वैसे तो मूड स्विंग की समस्या किसी को भी हो सकती है लेकिन ज्यादातर मामलों में महिलाएं मूड स्विंग की दिक्कत का ज्यादा अनुभव करती हैं और इसके लिए उनकी लाइफस्टाइल और कई दूसरे कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं:
प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस)
प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम या पीएमएस पीरियड्स आने के 1 या 2 हफ्ते पहले देखने को मिलता है। इस दौरान लड़कियों और महिलाओं में मूड स्विंग के अलावा थकान, भूख में बदलाव, डिप्रेशन, पेट फूलना जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं। दुनियाभर की करीब 90 प्रतिशत महिलाओं में पीएमएस के लक्षण नजर आते हैं। ये लक्षण समय के साथ बेहतर भी हो सकते हैं या फिर और ज्यादा खराब भी।
अनुसंधानकर्ताओं की मानें तो मासिक धर्म या पीरियड्स आने से पहले शरीर में एस्ट्रोजेन हार्मोन का लेवल नाटकीय रूप से बढ़ने और घटने लगता है। इस हार्मोनल बदलाव की वजह से ही मूड और व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलता है।
प्रीमेंस्ट्रुअल डाइस्फोरिक डिसऑर्डर (पीएमडीडी)
यह पीएमएस का एक बेहद गंभीर और दुर्लभ प्रकार है जो दुनिया की करीब 5 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित करता है। पीएमडीडी के लक्षणों में मूड में बहुत ज्यादा बदलाव होना, गंभीर डिप्रेशन, हद से ज्यादा चिड़चिड़ापन जैसी चीजें देखने को मिलती हैं। इस दौरान स्ट्रेस को मैनेज करने के साथ ही डायट में भी कुछ बदलाव करके मूड स्विंग के लक्षणों में आराम मिल सकता है।
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स्ट्रेस या तनाव
स्ट्रेस यानी तनाव, चिंता और बेचैनी आपके शरीर और स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित करती है और इन्हीं में से एक है आपका मूड भी। चिड़चिड़ापन, किसी बात की चिंता और लगातार तनाव बना रहे तो इसकी वजह से आपके मूड में अचानक परिवर्तन देखने को मिलता है। लिहाजा मूड स्विंग से बचना है तो स्ट्रेस को मैनेज करना सीखें।
मानसिक रोग से जुड़े कारण
मनोविकार और व्यवहार से जुड़ी ऐसी कई बीमारियां हैं जिनकी वजह से मूड स्विंग जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं। अटेंशन डेफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी), डिप्रेशन और बाइपोलर डिसऑर्डर की वजह से भी मूड स्विंग की समस्या हो सकती है। इन बीमारियों का इलाज होने पर मूड स्विंग की समस्या भी अपने आप ठीक हो जाती है।
हार्मोन का असंतुलन
हाइपोथायराइडिज्म जिसमें थायराइड ग्लैंड पर्याप्त मात्रा में हार्मोन का उत्पादन नहीं करता यह हार्मोन से जुड़ी सामान्य बीमारी है जिसका आपके मूड पर भी असर देखने को मिलता है। इसके अलावा अगर आप हार्मोन थेरेपी ले रहे हों तब भी आपको बिना किसी वजह के गुस्सा या उदासी महसूस हो सकती है। जब भी शरीर में हार्मोन की मात्रा कम या ज्यादा हो जाती है तो मूड स्विंग देखने को मिलता है।
प्रेगनेंसी
जब आप गर्भवती होती हैं तो शरीर में हार्मोन्स की अधिकता हो जाती है जिसका सीधा असर आपके मूड पर पड़ता है। इस दौरान आपको बिना बात के रोना आ सकता है, खालीपन महसूस हो सकता है, एक ही पल में आप खुशी और उदासी दोनों का अनुभव कर सकती हैं। गर्भवती महिलाओं को कई तरह के शारीरिक बदलाव और भावनात्मक तनाव भी महसूस होता और इस कारण भी उनकी भावनाएं और मूड स्विंग की समस्या बढ सकती है।
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मेनोपॉज
महिलाओं के जीवन का एक और प्रमुख परिवर्तनकाल है मेनोपॉज और इस दौरान भी मूड में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं। एस्ट्रोजेन हार्मोन के लेवल में में कमी की वजह से महिलाओं के मूड में बदलाव होने के साथ ही हॉट फ्लैश, अनिद्रा और कामेच्छा में कमी जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। ऐसे में लाइफस्टाइल से जुड़े बदलाव करके आप अपने मूड को बेहतर बना सकती हैं।
डिमेंशिया
डिमेंशिया एक बीमारी है जिसमें व्यक्ति की याददाश्त और व्यक्तित्व प्रभावित होता है। डिमेंशिया के मरीजों में भी अचानक मूड स्विंग देखने को मिलता है। वे एक ही मिनट में खुश और अगले ही पल गुस्सा या उदास हो सकते हैं। चूंकि वे चीजें भूलने लगते हैं लिहाजा उन्हें निराशा और कुंठा भी महसूस होती है। डिमेंशिया से पीड़ित कई मरीज डिप्रेशन का शिकार भी हो जाते हैं।
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