हाइपोक्सिया - Hypoxia in Hindi

Dr. Nabi Darya Vali (AIIMS)MBBS

September 03, 2020

November 05, 2020

हाइपोक्सिया
हाइपोक्सिया

शरीर को स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। एक ओर जहां सांस के माध्यम से फेफड़ों को ऑक्सीजन मिलता है वहीं शरीर के ऊतकों तक रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है। हालांकि, स्वास्थ्य संबंधी कुछ ऐसी स्थितियां है जिनमें कोशिकाओं और ऊतकों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। हाइपोक्सिया, ऐसी ही एक स्थिति है। यह काफी खतरनाक समस्या हो सकती है। ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण हाइपोक्सिया के लक्षण शुरू होने के कुछ मिनटों बाद ही मस्तिष्क, लिवर और अन्य अंग डैमेज होने शुरू हो जाते हैं।

सामान्य तौर पर हाइपोक्सिया को अक्सर हाइपोक्सेमिया के साथ जोड़कर देखा जाता है। हालांकि, दोनों अलग-अलग स्थितियां हैं। डॉक्टरों का मानना है कि हाइपोक्सेमिया के कारण हाइपोक्सिया होने की आशंका जरूर होती है। ऐसे में दोनों में अन्तर समझना आवश्यक है। हाइपोक्सेमिया की स्थिति में रक्त में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। इस तरह की समस्या आमतौर पर ऊंचाई वाले स्थानों पर देखने को मिलती है। वहीं अगर हाइपोक्सिया की बात करें तो यह शरीर के विभिन्न हिस्सों में रक्त प्रवाह सामान्य होने के बावजूद भी हो सकता है। यही कारण है कि इसमें बीमारी का निदान कर पाना काफी कठिन होता है।

जब तक इसके लक्षण न दिखने लगें तब तक बीमारी की पहचान नहीं हो पाती है। हां, जिन लोगों को क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी फेफड़ों से संबंधित बीमारियां हैं, उनमें हाइपोक्सिया का खतरा अधिक रहता है। फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम होने के परिणामस्वरूप भी हाइपोक्सिया हो सकता है। ऐसा होने के ​पीछे डॉक्टरों का मानना है कि इस स्थिति में शरीर के विभिन्न हिस्सों में कोशिकाओं और ऊतकों तक ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुंच नहीं पाता है। इसके अलावा पोषण की कमी और एनीमिया के कारण भी हाइपोक्सिया का खतरा रहता है। बच्चों से लेकर वयस्कों और उम्रदराज लोगों को भी यह समस्या हो सकती है। साल 2016 में क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजी एंड ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक निमोनिया से पीड़ित 135 बच्चों में से 40 फीसदी बच्चों में हाइपोक्सिया के लक्षण देखने को मिले।

इस लेख में हम हाइपोक्सिया के लक्षण, कारण, बचाव के तरीकों और इलाज के बारे में जानेंगे।

हाइपोक्सिया के प्रकार - Types of Hypoxia in hindi

अब तक किए गए शोध और अध्ययनों के मुताबिक हाइपोक्सिया चार प्रकार का होता है।

हाइपोक्सिक हाइपोक्सिया

यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें हवा में ऑक्सीजन की कमी के कारण रक्त में संतृप्त ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। इसके कारण शरीर के ऊतकों तक पर्याप्त ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं पहुंच पाता है। इस स्थिति को जर्नलाइज्ड हाइपोक्सिया के रूप में भी जाना जाता है।

एनेमिक हाइपोक्सिया

ऑक्सीजन युक्त हीमोग्लोबिन की कमी का मतलब है कि शरीर के विभिन्न भागों में रक्त के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पा रहा है। इस कारण से हाइपोक्सिया की स्थिति विकसित हो सकती है। आमतौर पर इस तरह की स्थिति कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता जैसे कारणों से हो सकती है।

हिस्टोटॉक्सिक हाइपोक्सिया

इस स्थिति में ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुंचती तो है लेकिन ऊतकों के डैमेज होने अथवा ठीक से काम न कर पाने के कारण ऑक्सीजन का सही से उपयोग नहीं हो पाता है। कई रक्त-जनित रोग, हृदय रोग और फेफड़े से संबंधित स्थितियां हाइपोक्सिया के इस रूप से जुड़ी हुई होती हैं। बहुत अधिक शराब या नशीली दवाओं के सेवन के साथ-साथ साइनाइड पॉइजनिंग में भी हिस्टोटॉक्सिक हाइपोक्सिया का खतरा रहता है।

स्टॉगनेंट हाइपोक्सिया

इस प्रकार के हाइपोक्सिया में शरीर में रक्त की स्थिति या गुणवत्ता तो ठीक होती है, लेकिन रक्त का प्रवाह असमान या बाधित हो सकता है। ऐसी स्थितियां जो समय के साथ विकसित होती हैं और हार्ट अटैक या हार्ट फेलियर का कारण बन सकती हैं, उनके कारण भी रक्त परिसंचरण धीमा हो सकता है। इन कारणों से भी शरीर के विभिन्न हिस्सों में रक्त का वितरण अपर्याप्त हो सकता है, जिससे हाइपोक्सिया का खतरा होता है।

