त्वचा की चिप्पी का इलाज कैसे किया जाता है?
इस स्थिति के सटीक कारण का अभी तक पता नहीं चल पाया है, इसलिए त्वचा की चिप्पी को हटाने या कम करने के लिए कोई दवाई उपलब्ध नहीं है। त्वचा की चिप्पी के इलाज में आमतौर पर निम्नलिखित तरीकों को शामिल किया जा सकता है:
- ऑपरेशन की मदद से त्वचा की चिप्पी को निकालना
- क्रायोसर्जरी (इसमें प्रभावित हिस्से को बर्फ से जमा कर निकाल दिया जाता है)
- कॉटेराइजेशन (इस स्थिति में त्वचा की चिप्पी को जला कर निकाल दिया जाता है)
दागना (कॉटेराइजेशन):
इस प्रक्रिया इलेक्ट्रोकॉटेरी कहा जाता है में एक विशेष प्रकार के उपकरण की मदद से प्रभावित हिस्से को जला कर बाहर निकाल दिया जाता है। पहले इसी प्रक्रिया को हाथ से किया जाता था, लेकिन आजकल वो तरीका पुराना हो गया है।
इतना ही नहीं इस प्रक्रिया की मदद से स्किन टैग जैसी साधारण स्थिति से लेकर कैंसर व गंभीर स्थितियों वाली बढ़ी हुई त्वचा को हटाया जाता है। इतना ही नहीं स्किन टैग या कैंसर हो हटाने के बाद निकलने वाले खून को भी इसकी मदद से रोक दिया जाता है।
इलेक्ट्रोकॉटेरी प्रक्रिया में विद्युत के द्वारा गर्मी पैदा की जाती है, जिसकी मदद से त्वचा की चिप्पी को पूरी तरह से जला दिया जाता है। उसके बाद इसी उपकरण की मदद से घाव को ऊपर से बंद कर दिया जाता है, ताकि खून बहने से रोका जाए।
इलेक्ट्रोकॉटेरी या इलेक्ट्रोसर्जरी उपकरण हाई-फ्रिक्वेंसी वाली एनर्जी पैदा करते हैं, जिसे इलेक्ट्रॉड की मदद से प्रभावित ऊतकों तक पहुंचाया जाता है। प्रभावित ऊतक में भेजी गई एनर्जी प्रोटीन की संचरनाओं को क्षतिग्रस्त कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप घाव की संरचना भी क्षतिग्रस्त हो जाती है। इसके अलावा इस प्रक्रिया के दौरान घाव को चारों तरफ से ढकने वाली कोशिकाएं भी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
इलेक्ट्रोसर्जरी की सबसे अच्छी बात ये है कि इसके ऑपरेशन में काफी कम समय लगता है और खून आदि भी नहीं बहता है। हालांकि यह बहुत ही दर्दनाक प्रक्रिया होती है और आमतौर पर कई बार इसे करने के लिए मरीज को बेहोश करना पड़ता है। इसके अलावा इस प्रक्रिया के बाद त्वचा पर स्कार भी पड़ सकते हैं।
क्रायोथेरेपी:
क्रायो का मतलब होता है “कोल्ड” यानि ठंडा। क्रायोथेरेपी प्रक्रिया के दौरान तरल नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है, जिसका तापमान बर्फ जितना होता है। इस प्रक्रिया की मदद से त्वचा की चिप्पी को उसके डंठल के साथ काट दिया जाता है। त्वचा पर होने वाले स्किन टैग जैसे सामान्य घावों और कैंसर जैसे गंभीर घावों को हटाने के लिए क्रायोथेरेपी को काफी प्रभावी इलाज माना जाता है।
क्रायोथेरेपी की मदद से प्रभावित ऊतकों को नष्ट कर दिया जाता है और जिस क्षेत्र पर इसका इस्तेमाल किया जाता है वहां पर यह खून की सप्लाई को बंद कर देती है। यह सर्जरी होने के 24 घंटे के भीतर उस क्षेत्र में सूजन, लालिमा व जलन आदि हो जाती है। हालांकि सूजन, क्रायोथेरेपी के प्रभाव को बढ़ाती है जिसकी मदद से और अधिक मात्रा में प्रभावित ऊतक नष्ट किये जा सकते हैं।
यह छोटी अवधि की प्रक्रिया होती है, जो 20 मिनट के भीतर हो जाती है। यह प्रक्रिया अस्पताल मे एक आम इलाज की तरह की जा सकती है। हालांकि इसको कई अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है:
- पहला तरीका:
- इस प्रक्रिया में सबसे पहले त्वचा की चिप्पी पर कुछ बूंदें तरल नाइट्रोजन की डाली जाती हैं।
