कई प्रकार के परीक्षणों और कार्यों के दौरान हमारा शरीर रेडिएशन के संपर्क में आता है। बहुत अधिक मात्रा में रेडिएशन के संपर्क में आने के कारण शरीर को क्षति पहुंच सकती है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को रेडिएशन सिकनेस की समस्या हो सकती है। रेडिएशन सिकनेस को 'अक्यूट रेडिएशन सिंड्रोम' या 'रेडिएशन विषाक्तता' भी कहा जाता है।
सामान्य रूप से कई प्रकार के इमेजिंग टेस्ट जैसे एक्स-रे या सीटी स्कैन के दौरान भी शरीर में रेडिएशन पहुंचती है। हालांकि, इस दौरान प्रयोग किए जाने वाले रेडिशन की मात्रा बहुत कम होती है, जो शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाती है। विश्व इतिहास में रेडिएशन के प्रभाव का जिक्र बार-बार होता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए परमाणु बम विस्फोट के बाद 150,000 से 250,000 लोगों की मौत रेडिएशन सिकनेस के कारण हो गई थी।
अब यहां जान लेना जरूरी है कि आखिर रेडिएशन की कितनी मात्रा शरीर के लिए हानिकारक हो सकती है।
- सामान्य तौर पर एक ग्रे यूनिट अथवा 100 रोएन्टजन/ रेड मात्रा के संपर्क में आने के कारण रेडिएशन सिकनेस की समस्या हो सकती है।
- 400 रोएन्टजन/ रेड (या 4 ग्रे यूनिट) की मात्रा के संपर्क में आने वाले व्यक्तियों में से आधे लोगों की रेडिएशन सिकनेस के कारण मौत हो जाती है। वहीं इतनी मात्रा के संपर्क में आने वाले सभी लोगों की समय पर इलाज न मिल पाने के कारण जान जा सकती है।
- 1,00,000 रोएन्टजन/ रेड (या 1000 ग्रे यूनिट) के संपर्क में आने से तुरंत बेहोशी और एक घंटे के भीतर मृत्यु हो सकती है।
इस लेख में हम रेडिएशन सिकनेस के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।