लैरिंजियल कैंसर - Laryngeal Cancer in Hindi

Dr. Ayush PandeyMBBS,PG Diploma

March 20, 2021

August 25, 2021

लैरिंजियल कैंसर
लैरिंजियल कैंसर

लैंरिक्स (स्वरयंत्र), जिसे वॉयस बॉक्स के नाम से भी जाना जाता है। जब हम बोलते हैं तो यह ध्वनि उत्पन्न करने में मदद करता है। यह गर्दन के ऊपरी हिस्से में मौजूद होता है। लैंरिक्स में वोकल कॉर्ड होते हैं, जब हवा इनके माध्यम से निकलती है, तो यह कंपन्न करके ध्वनि बनाते हैं। यह ध्वनि भोजन नली, नाक और मुंह के माध्यम से होते हुए आवाज के रूप में बाहर आती है। लैंरिक्स के तीन भाग हैं :

  • सुप्राग्लोटिस : यह लैंरिक्स का ऊपरी हिस्सा है जो वोकल कॉर्ड के ऊपर से शुरू होता है, इसमें एपिग्लॉटिस शामिल है। बता दें, एपिग्लॉटिस पत्ती के आकार जैसी एक संरचना है, जो खाद्य और पेय पदार्थ को श्वासनली में जाने से रोकने के लिए वाल्व के रूप में काम करती है।
  • ग्लोटिस : यह लैंरिक्स का मध्य भाग है। इस हिस्से में वोकल कॉर्ड मौजूद होती है।
  • सबग्लोटिस : यह लैंरिक्स का निचला हिस्सा है, जो वोकल कॉर्ड के नीचे से शुरू होता है और ट्रेकिआ (विंडपाइप या श्वासनली) के ऊपर खत्म होता है।

लैंरिक्स के पीछे व आसपास घोड़े की नाल के आकार की एक संरचना होती है, जिसे हाइपोफरीनक्स (hypopharynx) कहा जाता है, यह लैंरिक्स के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि यह भोजन को सीधे भोजन नली में भेजता है। जब कोई व्यक्ति भोजन को निगलता है, तो लैंरिक्स, हाइपोफरीनक्स और भोजन नली यह तीनों मिलकर इस तरह से कार्य करते हैं कि भोजन पेट में उचित स्थान पर पहुंच जाता है। इनमें से किसी भी संरचना के सही से कार्य न करने से भोजन फेफड़ों में जा सकता है, जिससे सीने में संक्रमण हो सकता है।

लैंरिक्स के तीन महत्वपूर्ण कार्य हैं :

  • सांस लेने के दौरान लैंरिक्स हवा को फेफड़ों तक पहुंचने में मदद करता है।
  • लैंरिक्स वोकल कॉर्ड में कंपन्न पैदा करके ध्वनि बनाने में मदद करता है।
  • लैंरिक्स में एपिग्लॉटिस होता है, जो कुछ भी खाने-पीने के दौरान फेफड़ों में भोजन और पेय को जाने से रोकने के लिए श्वासनली को कवर करता है।

कैंसर के कई प्रकारों में से एक लैरिंजियल कैंसर है। इसमें लैरिंक्स कोशिकाओं (विशेषकर स्क्वैमस कोशिकाएं जो स्वरयंत्र की आंतरिक परत बनाती हैं) में असामान्य रूप से वृद्धि होने लगती है। लैरिंजियल कैंसर के लगभग 60 प्रतिशत मामले ग्लोटिस में, जबकि 35 फीसद मामले सुप्राग्लोटिस में और बाकी सबग्लोटिस में होते हैं। लैरिंजियल कैंसर को टीएनएम (ट्यूमर, नोड और मेटास्टेसिस) क्लासिफिकेशन और कौन-सा कैंसर किस हद तक फैला है, इस आधार पर अलग-अलग बांटा गया है। हालांकि, लैरिंजियल कैंसर शरीर के अन्य भाग को भी प्रभावित कर सकता है।

