सोरायसिस जिसे छाल रोग भी कहते हैं स्वप्रतिरक्षित यानी ऑटोइम्यून और लंबे समय तक बनी रहने वाली क्रॉनिक बीमारी है, जिसमें त्वचा लाल और पपड़ीदार हो जाती है। वैसे तो त्वचा में होने वाला इन्फ्लेमेशन सोरायसिस का प्रत्यक्ष संकेत है, लेकिन इस बीमारी के कारण आंतरिक अंगों और जोड़ों में भी इन्फ्लेमेशन (आंतरिक सूजन और जलन) की समस्या हो सकती है। सोरियाटिक गठिया या सोरियाटिक आर्थराइटिस, जोड़ों में होने वाली सूजन की समस्या है जो सोरायसिस से पीड़ित लोगों में विकसित होती है। प्रभावित जोड़ों में सूजन आ जाती है और अक्सर उसमें दर्द भी होता है। विशिष्ट रूप से ऐसा देखने में आता है कि जिन लोगों में सोरियाटिक गठिया की समस्या होती है उनमें गठिया के लक्षण विकसित होने से पहले कई सालों तक सोरायसिस की समस्या रहती है।
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चूंकि यह एक तरह का गठिया ही है, लिहाजा इसके संकेतों और लक्षणों में निम्नलिखित चीजें शामिल हैं :
- जोड़ों में सूजन या अकड़न
- मांसपेशियों में दर्द
- स्किन पर पपड़ीदार पैच बन जाना
- इसमें शरीर के छोटे जोड़ों का भी संबंध होता है जैसे- हाथ और पैर की उंगलियों, कलाई, टखना और कोहनी में मौजूद जोड़
- कुछ मामलों में आंखों से जुड़ी बीमारियां भी होने लगती हैं जिसमें सबसे कॉमन हैं - कंजंक्टिवाइटिस और यूवाइटिस
ऐसा माना जाता है कि सोरायसिस की ही तरह सोरियाटिक गठिया की समस्या भी तब उत्पन्न होती है जब शरीर का इम्यून सिस्टम शरीर में मौजूद स्वस्थ ऊत्तकों पर ही हमला करने लगता है। वैसे यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि वह कौन सी चीज है जो इन हमलों का कारण बनती है, लेकिन आनुवंशिक कारक और पर्यावरण से संबंधित कारक जैसे- स्ट्रेस, वायरल इंफेक्शन या चोट लगने जैसी स्थितियों के संयोजन का इसमें अहम रोल माना जाता है।
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जोड़ों में होने वाली समस्या या जकड़न से जुड़े लक्षणों के आधार पर, डॉक्टर आपको कुछ टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं और आगे की जांच व इलाज के लिए उस मरीज को रूमेटॉलजिस्ट के पास रेफर कर सकते हैं। गठिया का प्रकार क्या है यह जानने के लिए सामान्य परीक्षण किए जाते हैं जैसे- एक्स-रे, सी-रिऐक्टिव प्रोटीन टेस्ट और एरिथ्रोसाइट सेडिमेंटेशन रेट (ईएसआर) टेस्ट।
ऐसी कोई एक दवा नहीं है जो गठिया के सभी मामलों में काम करती हो। लिहाजा मरीज के लिए एक उपयुक्त और असरदार दवा चुनने से पहले कई अलग-अलग तरह की दवाइयां मरीज पर ट्राई की जाती हैं। एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-रूमैटिक दवाइयों के साथ ही फिजिकल थेरेपी भी प्रिस्क्राइब की जाती है, ताकि मरीज की गतिविधि और जोड़ों से जुड़ी समस्या को दूर करने में मदद मिल सके। कोर्टिकोस्टेरॉयड्स, बायोटेक दवाइयां या इम्यूनोसप्रेसेंट जैसी दवाइयां भी मरीज को प्रिस्क्राइब की जा सकती हैं।
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सोरियाटिक गठिया की समस्या लंबे समय तक बनी रहती है- इससे पूरी तरह से छुटकारा पाना बेहद मुश्किल होता है। हालांकि, सही दवाइयों और थेरेपी की मदद से मरीज में बीमारी के रीलैप्स यानी वापस आने की आशंका को जरूर दूर किया जा सकता है। सोरियाटिक गठिया एक ऐसी स्थिति है जो 7 से 26 प्रतिशत सोरायसिस के मरीजों को प्रभावित करती है।