फेफड़ों में धुआं जाने का क्या मतबल है?
जब आप हानिकारक धूएं या गैस को सांस के जरिए अंदर लेते हैं, तो इस स्थिति को फेफड़ों में धुआं जाना (smoke inhalation) कहा जाता है। हानिकारक धुआं फेफड़ों और वायु मार्गों में जलन पैदा करता है, जिसकी वजह से इनमें सूजन आ जाती है और ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है। इससे श्वसन तंत्र संबंधी समस्याएं होने की संभावना बढ़ जाती हैं।
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फेफड़ों में धुआं जाने के लक्षण क्या हैं?
फेफड़ों में धुआं जाने के कई लक्षण होते हैं। इसमें व्यक्ति को खांसी, सांस फूलने, गला बैठने, सिरदर्द और कई बार कम समय के लिए मानसिक बदलाव महसूस होता है।
फेफड़ों के अंदर जमा होने वाले काले पदार्थ व त्वचा के रंग में बदलाव से इस समस्या की स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
इतना ही नहीं इस समस्या में व्यक्ति की आंखों में जलन महसूस होने लगती है।
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फेफड़ों में धुआं जाने के क्या कारण होते हैं?
किसी चीज का जलना, कैमिकल या गैस आदि फेफड़ों में धुआं जाने का कारण हो सकता है। आग के पास ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। साथ ही धुएं में कॉर्बन डाई जैसे तत्व होते हैं, जो आसपास की हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम कर देते हैं।
कई बार आग से विशेष तरह का कैमिकल बनाता हैं, जो व्यक्ति की त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली को नुकसान पहुंचाते हैं।
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फेफड़ों में धुआं जाना का इलाज कैसे होता है?
फेफड़ों में धुआं जाने का इलाज कई तरह से किया जाता है। इसमें निम्न तरीके शामिल हैं-
- ऑक्सीजन :
फेफड़ों में धुआं जाने के इलाज में ऑक्सीजन सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस स्थिति में रोगी के लक्षण के आधार पर उसको मास्क, नाक में ट्यूब या गले में ट्यूब लगाकर ऑक्सीजन दी जा सकती है।
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- हाइपरबैरीक ऑक्सीजनेशन (hyperbaric oxygenation) :
इस प्रक्रिया को कॉर्बन मोनोऑक्साइड की विषाक्ता को समाप्त करने के लिए किया जाता है। इसमें रोगी को विशेष कमरे में रखकर ऑक्सीजन की उच्च मात्रा दी जाती है। ऑक्सीजन रक्त में मौजूद प्लाजमा के साथ घुलकर ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुंचा देती है।
- दवाएं :
इस स्थिति में इन्फेक्श के जोखिम को कम करने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं।
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