लैरिंजियल कैंसर के लक्षणों में कर्कश आवाज, दर्द और निगलने में कठिनाई, लगातार खांसी और गले में खराश, कान में दर्द और गंभीर मामलों में सांस लेने में कठिनाई होती है।

लैरिंजियल कैंसर के इलाज में मल्टीफैक्टीरियल एप्रोच (अलग-अलग तरह का दृष्टिकोण) की जरूरत होती है, जिसमें संक्रमित हिस्सों को सर्जरी की मदद से निकालना, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और जैविक चिकित्सा शामिल है। सर्जरी करा रहे मरीजों को कुछ अन्य प्रक्रियाओं की भी आवश्यकता हो सकती है।

(और पढ़ें - कैंसर में क्या खाना चाहिए)

लैरिंजियल कैंसर के चरण - Stages of laryngeal cancer in Hindi

लेरिंजल ट्यूमर को "ट्यूमर, नोड्स, मेटास्टेसिस" (टीएनएम) स्टेजिंग सिस्टम के आधार पर अलग-अलग बांटा गया है। इस प्रणाली का उपयोग सिर और गर्दन में किसी भी कैंसर के चरण का पता लगाने के लिए किया जाता है। टीएनएम में से 'टी' का उपयोग ट्यूमर की बढ़ी हुई मात्रा को मापने के लिए किया जाता है, 'एन' लिम्फ नोड्स के बारे में बताता है, जबकि 'एम' यह बताता है कि कैंसर (मेटास्टेसिस) कितना फैला है।

(और पढ़ें - ट्यूमर और कैंसर में अंतर)

  1. सुप्राग्लोटिस कैंसर - Supraglottis Cancer in Hindi
  2. ग्लोटिस कैंसर - Glottis Cancer in Hindi
  3. सबग्लोटिस कैंसर - Subglottis cancer in Hindi

सुप्राग्लोटिस कैंसर - Supraglottis Cancer in Hindi

सुप्राग्लोटिस कैंसर (वोकल कॉर्ड के ऊपर) को निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया गया है :

  • स्टेज 1: ट्यूमर, सुप्राग्लोटिस के एक हिस्से तक सीमित है।
  • स्टेज 2: ट्यूमर, सुप्राग्लोटिस के दो हिस्सों में फैल गया है : कैंसर या तो वोकल कॉर्ड में फैल गया है या सुप्राग्लोटिस के आसपास के ऊतक में फैल गया है।
  • स्टेज 3:
    • ट्यूमर लैरिंक्स के अंदर होना, जिससे वोकल कॉर्ड की मूवमेंट मुश्किल हो जाती है।
    • ट्यूमर का लिम्फ नोड के आस-पास फैल जाना

(और पढ़ें - लंग कैंसर का इलाज)

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ग्लोटिस कैंसर - Glottis Cancer in Hindi

ग्लोटिस कैंसर (वोकल कॉर्ड समेत लैरिंक्स के मध्य भाग में) को निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया गया है :

  • स्टेज 1: ट्यूमर, केवल वोकल कॉर्ड के अंदर होना
  • स्टेज 2: ट्यूमर, लैरिंक्स के नीचे या ऊपर या दोनों तरफ फैलना, जिसकी वजह से वोकल कॉर्ड को मूवमेंट करने में रुकावट आती है।
  • स्टेज 3:
    • लैरिंक्स के अंदर या आसपास के हिस्सों में ट्यूमर का फैल जाना, जिससे वोकल कॉर्ड की मूवमेंट में बाधा आती है।
    • कैंसर का लिम्फ नोड के चारों ओर उसी हिस्से में फैल जाना, जहां ट्यूमर है। यह लिम्फ नोड 3 सेमी से बड़ा नहीं होता है।

सबग्लोटिस कैंसर - Subglottis cancer in Hindi

सबग्लोटिस कैंसर (वोकल कॉर्ड के नीचे) को निम्नलिखित चरणों में बांटा गया है :