- त्वचा की चिप्पी पर कुछ सेकेंड के लिए ही तरल छोड़ा जाता है।
- इस प्रक्रिया को हफ्ते में कई बार किया जा सकता है, जब तक यह पूरी तरह से साफ नहीं हो जाती है।
- दूसरा तरीका:
- कुछ डॉक्टर एक छोटी सी नोजल (नोक जैसा मुंह) के साथ नाइट्रोजन को प्रभावित क्षेत्र पर स्प्रे करना पसंद करते हैं। स्प्रे करने के भी अलग-अलग तरीके हो सकते हैं जैसे डायरेक्ट स्प्रे, पेंटब्रश स्प्रे और स्पायरल स्प्रे आदि। त्वचा पर कितनी देर तक स्प्रे किया गया है, वह त्वचा की चिप्पी के प्रकार और आकार पर निर्भर करता है।
- यह टाइम स्पॉट फ्रीजिंग तकनीक होती है, जो छोटे व एक ही जगह पर होने वाली त्वचा की चिप्पी के लिए काफी प्रभावी होती है। यह तकनीक सिर्फ प्रभावित क्षेत्र को ही टारगेट करती है और आस-पास की त्वचा को हानि नहीं पहुंचाती है।
- तीसरा तरीका:
- क्रायोथेरेपी के इस तरीके में क्रायोप्रोब का इस्तेमाल किया जाता है। यह प्रोब बंदूक जैसे दिखने वाले एक उपकरण से जुड़ा होता है, जिसमें तरल नाइट्रोजन होती है। इसमें नाइट्रोजन का एक जेल की तरह उपयोग किया जाता है।
- क्रायोप्रोब विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है, जहां पर डॉक्टर को नाइट्रोजन लगाने के दौरान काफी सतर्क रहना पड़ता है जैसे पलकों व चेहरे पर होने वाले स्किन टैग।
- इस प्रक्रिया के लिए अलग-अलग आकार के प्रोब होते हैं, जिनको त्वचा के प्रकार व स्किन टैग के अनुसार इस्तेमाल किया जाता है।
- क्रायोप्रोब का इस्तेमाल करने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि यह काफी हद तक तरल नाइट्रोजन से होने वाले साइड इफेक्ट्स को सीमित या कम कर देता है।
- साइड इफेक्ट्स:
हर प्रक्रिया से किसी ना किसी प्रकार का साइड इफेक्ट तो होता ही है। इलाज में तरल नाइट्रोजन का इस्तेमाल करने से कुछ अन्य तकलीफें भी हो सकती हैं, जैसे:
- इसमें प्रक्रिया के बाद थोड़ा दर्द हो सकता है, अक्सर जहां पर नाइट्रोजन लगाई जाती है वहां पर फफोला बन जाता है और फिर नाइट्रोजन को उतारने में दर्द होता है।
- क्रायोथेरेपी होने के बाद उस जगह में हल्का दर्द हो सकता है और त्वचा के रंग में भी बदलाव होने लग जाता है।
- नाइट्रोजन से होने वाले इलाज के कारण आपकी त्वचा पर स्कार (खरोंच जैसे निशान) भी बन सकते हैं। हालांकि स्कार बहुत छोटे हैं और इतनी आसानी से दिखाई भी नहीं देते हैं।
- जिन लोगो को डायबिटिक फुट अल्सर या डायबिटीज और पेरिफेरल आर्टरियल डिजीज है, उनको त्वचा की चिप्पी के लिए क्रायोथेरेपी नहीं करवानी चाहिए। क्योंकि इस प्रक्रिया में त्वचा की ऊपरी नसें क्षतिग्रस्त हो जाती है और घाव ठीक होने में भी काफी समय लग सकता है।
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सर्जरी से निकलवाना:
इस प्रक्रिया में त्वचा की चिप्पी को निकालने के लिए आमतौर पर कैंची व ब्लेड आदि जैसे उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। एक सर्जिकल प्रक्रिया से पहले आमतौर पर कई अन्य काम किये जाते हैं, जैसे जिस जगह सर्जरी करनी है उसकी सफाई करना और रोगाणु रहित करना आदि शामिल है। इसके बाद उस क्षेत्र को सुन्न कर दिया जाता है। त्वचा की चिप्पी को सर्जरी के द्वारा निकालने में ज्यादा समय नहीं लगता है और मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं। आमतौर पर इस प्रक्रिया में आधे घंटे से भी कम समय लगता है। इस स्थिति में आमतौर पर त्वचा पर थोड़े स्कार बन जाते हैं।
शेव एक्शीजन (काट-छांट):
