सेक्स के दौरान उत्तेजित होने पर पुरुष लिंग मस्तिष्क को आनंद का संदेश भेजता है। इस आनंददायक अनुभव के चरम पर पहुंचने पर चरम सुख (ऑर्गेज्म) की प्राप्ति होती है। ऑर्गेज्म के दौरान पुरुष लिंग और अन्य अंगों में सुखदायक सनसनी का एहसास होता है। आमतौर पर पुरुषों में ऑर्गेज्म और स्खलन (इजेकुलेशन) एक साथ होते हैं, लेकिन यह दोनों न तो एक हैं न ही एक-दूसरे से किसी तरह से जुड़े हैं। स्खलन के दौरान पुरुष के मूत्रमार्ग से एक सफेद रंग का चिपचिपा तरल निकलता है, जिसे वीर्य कहते हैं। इस वीर्य में शुक्राणु (स्पर्म) होते हैं, जो महिला के प्रजनन अंगों के अंदर मौजूद अंडे के साथ मिलकर भ्रूण बनाते हैं। स्खलन की सामान्य प्रक्रिया के तहत वृषणों (टेस्टीकल्स) में मौजूद शुक्राणु, वीर्य के साथ मूत्रमार्ग से होते हुए पुरुष लिंग से तेजी से बाहर निकलते हैं। पुरुषों में वीर्य और मूत्र दोनों मूत्रमार्ग से बाहर आते हैं।
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इजेकुलेशन के दो भाग होते हैं - उत्सर्जन और निष्कासन। उत्सर्जन के दौरान मूत्राशय जहां पर मूत्र मार्ग से जुड़ता है उसे बंद किया जाता है और वृषणों से शुक्राणुओं का स्राव होता है। इसके बाद प्रोस्टेट ग्रंथि और कॉप्लर ग्रंथि से वीर्य का स्राव होता हुआ तेजी से मूत्रमार्ग से गुजरता है। मूत्रमार्ग में वीर्य के स्राव से पहले ही मूत्राशय के स्फिंक्टर में संकुचन बेहद जरूरी क्रिया है। ऐसा नहीं होने पर वीर्य के साथ मूत्र का स्राव भी हो सकता है या वीर्य वापस मूत्राशय में (रेट्रोग्रेड इजेकुलेशन) जा सकता है। निष्कासन के चरण में शुक्राणु युक्त वीर्य मूत्रमार्ग से होते हुए लिंग के अगले हिस्से से बाहर निकलता है।
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रेट्रोग्रेड इजेकुलेशन की समस्या तब होती है जब किसी कारणवश उत्सर्जन की प्रक्रिया के दौरान मूत्राशय के स्फिंक्टर में संकुचन नहीं होता। ऐसे में वीर्य लिंग के माध्यम से बाहर निकलने की बजाय मूत्राशय में चला जाता है। इस तरह वीर्य मूत्राशय में पहुंचकर मूत्र में मिल जाता है और मूत्र से साथ ही बाहर निकलता है। पुरुष चरम सुख का अनुभव करने या इजेकुलेशन की तीव्र इच्छा होने के बावजूद बहुत कम या बिल्कुल भी वीर्यपात नहीं कर पाता। इसीलिए रेट्रोग्रेड इजेकुलेशन को ड्राइ ऑर्गेज्म भी कहा जाता है। हालांकि, इससे यौन सुख का अनुभव करने में आमतौर पर कोई परेशानी नहीं आती। लेकिन वीर्यपात नहीं होने की वजह से प्रजनन क्षमता पर असर जरूर पड़ सकता है। इस समस्या को पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए किसी तरह के खतरे के रूप में नहीं देखा जाता है। इसका समय पर निदान और इलाज करके प्रजनन क्षमता को फिर से पाया जा सकता है।
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