  • स्टेज 1: ट्यूमर का केवल सबग्लोटिस के अंदर होना।
  • स्टेज 2: ट्यूमर का वोकल कॉर्ड में फैलना, जिसकी वजह से उसे सामान्य रूप से मूवमेंट करने में मुश्किल होती है।
  • स्टेज 3:
    • ट्यूमर का केवल लैरिंक्स में फैलना, जिससे वोकल कॉर्ड की मूवमेंट में परेशानी होना
    • ट्यूमर का लिम्फ नोड के आस-पास में फैलना
  • स्टेज 4: इस चरण को तीन चरणों में बाटा गया है - 4ए, 4बी या 4सी, यह चरण इस पर निर्भर करता है कि किस हिस्से को ट्यूमर ने प्रभावित किया है, ट्यूमर द्वारा प्रभावित लिम्फ नोड्स की संख्या, आकार और स्थान क्या है।

(और पढ़ें - मुंह के कैंसर का इलाज)

लैरिंजियल कैंसर के लक्षण - Laryngeal cancer symptoms in Hindi

लैरिंजियल कैंसर के सबसे आम लक्षण नीचे दिए गए हैं :

लैरिंजियल कैंसर के कुछ असामान्य और गंभीर संकेतों में शामिल हैं :

  • सांस में बदबू आना
  • सांस लेते समय तेज आवाज आना
  • अचानक वजन कम होना
  • थकान

यह देखा गया है कि लैरिंजियल कैंसर के ज्यादातर मामले, जो वोकल कॉर्ड के ऊपर और नीचे शुरू होता है उनमें शुरुआती अवस्था में निदान नहीं हो पाता है।

(और पढ़ें - पेट में कैंसर का इलाज)

लैरिंजियल कैंसर का कारण - Laryngeal cancer causes in Hindi

लैरिंजियल कैंसर का कोई सटीक कारण नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे कारक हैं जो इस प्रकार के कैंसर के विकास के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।

  • शराब और तंबाकू का सेवन : अल्कोहल और तंबाकू के सेवन (धुएं वाला और धुआं रहित तंबाकू) से लैरिंजियल कैंसर होने का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे लोग जो लगभग 30 या अधिक वर्षों से धूम्रपान कर रहे हैं, उनमें लैरिंजियल कैंसर विकसित होने का जोखिम ऐसे लोगों के मुकाबले 40 गुना अधिक होता है, जो धूम्रपान नहीं करते हैं। इसके अलावा शराब पीने से भी लैरिंजियल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। (और पढ़ें - शराब छुड़ाने के उपाय)
  • फैमिली हिस्ट्री : यहां फैमिली हिस्ट्री से मतलब है कि जिन लोगों के परिवार के किसी सदस्य को कभी इस तरह की समस्या (सिर और गर्दन के कैंसर) रही है, उनमें भी इसका जोखिम रहता है।
  • आहार : अध्ययन से पता चला है कि जो लोग ऐसे आहार का सेवन करते हैं, जिनमें रेड मीट, प्रोसेस्ड फूड और तला-भुना भोजन शामिल है, उनमें लैरिंजियल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
  • ह्यूमन पेपिलोमावायरस इंफेक्शन : ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा और ओवेरियन कैंसर का कारण बनता है। एचपीवी एक यौन संचारित रोग है, जो वायरस के एक ऐसे समूह के कारण होता है जो त्वचा और मॉइस्ट मेंब्रेन (नमी बनाए रखने वाली झिल्ली) को प्रभावित करता है, यह मेंब्रेन शरीर की रूप-रेखा (जैसे गर्भाशय ग्रीवा, गुदा, मुंह और गला) को बनाए रखती है। एचपीवी को गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं में बदलाव का कारण माना जाता है, इसकी वजह से गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर हो सकता है। माना जाता है कि वायरस गले की कोशिकाओं को भी प्रभावित करता है। एचपीवी अक्सर असुरक्षित यौन संबंध के दौरान फैलता है, जिसमें ओरल सेक्स भी शामिल है।
  • हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आना : ऐसी नौकरी करना, जहां आप कुछ ऐसे पदार्थों के संपर्क में रहते हैं, जिसकी वजह से लैरिंजियल कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। इन पदार्थों में कोयला या लकड़ी की धूल, पेंट या डीजल का धुआं, निकेल, सल्फ्यूरिक एसिड का धुआं, फॉर्मलडिहाइड (ऐसा रासायन, जिसका उपयोग औद्योगिक कार्यों में बड़े स्तर पर किया जाता है) और आइसोप्रोपिल अल्कोहल (अक्सर सफाई करने वाले चीजों में इस्तेमाल होने वाला एक रसायनिक योगिक) शामिल हैं।

