शरीर को स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। एक ओर जहां सांस के माध्यम से फेफड़ों को ऑक्सीजन मिलता है वहीं शरीर के ऊतकों तक रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है। हालांकि, स्वास्थ्य संबंधी कुछ ऐसी स्थितियां है जिनमें कोशिकाओं और ऊतकों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। हाइपोक्सिया, ऐसी ही एक स्थिति है। यह काफी खतरनाक समस्या हो सकती है। ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण हाइपोक्सिया के लक्षण शुरू होने के कुछ मिनटों बाद ही मस्तिष्क, लिवर और अन्य अंग डैमेज होने शुरू हो जाते हैं।
सामान्य तौर पर हाइपोक्सिया को अक्सर हाइपोक्सेमिया के साथ जोड़कर देखा जाता है। हालांकि, दोनों अलग-अलग स्थितियां हैं। डॉक्टरों का मानना है कि हाइपोक्सेमिया के कारण हाइपोक्सिया होने की आशंका जरूर होती है। ऐसे में दोनों में अन्तर समझना आवश्यक है। हाइपोक्सेमिया की स्थिति में रक्त में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। इस तरह की समस्या आमतौर पर ऊंचाई वाले स्थानों पर देखने को मिलती है। वहीं अगर हाइपोक्सिया की बात करें तो यह शरीर के विभिन्न हिस्सों में रक्त प्रवाह सामान्य होने के बावजूद भी हो सकता है। यही कारण है कि इसमें बीमारी का निदान कर पाना काफी कठिन होता है।
जब तक इसके लक्षण न दिखने लगें तब तक बीमारी की पहचान नहीं हो पाती है। हां, जिन लोगों को क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी फेफड़ों से संबंधित बीमारियां हैं, उनमें हाइपोक्सिया का खतरा अधिक रहता है। फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम होने के परिणामस्वरूप भी हाइपोक्सिया हो सकता है। ऐसा होने के पीछे डॉक्टरों का मानना है कि इस स्थिति में शरीर के विभिन्न हिस्सों में कोशिकाओं और ऊतकों तक ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुंच नहीं पाता है। इसके अलावा पोषण की कमी और एनीमिया के कारण भी हाइपोक्सिया का खतरा रहता है। बच्चों से लेकर वयस्कों और उम्रदराज लोगों को भी यह समस्या हो सकती है। साल 2016 में क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजी एंड ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक निमोनिया से पीड़ित 135 बच्चों में से 40 फीसदी बच्चों में हाइपोक्सिया के लक्षण देखने को मिले।
इस लेख में हम हाइपोक्सिया के लक्षण, कारण, बचाव के तरीकों और इलाज के बारे में जानेंगे।