व्यक्तित्व विकार क्या है?
हर एक व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व होता है। व्यक्ति के विचार, भावनाएं और बर्ताव ही उन्हें एक दूसरे से अलग बनाते हैं। ऐसे में व्यक्तित्व के प्रकारों और खासियतों के बारें में कई अलग-अलग मान्यताएं हैं। इसके चलते व्यक्तित्वों को समझने के कई अलग अलग तरीके हैं। ऐसे में व्यक्तित्व विकास का कारण अभी तक अज्ञात है। हालांकि, बचपन में इंसान के सामने पेश आए हालात और उनके जीन (अनुवाशिंक या वंशानुगत लक्षण) इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं।
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हर व्यक्तित्व विकार का अपना एक अलग लक्षण होता है। यह तकलीफ किसी को बहुत अधिक को किसी को बेहद कम होती है और पीड़ित को कई बार यह भी समझ नहीं आता कि उन्हें कोई दिक्क्त भी है। उन्हें लगता है कि उनके विचार बेहद ही स्वाभाविक हैं और वे अपनी परेशानियों के लिए भी दूसरों को दोषी ठहराने लगते हैं। इस बीमारी के लक्षणों में एकांत में रहने की भावना, बोरियत से लेकर शत्रुओं के प्रति सहानुभूति भी शामिल है।
इन समस्याओं का पता अमूमन जब तक चलता है तब तक पीड़ित 20 से 30 साल का हो चुका होता है। मनोचिकित्सकों द्वारा रोगी से बात करके उनकी समस्या समझने के बाद इसका निदान किया जाता है।
आपको जो उपचार दिया जाता है वह आपके व्यक्तिगत विकार, उसकी गंभीरता और आपकी परिस्थितियों पर निर्भर है। उपचार में अधिकांशतया रोगी से बात करना और कभी कभी दवाएं दिया जाना शामिल है। व्यक्तित्व विकार अमूमन लंबे समय से चली आ रही दिक्क्त होते हैं, ऐसे में इनके उपचार में महीनों से लेकर सालों तक लग सकते हैं।
व्यक्तित्व विकार का मतलब क्या है?
व्यक्तित्व विकार का आशय एक ऐसी अवस्था से है, जिसमें व्यक्ति को अपनी भावनाएं और बर्ताव हमेशा ही सही लगता है। यहां तक कि अगर उन भावनाओं के चलते व्यक्ति के निजी जीवन में कोई बड़ी परेशानी ही क्यों न आ जाएं वह अपनी बात को ही सही मानता है।