(और पढ़ें - कैंसर के लिए होम्योपैथिक दवा)

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लैरिंजियल कैंसर की रोकथाम - Laryngeal cancer prevention in Hindi

लैरिंजियल कैंसर की रोकथाम के लिए खान-पान में कुछ जरूरी बदलाव किए जा सकते हैं जैसे :

  • तंबाकू उत्पादों का इस्तेमाल बंद करना
  • शराब के सेवन में कमी करना
  • स्वस्थ भोजन लेना

(और पढ़ें - कैंसर से बचने के लिए क्या खाना चाहिए)

लैरिंजियल कैंसर का निदान - Laryngeal cancer diagnosis in Hindi

निम्नलिखित परीक्षणों और प्रक्रियाओं का उपयोग करके लैरिंजियल कैंसर का निदान किया जा सकता है :

  • शारीरिक परीक्षा : डॉक्टर गले और गर्दन के असामान्य हिस्सों की जांच के लिए शारीरिक परीक्षण कर सकते हैं। इसके अलावा डॉक्टर स्वास्थ्य से जुड़ी मरीज की आदतों और मेडिकल हिस्ट्री भी चेक कर सकते हैं।
  • बायोप्सी : यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें डॉक्टर आगे की जांच के लिए संक्रमित हिस्से से कोशिकाओं या ऊतकों का नमूना लेकर उसका लैब टेस्ट करते हैं। बायोप्सी निम्नलिखित प्रक्रियाओं की मदद से की जा सकती है :
    • लेरिंजोस्कोपी : यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें डॉक्टर पतले ट्यूब जैसे उपकरण को लैरिंक्स में डालते हैं। इस ट्यूब के आगे वाले हिस्से में टॉर्च और कैमरा लगा होता है। डॉक्टर इस उपकरण की मदद से ऊतकों के नमूने भी निकाल सकते हैं।
    • एंडोस्कोपी : इस तकनीक में डॉक्टर संक्रमित जगह के नमूने देखने और उन्हें निकालने के लिए पतली ट्यूब जैसे उपकरण को मुंह में डालते हैं। इसमें भी टॉर्च और कैमरा लगा होता है।
  • सीटी स्कैन : सीटी स्कैन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें डॉक्टर विभिन्न कोणों (एंगल) से शरीर के अंदर के हिस्सों की तस्वीरें देख सकते हैं।
  • एमआरआई : एमआरआई स्कैन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें डॉक्टर शरीर में संक्रमित हिस्सों के चित्रों की श्रृंखला को देखने के लिए चुंबक, रेडियो तरंगों और एक कंप्यूटर का उपयोग करते हैं।
  • पीईटी स्कैन : पीईटी स्कैन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उपयोग डॉक्टर शरीर में ट्यूमर कोशिकाओं की जांच के लिए करते हैं। इस प्रक्रिया में नसों में थोड़ी मात्रा में रेडियोएक्टिव ग्लूकोज को इंजेक्ट किया जाता है।
  • पीईटी-सीटी स्कैन : पीईटी-सीटी स्कैन एक प्रक्रिया है, जिसमें पीईटी स्कैन और सीटी स्कैन का संयोजन (कॉम्बिनेशन) शामिल है।
  • बोन स्कैन : हड्डियों के स्कैन में हड्डी में तेजी से विभाजित कोशिकाओं का विश्लेषण किया जाता है।
  • बेरियम स्वालो : बेरियम स्वालो एक ऐसा परीक्षण है, जिसमें रोगी बेरियमयुक्त तरल पीता है, यह एक तरह का सिल्वर-व्हाइट कलर का मेटलिक यौगिक है। इसके बाद डॉक्टर गले, भोजन नली और पेट की जांच के लिए एक्स-रे करते हैं।