- यह प्रक्रिया विशेष रूप से त्वचा पर होने वाले ऐसे घाव के कारण होती है, जो त्वचा की ऊपरी परत पर बनते हैं जैसे त्वचा की चिप्पी।
- प्रक्रिया के लिए स्किन टैग से ग्रस्त त्वचा को सुन्न कर दिया जाता है।
- इसमें छोटे व तेज धार वाले ब्लेड आदि का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी मदद से त्वचा की चिप्पी को डंठल समेत निकाल दिया जाता है।
- त्वचा की चिप्पी के लिए की गई सर्जरी में टांके आदि लगाने की जरूर नहीं पड़ती है, क्योंकि इनका आकार बहुत ही छोटा होता है।
- ब्लीडिंग को रोकने के लिए कुछ प्रकार की दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है या फिर घाव को कॉटेराइजेशन किया जाता है।
सिंपल सिजर एक्शीजन:
- इस प्रक्रिया में ब्लेज की जगह पर कैंचाी का इस्तेमाल किया जाता है जिसकी मदद से बाहर लटकी हुई त्वचा की चिप्पी को निकाल दिया जाता है।
- सबसे पहले स्किन टैग वाली त्वचा को लोकल एनेस्थीसिया के साथ सुन्न कर दिया जाता है।
- जब त्वचा पूरी तरह से सुन्न हो जाती है, तो त्वचा की चिप्पी को चिमटी की मदद से खींच कर निकाल दिया जाता है।
- डंठल के निचले हिस्से को निकालने के लिए छोटी चिमटी का इस्तेमाल किया जाता है।
- इस प्रक्रिया में भी त्वचा पर टांके आदि लगान की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
- कुछ दवाएं या मलम आदि लगाकर बहते खून को रोका जा सकता है। इसके अलावा ब्लीडिंग को रोकने के लिए कॉटेराइजेशन प्रक्रिया का इस्तेमाल भी किया जाता है।
लेजर एक्शीजन:
सर्जरी आदि प्रक्रियाओं के मुकाबले लेजर एक्शीजन में चीरा आदि नहीं लगाया जाता है या फिर बहुत ही छोटा लगाया जाता है। यह भी एक मामूली सी प्रक्रिया होती है, जिसमें मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
एब्लेटिव लेजर रिसर्फेसिंग का उपयोग आमतौर पर कॉस्मेटिक्स प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में त्वचा के अंदर रोशनी की लंबी तरंगें छोड़ी जाती है, जिसकी मदद से प्रभावित व क्षतिग्रस्त क्षेत्रों को हटा दिया जाता है। इसके अलावा इसकी मदद से कोलेजन बनने की प्रक्रिया को भी उत्तेजित कर दिया जाता है और सर्जरी के बाद होने वाले घाव को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है। इंटरनेशनल जरनल ऑफ डर्मेटॉलॉजी, वेनेरीलॉजी एंड लेप्रोलॉजी में छपे एक आर्टिकल के अनुसार एब्लेटिव लेजर रिसर्फेसिंग के लिए कार्बन डाइऑक्साइड लेजर को गोल्ड स्टैंडर्ड लेजर माना जाता है। यह स्किन टैग को हटाने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली लेजर बीम होती है।
लेजर एक्शीजन प्रक्रिया से पहले त्वचा की चिप्पी वाले क्षेत्र में सुन्न करने वाला इंजेक्शन लगाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में आधे घंटे से लेकर 2 घंटों तक का समय लग जाता है। इसमें लगने वाला समय त्वचा के प्रकार व स्किन टैग की गहराई पर निर्भर करता है।
- साइड इफेक्ट:
- लेजर रिसर्फेसिंग से त्वचा की संवेदनशीलता बढ़ जाती है और इसका प्रभाव लगभग एक साल तक रहता है।
- कुछ प्रकार की दवाएं हैं, जो आपकी त्वचा पर पड़ने वाले लेजर के प्रभाव को बदल देती हैं। इसलिए यदि आप किसी भी प्रकार की दवा खा रहे हैं, लेजर ट्रीटमेंट शुरू करवाने से पहले डॉक्टर को उनके बारे में जरूर बता दें।
- आपको कुछ समय के लिए हाइपरपिगमेंटेशन (त्वचा पर गहरे रंग के धब्बे होना) भी हो सकता है, जो आपकी त्वचा के प्रकार पर निर्भर करता है।
(और पढ़ें - त्वचा के कैंसर की सर्जरी कैसे होती है)