जठरांत्र में रक्तस्राव होना क्या है?
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) रक्तस्राव एक गंभीर लक्षण है जो आपके पाचन तंत्र में होता है। इसको ही जठरांत्र में रक्तस्राव कहा जाता है। आपके पाचन तंत्र में विभिन्न अंग होते हैं, जिसमें एसोफैगस, पेट, डुओडेनम (पाचनांत्र) के साथ छोटी आंत, बड़ी आंत या कोलन, मलाशय और गुदा को शामिल किया जाता है।
इनमें से किसी भी अंग में जठरांत्र रक्तस्राव हो सकता है। यदि रक्तस्राव आपके एसोफैगस, पेट या छोटी आंत (डुओडेनम) के प्रारंभिक भाग में होता है, तो इसे ऊपरी जठरांत्र में रक्तस्राव कहा जाता है। निचली छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय, या गुदा में रक्तस्राव को निचले जठरांत्र में रक्तस्राव कहा जाता है।
रक्तस्राव की मात्रा कम या अधिक हो सकती है। कुछ मामलों में, बहुत कम रक्तस्त्राव होता है, जिसका केवल मल परीक्षण से पता लगाया जाता है।
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जठरांत्र में रक्तस्राव के लक्षण क्या हैं?
कम समय के लिए होने वाली गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ब्लिडिंग या जठरांत्र में रक्तस्राव के शुरुआती लक्षण खून की उल्टी, मल में खून आने या काले रंग का मल, आदि होते हैं। पेट में रक्तस्राव से निकला खून कॉफी की तरह दिखता है। जठरांत्र में रक्तस्राव से जुड़े लक्षणों में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है:
- थकान (और पढ़ें - थकान दूर करने के लिए क्या खाएं)
- कमजोरी
- सांस की तकलीफ
- पेट दर्द (और पढ़ें - पेट दर्द दूर करने के उपाय)
- त्वचा में पीलापन
- खून की उल्टी, आमतौर पर ऊपरी जठरांत्र रक्तस्राव में होना।
- मैरून रंग का मल होना, ऐसा ऊपरी या निचले जठरांत्र से तेज रक्तस्राव के कारण हो सकता है।
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जठरांत्र में रक्तस्राव क्यों होता है?
जठरांत्र में रक्तस्राव कोई बीमारी नहीं है, बल्कि बीमारी का एक लक्षण है। जठरांत्र में रक्तस्राव के कई संभावित कारण हो सकते हैं, जिनमें बवासीर, पेप्टिक अल्सर, एसोफैगस फटना या सूजन, डाइवर्टिकुलोसिस और डायविटिक्युलिटिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोन बीमारी, कोलोनीक पॉलीप्स या कोलन, पेट या एसोफैगस में कैंसर शामिल हैं।
जठरांत्र में रक्तस्राव के कारण का पता करने के लिए अक्सर एंडोस्कोपी परीक्षण किया जाता है। इसमें जठरांत्र की जांच के लिए मुंह या गुदा के माध्यम से एक लचीला उपकरण उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कोलोनोस्कोपी नामक एंडोस्कोपी के अन्य प्रकार से बड़ी आंत मौजूदा स्थिति की जांच की जाती है।
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जठरांत्र में रक्तस्राव का इलाज कैसे होता है?
आपके डॉक्टर एक एंडोस्कोप, कोलोनोस्कोप या सिग्मोइडोस्कोपी के माध्यम से उपकरण डाल कर जठरांत्र में रक्तस्राव की जगह पर दवाओं को इंजेक्ट करते हैं। रक्तस्राव वाली जगह और आस-पास के ऊतकों का इलाज हीट प्रणाली, विद्युत प्रवाह, या लेजर से करते हैं। इसके बाद रक्तस्राव वाली रक्त नलियों को एक बैंड या क्लिप से बंद कर देते हैं।
एंजियोग्राम के दौरान, रेडियोलॉजिस्ट (डॉक्टर) कुछ प्रकार के रक्तस्राव को रोकने के लिए दवाइयों या अन्य सामग्रियों को रक्त वाहिकाओं में इंजेक्ट कर सकता है। जब किसी व्यक्ति को गंभीर रक्तस्राव होता है या रक्तस्राव बंद नहीं होता है, तो खून बहने से रोकने के लिए लेप्रोस्कोपी या लैपरोटोमी नामक सर्जरी करने की आवश्यकता हो सकती है।
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