(और पढ़ें - एचएसजी क्या है)

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लैरिंजियल कैंसर का इलाज - Laryngeal cancer treatment in Hindi

आमतौर पर, मरीज के लिए अच्छे से अच्छा उपचार निर्धारित करने के लिए विशेषज्ञों की बहु-विषयक टीम एक साथ मिलकर काम करती है। विभिन्न प्रकार के ऐसे उपचार हैं, जिनका उपयोग लैरिंजियल कैंसर के उपचार के लिए किया जा सकता है :

  1. सर्जरी - Laryngeal cancer surgery in Hindi
  2. कीमोथेरेपी - Chemotherapy for laryngeal cancer in Hindi
  3. इम्यूनोथेरेपी - Immunotherapy for laryngeal cancer in Hindi
  4. जैविक चिकित्सा - Biological therapy for laryngeal cancer in Hindi
  5. रेडियोथेरेपी - Radiotherapy for laryngeal cancer in Hindi

सर्जरी - Laryngeal cancer surgery in Hindi

लैरिंजियल कैंसर की सर्जरी में लैरिंक्स के उस हिस्से को हटाया जाता है, जिसमें ट्यूमर होता है, इसे चिकित्सकीय रूप से लेरिंजेक्टॉमी कहा जाता है। लैरिंक्स का कौन-सा भाग कैंसर से प्रभावित हुआ है, इस आधार पर सर्जरी की जाती है :

  • कॉर्डेक्टॉमी (केवल वोकल कॉर्ड को हटाने के लिए)
  • सुप्राग्लॉटिक लेरिंजेक्टॉमी (केवल सुप्राग्लोटिस को हटाने के लिए)
  • हेमिलेरिंजेक्टॉमी (वॉयस बॉक्स के आधे हिस्से को हटाने के लिए)
  • आंशिक रूप से की जाने वाली लेरिंजेक्टॉमी (वॉयस बॉक्स के केवल संक्रमित भाग को हटाने के लिए)
  • पूर्ण रूप से की जाने वाली लेरिंजेक्टॉमी (पूरे लैरिंक्स को हटाने के लिए)
  • लैंरिक्स पर मौजूद ट्यूमर को हटाने के लिए लेजर सर्जरी

सर्जरी के बाद कुछ कैंसर कोशिकाएं बची रह सकती हैं, ऐसे में सर्जरी के बाद भी, रोगी को अलग से कीमो या रेडिएशन थेरेपी की जरूरत हो सकती है।

नीचे सर्जरी के तीन सबसे सामान्य प्रकार बताए गए हैं, जो लैरिंजियल कैंसर के इलाज में उपयोग किए जाते हैं :

  • एंडोस्कोपिक रेसेक्शन ऑफ दि ट्यूमर : एंडोस्कोपिक रेसेक्शन का इस्तेमाल ज्यादातर लैरेंजियल कैंसर के शुरुआती चरणों में किया जाता है। बता दें, लैरेंजियल कैंसर के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सर्जरी के अन्य विकल्पों में से यह सबसे कम आक्रामक (जिसमें काट-पीट कम होती है) सर्जरी है। इस सर्जरी में, सर्जन एक विशेष माइक्रोस्कोप का उपयोग करते हैं, जो लैरिंक्स को बेहतर और बड़े रूप में दिखाता है। यह सर्जन को या तो लेजर या अन्य छोटे उपकरणों की मदद से कैंसर वाले हिस्से को निकालने में मदद करता है।

इस प्रक्रिया के बाद, कुछ लोगों को हल्के दर्द के साथ गले में खराश या गले से संबंधित अन्य शिकायत हो सकती है, लेकिन यह आमतौर पर कुछ हफ्तों में दूर हो जाती है। हालांकि, एक जोखिम भी है कि प्रक्रिया के बाद, कुछ लोगों की आवाज में स्थायी बदलाव हो सकता है।

