न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2 - Neurofibromatosis Type 2 (NF2) in Hindi

Dr. Nabi Darya Vali (AIIMS)MBBS

December 20, 2019

March 06, 2020

न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2
न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2

न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2 (एनएफ2) क्या है? 
न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2 को समझने से पहले न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस (एनएफ) को जानना जरूरी है। न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस एक आनुवांशिक विकार है, जिसके कारण मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी व नसों में ट्यूमर बन सकता है। जीन में असामान्यता के कारण यह बीमारी हो सकती है। कुल दो प्रकार के एनएफ होते हैं, जिनका नाम 'न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 1' (एनएफ 1) और 'न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2' (एनएफ 2) है। यह दोनों ही शरीर के विभिन्न हिस्सों में ट्यूमर के विकास का कारण बनते हैं।

न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2 से ज्यादा सामान्य न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 1 है। एनएफ 1 में शरीर के विभिन्न ऊतकों और अंगों में ट्यूमर हो सकता है। इसमें त्वचा संबंधित परेशानी एवं हड्डी में टेढ़ापन जैसी समस्या हो सकती है। दूसरी ओर एनएफ 2 मस्तिष्क और स्पाइनल ट्यूमर (रीढ़ की हड्डी में) विकसित हो सकता है। हालांकि, एनएफ के कारण होने वाले ज्यादातर ट्यूमर कैंसर नहीं होते हैं, फिर भी वे खतरनाक हो सकते हैं।

न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2 के लक्षण 
एनएफ 2 के लक्षण किसी भी उम्र में सामने आ सकते हैं, लेकिन ये आमतौर पर किशोरावस्था या वयस्क होने के शुरुआती चरणों में दिखाई देते हैं। इस बीमारी के सामान्य लक्षणों हैं:

न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2 के कारण 
एनएफ 2 एक आनुवांशिक स्थिति है। इसका मतलब यह है कि एनएफ 2 बीमारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचारित हो सकती है। एनएफ 2 से जुड़े जीन को मेडिकल भाषा में एनएफ 2 ही कहा जाता है। एनएफ 2 जीन में गड़बड़ी व्यक्ति में कैंसर और ट्यूमर के खतरों को बढ़ा सकती है। इस बीमारी का मुख्य कारण जीन में गड़बड़ी है, लेकिन शोधकर्ता इसके सटीक कारणों के बारे में पता लगा रहे हैं।

न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप 2 का इलाज 
एनएफ का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, इसके लक्षणों का उपचार किया जा सकता है। एनएफ 2 से ग्रस्त लोगों के लिए नियमित जांच करवाना जरूरी है क्योंकि ऐसा करने से न सिर्फ किसी बड़ी परेशानी की पहचान की जा सकती है बल्कि उसे समय रहते नियंत्रित भी किया जा सकता है। इस बीमारी में वर्ष में कम से कम एक बार शारीरिक जांच, न्यूरोलॉजिकल टेस्ट और हियरिंग (सुनने की क्षमता) टेस्ट करवाने की जरूरत होती है। इसके अलावा साल में एक बार आंखों के डॉक्टर को दिखाना भी फायदेमंद साबित हो सकता है। यदि ट्यूमर बहुत बड़े हो जाते हैं, तो सर्जरी की जरूरत पड़ती है। सर्जिकल प्रक्रिया में आमतौर पर न्यूरोसर्जन, नेत्र रोग विशेषज्ञ और कान, नाक एवं गले (ईएनटी) के विशेषज्ञों की एक टीम की आवश्यकता होती है। ये विशेषज्ञ यह सुनिश्चित करते हैं कि आसपास के हिस्सों को नुकसान पहुंचाए बिना ट्यूमर को सुरक्षित रूप से हटाया जाए।
 
यदि ऊपर दिए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण दिखाए देते हैं, तो डॉक्टर से मिलें। डॉक्टर निदान के लिए टेस्ट कर सकते हैं। चूंकि यह लक्षण अन्य बीमारियों से मिलते-जुलते हो सकते हैं इसलिए सटीक निदान आवश्यक है।