पीओईएमएस सिंड्रोम क्या है?
पीओईएमएस सिंड्रोम (POEMS syndrome) रक्त से संबंधित एक दुर्लभ विकार है जो कि नसों को नुकसान पहुंचाता है और शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करता है। इस बीमारी का पूरा नाम, संकेत व लक्षण आगे बताए गए हैं :
(P) पॉलीन्यूरोपैथी - पैरों में झुनझुनी, कमजोरी व सुन्नता होना और कुछ समय बाद इस समस्या का हाथों तक पहुंचना एवं सांस लेने में दिक्कत होना।
(O) ऑर्गेनोमेगेली - लिवर, लिम्फ नोड्स या प्लीहा बढ़ना
(E) एंडोक्रिनोपैथी - हार्मोन का स्तर असामान्य होने पर हाइपोथायरायडिज्म (थायराइड ग्रंथि का कम कार्य करना), डायबिटीज, यौन समस्याएं, थकान, हाथ-पैरों में सूजन के अलावा चयापचय व अन्य आवश्यक कार्यों में बाधा आना।
(M) मोनोक्लोनल प्लाज्माप्रोलिफरेटिव डिसऑर्डर - असामान्य रूप से विकसित अस्थि मज्जा यानी बोन मैरो की कोशिकाएं (प्लाज्मा कोशिकाएं) ऐसे प्रोटीन (मोनोक्लोनल) का उत्पादन करती हैं, जो रक्त वाहिकाओं में पाया जा सकता है। इसकी वजह से शरीर के कुछ हिस्सों को नुकसान पहुंच सकता है।
(S) स्किन में बदलाव - त्वचा के रंग में बदलाव आना, संभवतः त्वचा मोटी होना व चेहरे या पैर पर अधिक बाल आना।
पीओईएमएस सिंड्रोम का कारण
शोधकर्ताओं को अभी तक इस विकार के कारण के बारे में पता नहीं चल पाया है, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि वे इस विकार में पैदा होने वाले सूजनकारी अणुओं पर अध्ययन और खासतौर पर यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह नसों को कैसे नुकसान पहुंचाता है।
इस विकार से ग्रसित लोगों में प्लाज्मा कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है। यह कोशिकाएं असामान्य मात्रा में एक तरह के प्रोटीन का निर्माण करने लगती हैं, जो शरीर के अन्य हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकता है।
पीओईएमएस सिंड्रोम का निदान
पीओईएमएस सिंड्रोम का संदेह होने पर डॉक्टर मेडिकल हिस्ट्री (पहले या अभी किसी बीमारी से ग्रस्त होने की जानकारी) और शारीरिक परीक्षण करते हैं।
इस शारीरिक परीक्षण में पेपिल्डेमा (आंख की नसों में सूजन) के बारे में पता करने के लिए कई टेस्ट करवाए जाते हैं जिनमें आंखों की जांच, न्यूरोलॉजिकल टेस्ट (नसों से संबंधित टेस्ट), अंगों के बढ़ने की जांच, स्किन टेस्ट, पेरीफेरल एडिमा (ऊतकों में तरल पदार्थ इकठ्ठा होने के कारण सूजन),प्ल्युरल या पेरिकार्डियल एफ्युजन (फेफड़ों या हृदय के चारों ओर द्रव इकठ्ठा होना), जलोदर (पेट में पानी भरना), क्लबिंग (उंगलियों के पोर बढ़ना) और कार्डियोमायोपैथी शामिल हैं।
पीओईएमएस सिंड्रोम का इलाज
यह एक दीर्घकालिक विकार (लंबे समय से प्रभावित करने वाला) है, जिसके बाद मरीज 8 से 14 वर्ष तक ही जी पाता है। दुर्भाग्य से इस बीमारी के लिए कोई मानक उपचार उपलब्ध नहीं है। अंतर्निहित प्लाज्मा कोशिकाओं के विकार के आधार पर इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
इसमें रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी और/या हेमाटोपोईएटिक सेल ट्रांसप्लांटेशन की मदद ली जा सकती है। पिछले एक दशक में इस विकार से ग्रस्त मरीजों में तेजी से सुधार देखा गया है।
चूंकि, इसके संकेत और लक्षण अन्य विकारों से मिलते-जुलते होते हैं इसलिए कई बार इस विकार का निदान करना मुश्किल हो सकता है। यदि पीओईएमएस सिंड्रोम के लक्षणों को नियंत्रित न किया जाए, तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। ऐसे में समय पर बीमारी का निदान होने से गंभीर खतरों से बचा जा सकता है।