सबएक्यूट स्कलेरोसिंग पैनेंसफेलाइटिस क्या है?
सबएक्यूट स्कलेरोसिंग पैनेंसफेलाइटिस (एसएसपीई) रूबेला इंफेक्शन से जुड़ा एक खतरनाक, तेजी से बढ़ने वाला और असक्षम बना देने वाला मस्तिष्क से संबंधित विकार है। रूबेला इंफेक्शन (खसरा) के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने के कई सालों बाद यह बीमारी विकसित होती है।
सबएक्यूट स्कलेरोसिंग पैनेंसफेलाइटिस के लक्षण
एसएसपीई के लक्षणों को चार चरण में बांटा जा सकता है। हर एक चरण के बाद बीमारी के लक्षण गंभीर होते चले जाते हैं -
- पहला चरण -
इसमें मरीज के व्यक्तित्व में बदलाव आना, मूड बदलना या अवसाद जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा बुखार और सिरदर्द भी हो सकता है। यह स्थिति करीबन छह माह तक परेशान कर सकती है।
- दूसरा चरण -
इसमें ऐसी मूवमेंट होती हैं जिन्हें आप कंट्रोल नहीं कर पाते हैं। इनमें झटके लगने और मांसपेशियों में ऐंठन शामिल है। इस चरण में दिखने वाले अन्य लक्षणों में नजर कमजोर होना, मनोभ्रंश (सोचने की क्षमता कम हो जाना) और दौरे पड़ना भी शामिल हो सकता है।
- तीसरा चरण -
इस चरण में मरीज को झटके लगने की जगह अब कुलबुलाहट होने लगती है और मांसपेशियों में कठोरता महसूस होती है। अगर इन्हें नियंत्रित नहीं किया जाए, तो यह मौत का कारण भी बन सकता है।
- चौथा चरण -
मस्तिष्क के आसपास का वह हिस्सा, जो सांस, हृदय गति और बीपी को नियंत्रित करता है, उसे नुकसान पहुंच सकता है। ऐसा होने पर कोमा और फिर व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।
सबएक्यूट स्कलेरोसिंग पैनेंसफेलाइटिस का कारण
माना जाता है कि सबएक्यूट स्कलेरोसिंग पैनेंसफेलाइटिस खसरे के धीमे वायरस के कारण होता है, इसे पैरामाइक्सोवायरस कहा जाता है। हालांकि, यह वायरस कुछ समय के लिए शरीर में निष्क्रिय रह सकते हैं, लेकिन बाद में यह पुन: सक्रिय हो सकते हैं। इसके पीछे का सटीक कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है, लेकिन इस विषय पर अभी शोध जारी है।
चिकित्सा साहित्य में सबएक्यूट स्कलेरोसिंग पैनेंसफेलाइटिस के कुछ मामलों का संबंध जानवरों के संपर्क में रहने से बताया गया है। इस संदर्भ में डॉक्टरों का मानना है कि प्रभावित व्यक्ति पालतू जानवरों जैसे कि बंदर, कुत्ते या बिल्ली के बच्चों के संपर्क में रहे थे जिससे बाद बीमारी की वजह से मरीजों की मौत हो गई।
सबएक्यूट स्कलेरोसिंग पैनेंसफेलाइटिस का इलाज
एसएसपीई का अभी तक कोई इलाज मौजूद नहीं है, लेकिन इस बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। इस बीमारी के विकसित होने की गति को धीमा करने के लिए कुछ एंटी-वायरल और दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है जो कि प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का काम करती हैं।
सबएक्यूट स्कलेरोसिंग पैनेंसफेलाइटिस का जोखिम व निवारण
आमतौर पर, खसरा वायरस मस्तिष्क को नुकसान नहीं पहुंचाता है। हालांकि, जब खसरे के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली सही से कार्य नहीं करती है तो इसकी वजह से बीमारी गंभीर रूप ले सकती है और मरीज की मौत भी हो सकती है।
इस प्रतिक्रिया से मस्तिष्क में सूजन होती है, जो कि कई वर्षों तक रह सकती है। बच्चों को इस बीमारी से बचाने का एकमात्र उपाय टीकाकरण है।
यदि आपके बच्चे को पूरे टीके नहीं लग पाए हैं, तो डॉक्टर को इस बारे में बताएं। खसरे के वैक्सीन में एमएमआर वैक्सीन शामिल है। एमएमआर वैक्सीन खसरा, गलसुआ रोग और जर्मन खसरे के लिए दिया जाता है।
इसकी पहली खुराक आमतौर पर 9 से 15 महीने की उम्र के बच्चों को दी जाती है। दूसरी खुराक 15 महीने से 6 साल के उम्र के बच्चों को दी जाती। है। खुराक के बीच में कम से कम 4 सप्ताह का अंतर रखा जाता है।