pain Syndrome Treatment in Hindi

थैलेमिक पेन सिंड्रोंम को जड़ से खत्म करने के लिए अभी तक कोई इलाज उपलब्ध नहीं हो पाया है। हालाकिं, उचित इलाज प्रक्रियाओं को अपना कर इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। थैलेमिक पेन सिंड्रोम के लक्षणों को नियंत्रित करने पर इससे होने वाला दर्द व अन्य तकलीफें भी कम हो जाती हैं।

दर्दनिवारक दवाएं इसके इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली सबसे आवश्यक दवाओं में से एक हैं, इनमें मुख्य रूप से मोर्फिन जैसी दवाएं शामिल हैं। हालांकि, ऐसा जरूरी नहीं है कि मोर्फिन से हमेशा दर्द व लक्षणों को कम करने में सफलता मिले। इसलिए ऐसे मामलों में मरीजों को डिप्रेशन व मिर्गी आदि में इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं दी जाती हैं। इसके अलावा ट्रांसडर्मल क्रीम व पैच, मसल रिलेक्सेंट, सीडेटिव दवाएं और साथ ही साथ जरूरत पड़ने पर नींद की दवाओं का इस्तेमाल भी डेजेरिन-रोजी सिंड्रोम के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए मेडिकल मेरिजुआना को भी उपयोग में लाया जाता है।

ऐसी कई प्रकार की इलाज प्रक्रियाएं हैं, जिनका उपयोग थैलेमिक पेन सिंड्रोम के लक्षणों व दर्द को कम करने के लिए किया जा सकता है। ये दवाएं सिर्फ अस्थायी रूप से ही लक्षणों को नियंत्रित कर पाती हैं, क्योंकि इस रोग से पूरी तरह ठीक हो पाना संभव नहीं है। जिन लोगों को अत्यधिक गंभीर दर्द हो गया है या फिर सामान्य दर्दनिवारक दवाओं से लक्षण नियंत्रित नहीं हो पा रहे हैं, तो ऐसे में डॉक्टर न्यूरोसर्जरी करवाने की सलाह दे सकते हैं।

इस प्रक्रिया के दौरान अलग-अलग विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम की आवश्यकता पड़ती है, जिसमें न्यूरोलॉजिस्ट, पेन मैनेजमेंट स्पेस्लिस्ट, फीजियोथेरेपिस्ट और यहां तक कि साइकोलॉजिस्ट आदि शामिल हैं। ये सभी डॉक्टर मिलकर थैलेमिक पेन सिंड्रोम से पीड़ित मरीज के लक्षणों को प्रभावी रूप से नियंत्रित कर पाते हैं।

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संदर्भ

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