फिमोसिस या फाइमोसिस क्या है?
फिमोसिस या फाइमोसिस एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें लिंग की त्वचा की ऊपरी चमड़ी जिसे फोरस्किन (Foreskin) कहा जाता है, अत्यधिक टाइट हो जाती है और शिश्नमुंड (लिंग का आगे वाला हिस्सा जिसे अंग्रेजी में Glans कहा जाता है) से पीछे नहीं हट पाती। ज्यादातर बच्चे व शिशु जिनका खतना (Circumcision) नहीं किया गया होता है उनको आगे जाकर फिमोसिस की समस्या हो जाती है, मतलब आगे जाकर उनके लिंग की ऊपरी चमड़ी पूरी तरह से या बिलकुल ही पीछे नहीं हट पाती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शिश्नमुंड और ऊपरी चमड़ी शिशु के पहले कुछ सालों तक आपस में जुड़ी होती है। चमड़ी पीछे ना हट पाने के कारण उसके नीचे के क्षेत्र की ठीक से सफाई नहीं हो पाती और खराब स्वच्छता के कारण वहां पर बार-बार संक्रमण होने होने लगता है।
शिश्नमुंड में बार-बार संक्रमण होने से स्कारिंग (गहरे निशान पड़ना) होने लगती है और जिसके परिणाम से अंत में फिमोसिस रोग विकसित हो जाता है। जिन लोगों को फिमोसिस है उनमें लिंग में संक्रमण के संकेत महसूस होते ही उनको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए, संक्रमण के संकेत व लक्षणों में लिंग की ऊपरी चमड़ी में दर्द व सूजन और मवाद बहना आदि शामिल है।
जिन बच्चों को गंभीर रूप से फिमोसिस हो जाता है उनमें दिन में कई घंटे लगातार लिंग में दर्द की समस्या रहती है। फिमोसिस की जांच डॉक्टर मरीज के शारीरिक परीक्षण की मदद से करते हैं। डॉक्टर यूरिन इन्फेक्शन की जांच करने के लिए यूरिन टेस्ट और बैक्टीरिया की उपस्थिति की जांच करने के लिए फोरस्किन के क्षेत्र से स्वैब की मदद से द्रव या पदार्थ आदि का सेंपल निकाल सकते हैं। संक्रमण से बचने और फिमोसिस होने की संभावनाओं को कम करने के लिए सामान्य स्वच्छता बनाए रखना बहुत जरूरी होता है।
बार-बार होने वाली फिमोसिस की समस्या के इलाज में फोरस्किन में स्टेरॉयड क्रीम लगाना और 10 साल या उससे अधिक उम्र के बच्चे के लिए फोरस्किन के कुछ हिस्से या उसे पूरी तरह से हटाने (खतना) के लिए सर्जरी करना आदि शामिल है। 10 साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों में अगर पेशाब करने के दौरान पेशाब पहले लिंग के अगले हिस्से में फोरस्किन में जमा होता है और फिर धीरे-धीरे बाहर निकलता है तो इस समस्या के कारण उनकी सर्जरी की जाती है।