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मरीज की प्रोफाइल, मेडिकल हिस्ट्री और क्लिनिकल जांच के आधार पर डॉक्टर हाथ, पैर और मुंह की बीमारी को डायग्नोज कर सकते हैं। इसके लिए आमतौर पर किसी तरह की जांच-पड़ताल की जरूरत नहीं होती। वायरस को अलग करके उसकी पहचान करने के लिए गला, स्किन के घाव या रेक्टम से स्वैब के जरिए सैंपल लिए जाते हैं। इसके अलावा संक्रमित मरीज के फीकल यानी मल की भी जांच करवायी जाती है। (कई बार एक से ज्यादा सैंपल की जरूरत पड़ सकती है क्योंकि हो सकता है कभी मलत्याग के दौरान उसमें वायरस मौजूद न हो)। पॉलिमर्स चेन रिऐक्शन (पीसीआर) की मदद से डॉक्टर को एंटेरोवायरस के सबटाइप की पहचान करने में मदद मिलती है और यह बीमारी फैलाने वाले वायरस की जांच करने का सबसे बेस्ट तरीका है। हालांकि, पीसीआर को केवल दुर्लभ मामलों में ही इस्तेमाल किया जाता है।
वैसे तो ज्यादातर मरीज इस बीमारी से पूरी तरह से रिकवर हो जाते हैं। बीमारी के क्लिनिकल लक्षण 3 से 4 दिन में बेहतर होने लगते हैं, तो वहीं त्वचा और मुंह में होने वाले घाव एक से 2 हफ्ते के अंदर पूरी तरह से गायब हो जाते हैं।
अगर कोई गर्भवती महिला हैंड, फुट और माउथ डिजीज से पीड़ित किसी मरीज के संपर्क में आती है तो घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चे में इस बीमारी की वजह से कोई जटिलता उत्पन्न नहीं होती है। हालांकि, अगर डिलिवरी डेट से 3 सप्ताह पहले किसी गर्भवती महिला को हाथ, पैर और मुंह की बीमारी हो जाती है तो उन्हें तुरंत किसी स्पेशलिस्ट डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए क्योंकि इस दौरान गर्भ में पल रहे बच्चे में वायरस पहुंचने का खतरा हो सकता है। वैसे तो ज्यादातर नवजात बच्चों में इस बीमारी के हल्के लक्षण ही दिखते हैं, लेकिन कई बार गंभीर इंफेक्शन भी हो सकता है।