लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम क्या है?
लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम एक प्रकार का गंभीर रोग है, जिसमें बार-बार मिर्गी के दौरे पड़ने लगते हैं। यह रोग आमतौर पर बचपन में ही होता है। इसमें कई प्रकार के मिर्गी के दौरे पड़ सकते हैं और साथ ही साथ मस्तिष्क संबंधी कई समस्याएं होने लग जाती हैं।
लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों में संज्ञानात्मक अक्षमता, शरीर का विकास धीरे-धीरे होना और अन्य व्यवहार संबंधी समस्याएं होने लग जाती हैं।
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लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं?
इसके लक्षण आमतौर पर शिशुओं व बच्चों में ही शुरू होता है, जिसमें विशेष रूप से 3 से 5 साल तक के बच्चे आते हैं। लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम में खासकर मिर्गी के ऐसे दौरे पड़ने लग जाते हैं, जो खासकर मस्तिष्क की विद्युत गतिविधियों को प्रभावित करती हैं। मिर्गी के दौरे दिन भर में कई बार पड़ते हैं।
जैसे ही लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम से ग्रस्त लोग बड़े होने लगते हैं, उनको पड़ने वाले मिर्गी के दौरों में बदलाव होने लगता है और दिनभर में दौरे पड़ने की संख्या में भी बदलाव हो जाता है।
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लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम क्यों होता है?
लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम होने के कई कारण हो सकते हैं। यह विकार जीन संबंधी समस्याओं के कारण भी हो सकता है, हालांकि इसके सटीक कारण का अभी पता नहीं चल पाया है।
लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम के ज्यादातर मामले तंत्रिकाओं संबंधी खराबी के कारण होते हैं। तंत्रिकाओं संबंधी समस्याएं आमतौर पर जन्म लेने से पहले या जन्म के दौरान शिशु के मस्तिष्क में किसी प्रकार की चोट लगने के कारण हो सकती है। इसके अलावा मस्तिष्क में खून का बहाव ठीक ना होना, मस्तिष्क में संक्रमण होना या कुछ अन्य विकार भी हैं जो तंत्रिका प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं।
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लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम का इलाज कैसे किया जाता है?
लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम के कारण होने वाली मिर्गी का इलाज करने के लिए डॉक्टर कुछ प्रकार की दवाएं लिख सकते हैं। इसके इलाज का मुख्य लक्ष्य लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम के कारण दिनभर में पड़ने वाले मिर्गी के दौरों की संख्या कम करना और ऐसे दवाओं का इस्तेमाल करना होता है, जिसके कम से कम साइड इफेक्ट्स हों। डॉक्टर को बच्चे के लिए सही इलाज का चुनाव करने में काफी समय लगता है और माता पिता की मदद लेनी पड़ सकती है।
आमतौर पर ऐसी कोई दवा नहीं है, जो मिर्गी को पूरी तरह से रोक सकती है। दवाएं देने के बाद डॉक्टर आपके बच्चे को निरीक्षण में रखते हैं।
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