परिचय
हुकवर्म एक प्रकार का परजीवी होता है। जो जिव दूसरे जिवित प्राणियों के शरीर में जीवित रहते हैं उन्हें परजीवी (पैरासाइट) कहा जाता है। ये किसी होस्ट (किसी जीवित शरीर में रहना) के बिना नहीं रह पाते और ना ही बढ़ पाते हैं। इसी वजह से बहुत ही कम मामलों में परजीवी अपने होस्ट को मारते हैं, लेकिन ये रोग फैला देते हैं जो जीवन के लिए भी घातक हो सकता है। हुकवर्म मुख्य रूप से फेफड़े, छोटी आंत व त्वचा को प्रभावित करते हैं।
मनुष्य हुकवर्म लार्वा के माध्यम से इसके संपर्क में आता है, यह लार्वा मल से दूषित मिट्टी में पाया जाता है। हुकवर्म ज्यादातर नम मिट्टी व गर्म मौसम मे होता है। जो लोग मल से दूषित मिट्टी में नंगे पैर या साधारण चप्पल पहन कर चलते हैं, उनको इन्फेक्शन होने का जोखिम अधिक रहता है। कुछ लोग हैं जिनमें इसके जोखिम अधिक रहते हैं जैसे जहां पर यह इन्फेक्शन अधिक हो वहां से स्थायी निवास, यात्राएं करने वाले लोग और पैदल सेना आदि।
हुकवर्म से ग्रस्त लोगों में उस जगह पर खुजलीदार चकत्ता बन जाता है जहां पर लार्वा त्वचा के अंदर घुसता है। इसके अलावा हुकवर्म होने पर बुखार, खांसी, घरघराहट, पेट दर्द, भूख कम लगना और दस्त लगना आदि शामिल हो सकता है। हुकवर्म की जांच उसके लक्षणों के आधार पर ही की जाती है। इसके अलावा इसका परीक्षण करने के लिए खून टेस्ट किया जाता है और स्टूल टेस्ट किया जाता है जिसमें परजीवियों के अंडों का पता लगाया जाता है।
इसकी रोकथाम करने के लिए कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है जैसे ऐसे क्षेत्रों में नंगे पैर ना चलना जहां पर जानवरों के मल पड़े हों, स्वच्छ पानी पीना और घर से बाहर निकलने के लिए दस्ताने व जुराबें आदि पहन लेना आदि।
इसके इलाज में हुकवर्म से संबंधित पोषक तत्वों की कमी के लिए एल्बेंडाजॉल व मेबेंडाजॉल दवाएं दी जाती हैं। हुकवर्म इन्फेक्शन से कई जटिलताएं पैदा हो जाती हैं जिनमें पोषक तत्वों की कमी शामिल है। इस स्थिति को जलोदर कहा जाता है, जिसमें पेट में द्रव जमा होने लग जाता है।
(और पढ़ें - पोषक तत्व के चार्ट)