उपरोक्त चारों प्रकारों के अलावा हाइपोक्सिया का एक खतरनाक रूप एनोक्सिया भी होता है। इस स्थिति में शरीर के ऊतकों और कोशिकाओं में ऑक्सीजन बिल्कुल भी शेष नहीं बचता है। यह स्थिति कई बार जानलेवा भी हो सकती है।

हैप्पी हाइपोक्सिया या साइलेंट हाइपोक्सिया

उपरोक्त पक्तियों में कई बार फेफड़ों और श्वसन रोग का जिक्र किया गया है। कोविड-19 भी चूंकि श्वसन से संबंधित रोग है, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसमें भी हाइपोक्सिया का खतरा बढ़ जाता है? इसका जवाब है हां। विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से कोविड-19 ने कई स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों को जन्म दिया है, उसी तरह कोविड काल में हाइपोक्सिया का एक रूप हैप्पी हाइपोक्सिया भी सामने आया है। इसे साइलेंट हाइपोक्सिया के नाम से भी जाना जाता है।

हैप्पी हाइपोक्सिया एक अजीबोगरीब स्थिति है जिसमें कोविड-19 के मरीज के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा आश्चर्यजनक रूप से कम हो जाती है। हालांकि, मरीज में न तो इसके कोई लक्षण दिखते हैं और न इसके चलते उसे सांस लेने में कोई कठिनाई होती है। आमतौर पर हाइपोक्सिया या हाइपोक्सेमिया के मामलों में बीमारी के लक्षण शुरू होते ही मरीज को सांस की तकलीफ (जिसे डिस्पेनिया भी कहा जाता है) होने लगती है। हालांकि, कोविड-19 में हैप्पी हाइपोक्सिया वाले मरीजों को ऐसी दिक्कत तब तक नहीं आती है जब तक कि उनके रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा खतरनाक रूप से कम न हो जाए।

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हाइपोक्सिया के लक्षण - Hypoxia symptoms in hindi

शरीर में कई प्रकार के बदलावों और लक्षणों के आधार पर हाइपोक्सिया की पहचान की जा सकती है। इसके संभावित लक्षण निम्न हो सकते हैं।

हाइपोक्सिया के रोगियों में लक्षण भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। कई बार एक व्यक्ति में उपरोक्त में से एक या एक से अधिक लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

हाइपोक्सिया के कारण - Hypoxia causes in hindi

विभिन्न प्रकार के हाइपोक्सिया के कारण भी भिन्न हो सकते हैं

  • हाइपोक्सिक होने का मुख्य कारण वायुमंडलीय ऑक्सीजन की कमी होता है। आमतौर पर ऐसी स्थिति धरती से बहुत ऊंचाई वाले पहाड़ों पर जाने, विमान के पायलटों या गहरे समुद्र में उतरने वाले गोताखोरों को हो सकती है। हाइपोक्सिया का यह सामान्य रूप है। जिन लोगों को कार्डियोपल्मोनरी बीमारियों की शिकायत होती है उनमें भी इसका खतरा अधिक हो जाता है। फेफड़े द्वारा रक्त में ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में असमर्थता के कारण इस प्रकार की समस्या देखने को मिलती है।
  • समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में भी हाइपोक्सिया की समस्या हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्भ में उनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं। जिन शिशुओं का जन्म 37 सप्ताह के पहले हो जाता है, उसे प्रीटर्म बर्थ के रूप में देखा जाता है।
  • कोविड-19 रोगियों में भी हाइपोक्सिया का एक रूप साइलेंट हाइपोक्सिया या हैप्पी हाइपोक्सिया देखा जा सकता है। हालांकि, इसके लक्षण तब तक नहीं दिखते हैं जब तक कि रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा में आश्चर्यजनक रूप से कमी न आ जाए।
  • कई सारी ऐसी स्थितियां जिनमें रक्त में हीमोग्लोबिन, ऑक्सीजन के अलावा अन्य अणुओं के साथ बंधन बनाता है, इस कारण से एनीमिक हाइपोक्सिया के होने का खतरा रहता है। कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता इसका एक उदाहरण है।
  • स्टॉगनेंट हाइपोक्सिया, मुख्य रूप से कोशिकाओं और ऊतकों में रक्त की दोषपूर्ण आपूर्ति के कारण होता है। इसके चलते हृदय की बीमारियों या अचानक हार्ट फेल होने का भी खतरा रहता है। इसके अलावा ऐसी सभी स्थितियां जिनके कारण रक्त का सामान्य परिसंचरण प्रभावित होता है, वह भी स्टॉगनेंट हाइपोक्सिया को जन्म दे सकती हैं।