  • आंशिक रूप से की जाने वाली लेरिंजेक्टॉमी : कुछ लेरिंजल कैंसर का इलाज पार्शियल लेरिंजेक्टॉमी की मदद से किया जा सकता है। इस सर्जरी में डॉक्टर ग्रंथि के प्रभावित हिस्सों को हटाते हैं और जितना संभव हो वोकल कॉर्ड को सुरक्षित रखने की कोशिश करते हैं। इस सर्जरी के बाद व्यक्ति बात कर सकता है। हालांकि, आवाज कर्कश या कमजोर हो सकती है।

सर्जरी के बाद कुछ लोगों को सांस लेने में परेशानी हो सकती है। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सर्जन एक अस्थायी ट्रेकियोस्टोमी कर सकते हैं। इसमें एक ट्यूब को संलग्न करने के लिए गले में अस्थायी रूप से छेद बनाया जाता है, जो व्यक्ति को सांस लेने में मदद करता है। लैरिंक्स ठीक होते ही ट्यूब को हटा दिया जाता है और छेद भी अपने आप ठीक हो जाता है।

  • पूर्ण रूप से की जाने वाली लेरिंजेक्टॉमी : टोटल लेरिंजेक्टॉमी आमतौर पर एडवांस स्टेज में की जाती है यानी जब कैंसर लैरिंक्स को पूरी तरह से प्रभावित कर चुका होता है। इस सर्जरी में, सर्जन आसपास के लिम्फ नोड्स के साथ-साथ पूरे लैंरिक्स को निकाल देते हैं, क्योंकि ज्यादातर मामलों में, कैंसर फैलने का जोखिम रहता है। सर्जरी के बाद, रोगी बोलने में असमर्थ हो जाता है, क्योंकि व्यक्ति की वोकल कॉर्ड पूरी तरह से हटा दी जाती हैं। वोकल कॉर्ड को हटाने के बाद व्यक्ति को स्पीच थेरेपी लेने की जरूरत पड़ती है।

​टोटल लेरिंजेक्टॉमी में एक और प्रक्रिया की जाती है, जिसमें गर्दन में एक स्थायी छेद किया जाता है। इसे स्टोमा कहा जाता है। यह स्टोमा व्यक्ति को सांस लेने में मदद करता है। स्टोमा के बारे में व्यक्ति को उचित प्रशिक्षण दिया जाता है, इसमें उसे बताया जाता है कि यह काम कैसे करता है और इसे साफ कैसे किया जाता है।

(और पढ़ें - मुंह के कैंसर का ऑपरेशन कैसे होता है)

कीमोथेरेपी - Chemotherapy for laryngeal cancer in Hindi

कीमोथेरेपी किसी भी कैंसर के इलाज के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली चिकित्सा है। इसमें कुछ ऐसी दवाइयों का उपयोग किया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को नुकसान पहुंचाती हैं और उन्हें बढ़ने से रोकती हैं। कीमोथेरेपी का इस्तेमाल या तो सर्जरी से पहले ट्यूमर के आकार को कम करने के लिए या सर्जरी के बाद बची हुई कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए किया जा सकता है। इसे रेडियोथेरेपी के साथ भी दिया जा सकता है।

कीमोथेरेपी दवाओं को आमतौर पर हर तीन से चार सप्ताह में एक बार नस में एक इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है, ऐसा छह महीने तक करने की जरूरत पड़ती है।

कीमोथेरेपी केवल कैंसर कोशिकाओं को नहीं मारती है, बल्कि ऐसे स्वस्थ ऊतकों को भी नुकसान पहुंचाती हैं, जिसकी वजह से शरीर में कई तरह के साइड इफेक्ट देखे जा सकते हैं, इनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं :

कीमोथेरेपी आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी कमजोर कर सकती है, जिसकी वजह से आप कैंसर के साथ-साथ अन्य संक्रमणों और बीमारियों से ग्रस्त हो सकते हैं।

(और पढ़ें - इम्यूनिटी बढ़ाने के उपाय)

