हेपेटाइटिस डी को हेपेटाइटिस डेल्टा वायरस के नाम से भी जाना जाता है। इस संक्रमण के कारण लिवर में सूजन आ जाती है। सूजन के कारण लिवर के कार्य प्रभावित हो सकते हैं, जिसके कारण लिवर से संबंधित दीर्घकालिक समस्याएं जैसे लिवर स्कैरिंग या कैंसर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हेपेटाइटिस डी वायरस (एचडीवी) के कारण इस प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं।
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हेपेटाइटिस कई प्रकार का हो सकता है जैसे हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, हेपेटाइटिस ई आदि। हेपेटाइटिस डी का खतरा आमतौर पर उन्ही लोगों को होता है जिन्हें पहले हेपेटाइटिस बी का संक्रमण हो चुका हो। हेपेटाइटिस डी, एक्यूट या क्रोनिक यानी लंबे समय तक रहने वाली समस्या हो सकती है। एक्यूट हेपेटाइटिस डी, अचानक होता है और आमतौर पर इसके लक्षण भी अधिक गंभीर हो सकते हैं। यह अपने आप ठीक भी हो सकता है। हालांकि, यदि संक्रमण का असर छह महीने या उससे अधिक समय तक रहता है, तो इस स्थिति को क्रोनिक हेपेटाइटिस डी कहा जा सकता है। संक्रमण का दीर्घकालिक रूप समय के साथ धीरे-धीरे विकसित होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इसमें लक्षणों के नजर आने से पहले वायरस कई महीनों तक शरीर में मौजूद हो सकता है। जैसे-जैसे क्रोनिक हेपेटाइटिस डी बढ़ता है, उसकी जटिलताएं भी बढ़ती जाती हैं।
हेपेटाइटिस डी के लिए वर्तमान में कोई इलाज या टीका नहीं है। हालांकि, जिन लोगों को पहले हेपेटाइटिस बी संक्रमण नहीं हुआ हो उनमें इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। यदि समय रहते हेपेटाइटिस डी के लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो रोगी को लिवर खराब होने से बचाया जा सकता है।
आज इस लेख में आप हेपेटाइटिस डी के लक्षण, कारण और इसके इलाज के बारे में जानेंगे -
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