लेग काल्व पर्थेस डिजीज क्या है?
लेग काल्व पर्थेस हड्डी से जुड़ा एक विकार है, जो कूल्हों को प्रभावित करता है। आमतौर पर, इस स्थिति में केवल एक कूल्हा प्रभावित होता है, लेकिन लगभग 10 प्रतिशत मामलों में दोनों कूल्हे भी प्रभावित हो सकते हैं। यह बीमारी बचपन में आमतौर पर 4 से 8 साल की उम्र के बीच शुरू होती है। लेग काल्व पर्थेस लड़कियों की तुलना में लड़कों को ज्यादा प्रभावित करती है।
इसमें कूल्हे की हड्डी कमजोर हो जाती है और धीरे-धीरे टूट जाती है। इसके अलावा कूल्हे का गोल आकार भी प्रभावित हो जाता है। इस स्थिति में, जांघ की हड्डी का ऊपरी हिस्सा (फीमर हेड) टूट जाता है। नतीजतन, फीमर हेड का गोलापन आकार खत्म हो जाता है और कूल्हे की सॉकेट में आसानी से फिट नहीं होता है। इस स्थिति में कूल्हे में दर्द, लंगड़ापन और पैरों की गतिविधि में दिक्कत आती है।
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लेग काल्व पर्थेस डिजीज के संकेत और लक्षण क्या हैं?
- लंगड़ापन (और पढ़ें - खंजता क्या है)
- कूल्हे, कमर, जांघ या घुटने में दर्द या अकड़न
- कूल्हे की जोड़ की गतिविधि सीमित होना
- गतिविधि करने पर दर्द का बढ़ जाना और आराम करने के दौरान दर्द में राहत महसूस करना
लेग-कैलेव-पर्थेस बीमारी में आमतौर पर केवल एक कूल्हा प्रभावित होता है, जबकि बहुत ही कम मामलों में दोनों कूल्हे प्रभावित होते हैं।
लेग काल्व पर्थेस डिजीज के कारण क्या हैं?
लेग-कैलेव-पर्थेस बीमारी तब होती है जब कूल्हे के जोड़ (हिप ज्वॉइंट) पर बॉल के आकार की हड्डी तक बहुत कम खून की आपूर्ति होती है। पर्याप्त मात्रा में खून के बिना, हड्डी कमजोर हो जाती है और आसानी से फ्रैक्चर हो जाती है। हालांकि, अभी तक शोधकर्ता फीमर हेड में रक्त प्रवाह में अस्थायी कमी के सटीक कारण की पहचान नहीं कर पाए हैं।
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लेग काल्व पर्थेस डिजीज का निदान कैसे किया जाता है?
लेग काल्व पर्थेस बीमारी वाले अधिकांश बच्चों में पहला संकेत कूल्हे, घुटने, जांघ या कमर में दर्द के साथ या दर्द के बिना लंगड़ापन है। साधारण एक्स-रे (रेडियोग्राम) के जरिये नैदानिक परीक्षण किया जा सकता है, लेकिन निदान की पुष्टि पूरी तरह से नैदानिक मूल्यांकन, मरीज की मेडिकल हिस्ट्री और/या कई विशेष परीक्षण जैसे एमआरआई, आर्थ्रोग्राफी, स्किंटिग्राफी और/या सोनोग्राफी के जरिये की जाती है।
- एक्स-रे : डॉक्टर संभवतः समय के साथ कई एक्स-रे करवाने की सलाह दे सकते हैं, ताकि स्थिति को ट्रैक किया जा सके।
- एमआरआई : यह तकनीक रेडियो किरणों की मदद से शरीर के अंदर हड्डी और नरम ऊतकों की बहुत विस्तृत या विस्तारपूर्वक छवियां तैयार करती है।
- आर्थ्रोग्राफी : आर्थ्रोग्राफी एक प्रकार का इमेजिंग टेस्ट है, जिसका उपयोग किसी जोड़ को देखने के लिए किया जाता है, जैसे कि कंधा, घुटना या कूल्हा।
- सोनोग्राफी : यह ध्वनि तरंगों का उपयोग करते हुए शरीर के अंदर की तस्वीरें तैयार करता है।
- मेडिकल हिस्ट्री : चिकित्सक द्वारा पिछली बीमारियों व उनके इलाज से जुड़े प्रश्न पूछना
- स्किंटिग्राफी : यह एक प्रक्रिया है, जो शरीर के अंदर की संरचनाओं की तस्वीरें तैयार करती है, इसमें वे हिस्से भी शामिल हैं जहां कैंसर कोशिकाएं होती हैं।
कुछ बच्चों को ऐसे में सर्जरी की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया में जांघ की हड्डी या श्रोणि में शंक्वाकार कट बनाया जाता है ताकि हड्डी को जोड़ में सही से बैठाया जा सके।
आमतौर पर छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इस उम्र में, हिप सॉकेट स्वाभाविक रूप से लचीली होती है, इसलिए फीमर हेड और सॉकेट बिना सर्जरी के एक साथ फिट होते जाते हैं।
इसके अलावा कुछ सहायक उपचार की भी जरूरत पड़ती है जैसे :
- सावधानी : इसमें दौड़ना व कूदने जैसे एक्टिविटी करने से बचना चाहिए, ताकि कूल्हों पर नकारात्मक असर न हो।
- बैसाखी : कुछ मामलों में प्रभावित कूल्हे पर बढ़ते वजन से बचने के लिए बैसाखी का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।
- फिजियोथेरेपी : इसमें पेशेवर की मदद से स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करने की सलाह दी जाती है ताकि कूल्हे को अधिक लचीला रखने में मदद मिल सके।
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लेग काल्व पर्थेस डिजीज का इलाज कैसे किया जाता है?
इस बीमारी में, हड्डी कमजोर होना, टूटना और नवीकरण की पूरी प्रक्रिया में शामिल है, जिसमें कई साल लग सकते हैं। ऐसे में उपचार इसके प्रकारों पर निर्भर करेगा जैसे :
- जब लक्षण शुरू हुए तब उम्र कितनी थी
- बीमारी का चरण कौन-सा है
- कूल्हे को कितना नुकसान हुआ है
जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती जाती है वैसे-वैसे फीमर हेड यानी जांघ के ऊपरी सिरे पर स्थिति बॉल की तरह दिखने वाली हड्डी कमजोर और खंडित होती जाती है।
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