इम्यूनोथेरेपी - Immunotherapy for laryngeal cancer in Hindi

इम्यूनोथेरेपी एक प्रकार का उपचार है, जो कैंसर से लड़ने के लिए रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करता है। इस चिकित्सा में, डॉक्टर उन चीजों का उपयोग करते हैं, जो या तो प्राकृतिक हैं या जिन्हें प्रयोगशाला में तैयार किया जाता है। यह कैंसर के खिलाफ शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली को बढ़ावा देते हैं। कैंसर के लिए इम्यूनोथेरेपी के उदाहरण 'कार टी-सेल थेरेपी' शामिल है।

(और पढ़ें - इम्यूनोथेरेपी के फायदे)

जैविक चिकित्सा - Biological therapy for laryngeal cancer in Hindi

जैविक चिकित्सा में डॉक्टर कुछ ऐसी दवाएं देते हैं, जो रोगी में कैंसर कोशिकाओं के विकास को टारगेट करके उसे बढ़ने से रोकती हैं। इन दवाइयों में से एक है सिटक्सिमैब (Cetuximab) जिसका उपयोग रेडियोथेरेपी के साथ संयोजन के रूप में किया जाता है, ताकि बेहतर तरीके से लेरिंजल कैंसर का इलाज किया जा सके।

सिटक्सिमैब सात हफ्तों तक नसों के जरिये दिया जाता है। हालांकि, व्यक्ति को त्वचा पर चकत्ते, दस्त, सांस फूलना और बीमार महसूस करने जैसा हल्का दुष्प्रभाव हो सकता है। कुछ लोगों में गंभीर रूप से एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है जैसे जीभ में सूजन और गले में सूजन जो वायुमार्ग को ब्लॉक कर सकती है और संभावित रूप से जानलेवा हो सकती है।

(और पढ़ें - गले में सूजन के घरेलू उपाय)

रेडियोथेरेपी - Radiotherapy for laryngeal cancer in Hindi

रेडियोथेरेपी में, डॉक्टर कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए हाई-एनर्जी रेडिएशन की नियंत्रित खुराक का उपयोग करते हैं। इस उपचार का उपयोग ज्यादातर कैंसर की शुरुआती अवस्था में या कैंसर सर्जरी के बाद कैंसर की कोशिकाओं की वापसी को रोकने के लिए किया जाता है। कभी-कभी कीमोथेरेपी के साथ भी रेडियोथेरेपी दी जाती है।

रेडियोथेरेपी में, रेडिएशन लैरिंक्स को टारगेट करती है। रोगी को एक प्लास्टिक मास्क पहनने के लिए कहा जाता है जो पूरे प्रोसीजर के दौरान सिर के पोजिशन को सही रखने में मदद करता है। आमतौर पर, लैरेंजियल कैंसर के उपचार के लिए हाइपरफ्रैक्सनेटेड रेडिएशन थेरेपी का उपयोग किया जाता है। इसमें, रेडिएशन की एक छोटी मात्रा को दो खुराक में विभाजित किया जाता है, इसीलिए उपचार दिन में दो बार दिया जाता है।

उपचार का कोर्स आमतौर पर तीन से सात सप्ताह तक रहता है। इसमें से निकलने वाली लेजर कैंसर कोशिकाओं को मारती हैं, लेकिन वे शरीर के स्वस्थ ऊतकों को भी प्रभावित करती हैं। परिणामस्वरूप, रोगी को विभिन्न दुष्प्रभावों जैसे धूप से त्वचा के जलने पर चकत्ते, मुंह के छाले, मुंह का सूखना, स्वाद न आना, भूख न लगना और थकान जैसी शिकायतें हो सकती हैं। इनके लिए, डॉक्टर रोगी को एनेस्थेटिक जैल, आर्टिफिशियल सलाइवा के साथ ही अल्सर, स्वाद में कमी और गले में खराश के लिए बीटाडीन सॉल्यूशन दे सकते हैं।

(और पढ़ें - कैंसर का आयुर्वेदिक इलाज क्या है)