थैलेमिक पेन सिंड्रोम को डेजेरिन-रोजी सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है। यह एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है, जो तब विकसित होती है, जब स्ट्रोक के कारण मस्तिष्क में मौजूद थैलेमस क्षतिग्रस्त हो जाता है। इस स्थिति को सेंट्रल पोस्ट-स्ट्रोक और एनाल्जेसिया डोलोरोसा भी कहा जाता है।
थैलेमस मस्तिष्क में मौजूद एक छोटा हिस्सा है, जो सेरेब्रल कोर्टेक्स और मस्तिष्क के मध्यम हिस्से के बीच में मौजूद होता है। यह नसों के एक घने जाल की मदद से दोनों हिस्सों से जुड़ा होता है और शारीरिक गतिविधि व संवेदना से संबंधित गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
हालांकि, इसे काफी दुर्लभ समस्या माना गया है, यह स्ट्रोक से ग्रस्त लोगों में सिर्फ 5 प्रतिशत लोगों में पाई जाती है। जिन लोगों को थैलेमिक स्ट्रोक से संबंधी समस्या है, उनमें से लगभग 50 प्रतिशत लोगों में थैलेमिक स्ट्रोक सिंड्रोम के मामले देखे जाते हैं। इस रोग में होने वाला दर्द अपने आप विकसित हो सकता है या फिर छूने पर भी दर्द शुरू हो सकता है। इलाज के दौरान भी इसमें होने वाला दर्द इतना गंभीर हो जाता है कि मरीज इसमें पूरी तरह से कमजोर पड़ जाता है।
डेजेरिन रोजी सिंड्रोम का नाम जॉसफ डेजेरिन और गुस्तवे रोजी के नाम पर पड़ा था, जिन्होनें 1906 सबसे पहले इस समस्या के बारे में बताया था। अब ज्यादातर लोग इस रोग को पोस्ट-स्ट्रोक पेन के नाम से जानने लगे हैं, जिसे एक नस संबंधी समस्या समझा जाता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मस्तिष्क के मध्य भाग से विकसित होने वाले लगभग सभी प्रकार के दर्दों को थैलेमिक पेन से संबंधित समझा जाता है।
स्ट्रोक के बाद होने वाले सेंट्रल पेन सिंड्रोम के साथ-साथ कुछ अन्य समस्याएं भी देखी जा सकती हैं, जिनमें मुख्य रूप से शरीर के एक हिस्से की बांह और टांग कमजोर पड़ जाना और उसी तरफ के चेहरे की मांसपेशियां ढीली पड़ जाना आदि शामिल है। हालांकि, कमजोरी समय के साथ-साथ चली जाती है, लेकिन थैलेमस से संबंधित कुछ लक्षण स्थायी रह सके हैं।