हाइपोक्सिया से बचाव के तरीके - Prevention of Hypoxia in hindi

सामान्य रूप से श्वसन संबंधी बीमारियों जैसे निमोनिया, अस्थमा या सीओपीडी के कारण हाइपोक्सिया ट्रिगर हो सकता है। उपरोक्त बताए गए लक्षणों की पहचान करके इसे गंभीर स्थिति में बदलने से रोका जा सकता है। जिन लोगों को सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं हैं उन्हें अपने पास हमेशा एक इनहेलर और अन्य दवाइयां रखना चाहिए, जिससे सांस की दिक्कत को तुरंत दूर किया जा सके।

इसके अलावा जीवनशैली में बदलाव करना भी बहुत आवश्यक होता है। पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार के सेवन के साथ सप्ताह में कम से कम 150 मिनट के हल्के से मध्यम स्तर के व्यायाम करके आप कई सारी परेशानियों को दूर कर सकते हैं। ऐसा करने से फेफड़ों के ऊतकों को मजबूती मिलती है जिसके चलते वह अधिक ऑक्सीजन प्राप्त कर पाते हैं। इसके अलावा यदि आपको अस्थमा या श्वसन संबंधी समस्याएं हैं तो हमेशा अपने परिवेश से अवगत रहना चाहिए। उन स्थानों से दूर रहना चाहिए, जहां से इस तरह की समस्याएं बड़ा रूप ले सकती हों। प्रदूषित क्षेत्रों, वाहनों से निकलने वाले धुएं और एलर्जी का कारण बनने वाली अन्य स्थितियों में जाने से बचना चाहिए। शांत वातावरण में रहकर आप हाइपोक्सिया के संभावित खतरे से खुद को सुरक्षित रख सकते हैं।

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हाइपोक्सिया का निदान - Diagnosis of Hypoxia in hindi

हाइपोक्सिया का निदान काफी आसान होता है। छोटे से और आसानी से उपलब्ध पल्स ऑक्सीमीटर की सहायता से बीमारी का पता लगाया जा सकता है। इस मशीन में बस उंगली की नोक को सेट करना होता है। इसी की मदद से यह उपकरण रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बता देती है। रक्त में ऑक्सीजन की रीडिंग 94 फीसदी से ऊपर होने पर इसे पर्याप्त माना जाता है, लेकिन इससे कम मात्रा की स्थिति को गंभीरता से लेने की आवश्यकता होती है। हालांकि, यहां ध्यान रखना होगा कि मधुमेह जैसे कुछ रोगों से पीड़ित लोगों में पल्स ऑक्सीमीटर प्रभावी नहीं होता है।

यदि किसी व्यक्ति में ऑक्सीजन की मात्रा 92 फीसदी से कम हो तो उसे आपातकालीन चिकित्सा की आवश्यकता होती है। यदि आपको मधुमेह या उच्च रक्तचाप की शिकायत है तो लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहते हुए रक्त में ऑक्सीजन के स्तर की जांच कराते रहना चाहिए।

इन माध्यमों के अलावा फेफड़ों की स्थिति जानने के लिए एक्स-रे कराने की आवश्यकता होती है। शरीर में ऑक्सीजन की कमी को जानने के लिए डॉक्टर कई बार पल्मोनरी फ़ंक्शन टेस्ट कराने की भी सलाह देते हैं। यदि ऑक्सीजन की कमी का कारण विषाक्त गैसों के संपर्क में आना है तो इसके लिए कुछ और परीक्षण कराए जा सकते हैं।

हाइपोक्सिया का इलाज - Treatmnet of Hypoxia in hindi

हाइपोक्सिया के इलाज में डॉक्टरों की सबसे पहले कोशिश होती है कि शरीर में ऑक्सीजन की कमी को दूर किया जाए। इसके लिए कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाती है। इसके लिए अस्पतालों में ऑक्सीजन थेरेपी, वेंटिलेटर, ईसीएमओ या एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजिनेशन का प्रयोग किया जाता है।

आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करने वाली अंतर्निहित समस्याओं के कारण हाइपोक्सिया होता है। ऐसे में प्राथमिक कोशिशों में श्वसन क्रिया को सामान्य करना शामिल होता है।

  • अस्पताल में मरीज के पहुंचते ही उसे सबसे पहले कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन दिया जाता है, जिससे श्वसन क्रिया को सामान्य किया जा सके। इसके साथ ही अंगों को खराब होने से बचाया जा सके।
  • इसके बाद रोगी की स्थिति का आकलन करके डॉक्टर यह जानने की कोशिश करते हैं कि रोगी को वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत है या नहीं?
  • अस्थमा या सीओपीडी के मामले में इनहेलर्स का उपयोग भी हाइपोक्सिया से पीड़ित रोगी की स्थिति में सुधार करने में प्रभावी हो सकता है।