स्टोमेटाइटिस ऐसी स्थिति है, जिसमें मुंह के अंदरूनी हिस्से में सूजन, लालिमा और जलन हो जाती है। कुछ गंभीर मामलों में इससे जीभ, मसूड़े, होठ और गाल पर छाले भी पड़ सकते हैं। स्टोमेटाइटिस के मुख्यत: दो रूप हैं, जिन्हें हर्पीस स्टोमेटाइटिस और एफ्थॉस स्टोमेटाइटिस के नाम से भी जाना जाता है। हर्पीस स्टोमेटाइटिस में कोल्ड सोर और एफ्थॉस स्टोमेटाइटिस में कैंकर सोर आदि शामिल हैं।
स्टोमेटाइटिस के लक्षण क्या हैं?
स्टोमेटाइटिस में होने वाले लक्षण रोग के प्रकार और अंदरूनी कारणों के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। लक्षणों की गंभीरता भी इन पर ही निर्भर करती है। उदाहरण के लिए कुछ लोगों में स्टोमेटाइटिस के लक्षण गंभीर नहीं होते हैं, बस एक परेशान कर देने वाली स्थिति पैदा कर देते हैं। जबकि अन्य लोगों में इसके लक्षण गंभीर हो सकते हैं, जिनसे प्रभावित हिस्से में काफी दर्द व जलन होती है और मरीज ठीक से खा व पी भी नहीं पाता है। इसके अलावा नीचे स्टोमेटाइटिस से होने वाले कुछ आम लक्षणों के बारे में बताया गया है -
- मुंह के अंदरूनी या बाहरी हिस्से में दर्द व जलन होना
- मुंह के अंदरूनी हिस्सों में छाले होना जैसे जीभ, मसूड़े या होठ का अंदरूनी हिस्सा
- छालों का रंग सफेद या लाल रंग का होना
- कुछ भी खाते या पीते समय दर्द व जलन होना
डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
यदि आपको कई दिन से मुंह में छाले या दर्द हो रहे हैं और वो ठीक नहीं हो रहे हैं, तो डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए। कई बार छाले ठीक होकर बार-बार विकसित होते रहते हैं, ऐसा आमतौर पर शरीर में किसी विटामिन या अन्य पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है। इसलिए डॉक्टर से जांच करवा कर इसके अदंरूनी कारण का पता लगाना जरूरी होता है।
स्टोमेटाइटिस क्यों होता है?
स्टोमेटाइटिस कई अंदरूनी कारणों से हो सकता है, जो कई बार एक-दूसरे की जगह लेते रहते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी एक कारण से स्टोमेटाइटिस हुआ है, तो अगली बार हो सकता है कि किसी दूसरे कारण से यह समस्या। यह आमतौर पर चोट लगना, संक्रमण, एलर्जी और त्वचा संबंधी अन्य रोगों से संबंधित होता है -
स्टोमेटाइटिस के कारणों में आमतौर पर निम्न को शामिल किया जाता है -
- ठीक से फिट न हुए नकली दांतों से मुंह के अंदर होने वाले घाव
- कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरेपी प्रक्रिया
- वायरल इन्फेक्शन जैसे हर्पीस
- यीस्ट इन्फेक्शन जैसे ओरल थ्रश
- मुंह सूखना (किसी रोग या पोषक तत्वों की कमी के कारण)
इनके अलावा कुछ अन्य कारण भी हैं, जो स्टोमेटाइटिस का कारण बन सकते हैं, हालांकि, ये कम ही मामलों में देखे जाते हैं -
- बैक्टीरियल संक्रमण
- यौन संचारित संक्रमण
- प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होना
- किसी हानिकारक केमिकल के संपर्क में आना
- अधिक शारीरिक या मानसिक तनाव होना
- कुछ स्वास्थ्य समस्याएं जैसे क्रोन रोग, लुपस या बैशेट रोग आदि
- कुछ दवाएं जैसे सल्फा ड्रग, एंटी-एपिलेप्टिक और कुछ एंटीबायोटिक दवाएं
- शरीर में पोषक तत्वों की कमी
- अधिक गर्म भोजन या पानी पी लेना
स्टोमेटाइटिस का परीक्षण कैसे किया जाता है?
स्थिति का परीक्षण करके ही डॉक्टर स्टोमेटाइटिस के प्रकार और उसके अंदरूनी कारण का पता लगा पाते हैं। इस दौरान सबसे पहले मरीज की शारीरिक जांच की जाती है, जिसमें डॉक्टर मरीज के छालों को करीब से देखते हैं और फिर मरीज से उसके स्वास्थ्य संबंधी पिछली जानकारी ली जाती है। साथ ही निम्न में से कुछ टेस्ट भी किए जा सकते हैं -
- स्वैब टेस्ट बैक्टीरियल व वायरल दोनों संक्रमणों की जांच करने के लिए
- टिश्यू स्क्रेपिंग फंगल संक्रमण का पता लगाने के लिए
- पैच टेस्ट एलर्जी का पता लगाने के लिए
इसके अलावा डॉक्टर मरीज का ब्लड टेस्ट भी करवा सकते हैं, ताकि मरीज के शारीरिक स्वास्थ्य का पता लगाया जा सके। कुछ गंभीर मामलों में बायोप्सी टेस्ट भी किया जा सकता है।
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स्टोमेटाइटिस का इलाज कैसे किया जाता है?
स्टोमेटाइटिस का इलाज पूरी तरह से उसके कारण पर ही निर्भर करता है। नीचे स्टोमेटाइटिस के कारण के अनुसार उसके इलाज के बारे में बताया गया है -
- एलर्जी -
यदि एलर्जी के कारण ही स्टोमाइटिस हुआ है, तो डॉक्टर सबसे पहले एलर्जी के प्रकार का पता लगाते हैं। एलर्जी के प्रकार के अनुसार उन्हें एंटी-एलर्जिक दवाएं दी जाती हैं।
- इन्फेक्शन -
यदि किसी प्रकार के संक्रमण के अनुसार हुआ है, तो संक्रमण के प्रकार के अनुसार दवाएं दी जाती हैं। उदाहरण के लिए बैक्टीरियल संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक दवाएं, वायरल इन्फेक्शन के लिए एंटी-वायरल और फंगल संक्रमण के लिए एंटी-फंगल दवाएं आदि।
- अन्य रोग -
यदि किसी अन्य रोग के कारण स्टोमेटाइटिस के लक्षण हुए हैं, तो सबसे पहले रोग का पता लगाया जाता है और फिर उसे ठीक करने के लिए इलाज शुरू किया जाता है।
- पोषक तत्वों की कमी -
यदि शरीर में किसी पोषक तत्व की कमी के कारण स्टोमेटाइटिस के लक्षण होने लगे हैं। ऐसे में सबसे पहले उस कारण का पता लगाया जाता है और फिर सप्लीमेंट्स और आहार परिवर्तन से उस कमी को पूरा किया जाता है।
कुछ मामलों में डॉक्टर टोपिकल दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें प्रभावित त्वचा पर लगाया जाता है जैसे क्रीम आदि। इन दवाओं में निम्न शामिल हैं -
- टोपिकल कोर्टिकोस्टेरॉयड्स
- टोपिकल एंटीबायोटिक
- टोपिकल एनेस्थेटिक
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