लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम क्या है?
लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम को लैम्बर्ट-ईटन सिंड्रोम भी कहा जाता है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें प्रतिरक्षा तंत्र आपके न्यूरोमस्कुलर जंक्शन (neuromuscular junctions: जहां पर नसों और मांपेशियां जुड़ती है) को क्षति पहुंचाता है। सामान्यतः नसों की कोशिकाएं मांसपेशियों की कोशिकाओं के साथ मिलकर संकेत भेजती हैं। इन संकेतों की मदद से मांसपेशियां का संचालन होता है। लेकिन जब लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम का दुष्प्रभाव नसों और मांसपेशियों पर होता है तो इससे मांसपेशियों के सामान्य कार्यों में मुश्किल आने लगती है।
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लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं?
लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम में रोगी की जांघों और कूल्हों में कमजोरी आने लगती है। साथ ही व्यक्ति को चलने में मुश्किल होना, बांह और कंधों में कमजोरी होने के लक्षण होने लगते हैं, जिसकी देखभाल करना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा मरीज के आंखों की मांसपेशियों में भी कमजोरी आने लगती है और उसको बोलने, निगलने, चबाने में भी परेशानी होने लगती है, लेकिन यह लक्षण बेहद ही हल्के होते हैं।
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लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम क्यों होता है?
यह स्थिति काफी हद तक स्मोल सेल लंग कैंसर (small cell lung cancer) की तरह ही होती है। जब आपका शरीर संबंधित कैंसर से लड़ने का कार्य करता है तो इसके परिणाम स्वरूप लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम हो जाता है। कुछ मामलों में लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम स्व-प्रतिरक्षित रोग पैदा कर देता है, जबकि कुछ मामलों में इसके कारणों का पता नहीं चल पाता है।
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लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम का इलाज कैसे होता है?
लैम्बर्ट-ईटन मायास्थेनिक सिंड्रोम के इलाज का मुख्य उद्देश्य इससे होने वाले अन्य समस्याओं (जैसे फेफड़ों का कैंसर) की पहचान करना और अन्य विकारों का इलाज करना होता है। इसके अलावा इलाज में रोगी की कमजोरी को दूर करने पर भी जोर दिया जाता है।
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