इम्यूनोडेफिशिएंसी (इम्यून प्रतिक्रिया उत्पन्न करने में अक्षम), इम्यूनोसप्रेशन (शरीर के इम्यून सिस्टम में अवरोध उत्पन्न होना) और इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड (प्रतिरक्षा में अक्षम) इन शब्दों का इस्तेमाल बीते कुछ दिनों में पहले से कहीं अधिक किया जा रहा है, विशेष रूप से दुनिया भर में कोविड-19 संक्रमण के मामले लगातार बढ़ने के कारण।
इम्यूनोडेफिशिएंसी, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया हो सकती है या एक प्रतिरक्षा प्रणाली हो सकती है जिसमें कमी या कमजोरी आ गई हो। जैसा कि हमने पहले ही बताया इम्यूनोसप्रेशन एक अर्थ है प्रतिरक्षा प्रणाली का दमन या शरीर के इम्यून सिस्टम में अवरोध उत्पन्न होना। कई बार दवाइयों का इस्तेमाल कर जानबूझकर भी किसी व्यक्ति में इम्यूनोसप्रेशन किया जाता है। उदाहरण के लिए- यह तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति की अंग प्रत्यारोपण की सर्जरी होती है ताकि इम्यून सिस्टम प्रत्योरोपित किए गए इस अंग को शरीर के बाहर का हिस्सा या फॉरेन ऑब्जेक्ट समझकर उस पर हमला करना न शुरू कर दे। कैंसर थेरेपी या कुछ दवाइयों के साइड इफेक्ट के कारण भी इम्यूनोसप्रेशन की समस्या हो सकती है।
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साधारण शब्दों में समझने की कोशिश करें तो बीमारियों और संक्रमणों से लड़ने के लिए शरीर की कम क्षमता को ही इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड कहते हैं। ज्यादातर मामलों में, इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड होने की स्थिति किसी बीमारी या शरीर में पहले से मौजूद किसी स्थिति के कारण होती है जैसे- एचआईवी संक्रमण, विभिन्न प्रकार के कैंसर, डायबिटीज, मोटापा, हृदय रोग, ऑटोइम्यून बीमारियों और कुछ आनुवंशिक विकार। इसके अलावा बुजुर्ग और धूम्रपान करने वाले लोग भी आमतौर पर इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड होते हैं। किसी व्यक्ति में इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड होने की स्थिति स्थायी भी हो सकती है या फिर समय के साथ व्यक्ति की स्थिति में सुधार भी हो सकता है।
ऊपर बताए गए तीनों शब्दों में से प्रत्येक में बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता में कमी को व्यक्त करने का संकेत मिलता है।
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हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम विभिन्न कोशिकाओं से बना है जो विभिन्न प्रकार के रोगजनकों, जैसे बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने के लिए शरीर को तैयार करने में मदद करते हैं। लेकिन जब यह सिस्टम शरीर में ठीक से काम नहीं करता तो व्यक्ति के संक्रमित होने और बीमार पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। जो लोग इम्यूनोसप्रेस्ड या इम्यूनोडेफिशिएंट होते हैं, उन लोगों के संक्रमित होने और बीमार पड़ने की आशंका अधिक होती है। लेकिन इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड होना इन दोनों से थोड़ा अलग है, क्योंकि हमारे शरीर के सिस्टम में इस असंतुलन की डिग्री अलग-अलग होती है।