मेंटल हेल्थकेयर में इन दिनों गेमिंग डिसऑर्डर अहम मुद्दा बन चुका है. इसमें मोबाइल व ऑनलाइन गेमिंग शामिल है. गेमिंग डिसऑर्डर उस समय माना जाता है, जब किसी को तकरीबन 1 साल तक एक ही पैटर्न में सारे जरूरी काम छोड़कर गेम खेलने की आदत पड़ जाए. गेमिंग डिसऑर्डर होने पर मरीज हर वक्त गेम के बारे में सोचता है. अगर गेम नहीं खेल पा रहा है, तो चिड़चिड़ा होना और खुद को अच्छा महसूस करवाने के लिए गेम खेलना जैसे लक्षण दिख सकते हैं. गेमिंग डिसऑर्डर के इलाज के लिए थेरेपी दी जाती हैं और अगर थेरेपी से काम नहीं बनता है, तो दवाइयां भी दी जा सकती हैं.

आज इस लेख में आप गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण व इलाज के बारे में विस्तार से जानेंगे -

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गेमिंग डिसऑर्डर क्या है? - What is Gaming Disorder in Hindi?

गेमिंग डिसऑर्डर को इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज (ICD-11) में गेमिंग बिहेवियर (डिजिटल गेमिंग या वीडियो गेमिंग) के रूप में वर्णित किया गया है. गेमिंग डिसऑर्डर को एक नेगेटिव बिहेवियर पैटर्न के रूप में देखा जाता है. गेमिंग डिसऑर्डर होने पर मरीज अपनी दिनभर की एक्टिविटीज को भूलकर सिर्फ गेम खेलने या उसके बारे में सोचने पर ही फोकस करता रहता है. यदि मरीज का ये बिहेवियर लगभग 12 महीने तक एक जैसा रहता है, तो इसे गेमिंग डिसऑर्डर कहा जाता है. इस कारण मरीज की पर्सनल लाइफ, फैमिली लाइफ व सोशल लाइफ पर नेगेटिव प्रभाव पड़ता है.

गेमिंग डिसऑर्डर पर हुए एपिडेमियोलॉजिकल के एक शोध के मुताबिक, दुनियाभर में 0.7%−27.5% लोग गेमिंग डिसऑर्डर की चपेट में हैं, खासतौर से युवक. कुछ शोधों के अनुसार, गेमिंग की आदत होने से कई मूड डिसऑर्डर जैसे – एंग्जाइटी डिसऑर्डरडिप्रेशन या स्ट्रेस भी बढ़ सकता है. इसके अलावा, जो लोग गेमिंग के कारण लंबे समय तक फीजिकली एक्टिव नहीं होते, उनमें मोटापेनींद की समस्या और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है.

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गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण - Gaming Disorder Symptoms in Hindi

गेमिंग डिसऑर्डर होने पर कई लक्षण दिख सकते हैं, जैसे - हमेशा गेम खेलने के बारे में सोचते रहना या लोगों को अपने गेम खेलने की आदत के बारे में झूठ बोलना, गेम न खेलने के कारण बुरा लगना इत्यादि. आइए, गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षणों के बारे में विस्तार से जानते हैं -

ज्यादातर समय गेम में

अगर कोई गेम के लिए जरूरत से ज्यादा समय निकाल रहा है या जब गेम नहीं खेल रहा है, तो सिर्फ गेम के बारे में ही सोच रहा है, तो ये गेमिंग डिसऑर्डर का अहम लक्षण हो सकता है.

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गेम न खेलने पर मूड खराब

यदि किसी को गेम खेलने का समय नहीं मिल रहा या किसी अन्य कारण से गेम नहीं खेल पा रहा है, तो मूड खराब हो सकता है. इससे वह व्यक्ति चिड़चिड़ा हो सकता है, गुस्सा करना शुरू कर सकता है या उदास हो सकता है. ये सभी गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण हैं.

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खुश होने को गेम खेलना

जब भी खुद को अच्छा महसूस करवाना हो, तो गेम खेलने बैठ जाना. अपनी सारी दिनभर की जरूरी एक्टिविटीज को भूलकर गेम खेलना, गेम खेलने के दौरान हर बार जरूरी काम करना भूल जाना भी गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण हैं.

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गेम बीच में न छोड़ना

अपने दिनभर के जरूरी काम निपटाने के लिए गेम को बीच में बंद न करना या गेम खेलते हुए टाइम का अहसास न होना, गेम के दौरान किसी भी तरह की रुकावट पसंद न करना, अपनी फेवरेट एक्टिविटीज छोड़कर सिर्फ एक ही गेम खेलने रहना या फिर चाहकर भी गेम बंद न कर पाना सभी गेमिंग डिसऑर्डर के लक्षण है. इसके अलावा, कितनी देर से गेम खेल रहे हैं या गेम खेलने की आदत के बारे में झूठ बोलना भी गेमिंग डिसऑर्डर ही है.

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काम पर ध्यान नहीं

गेमिंग हर वक्त दिमाग में रहने के कारण काम पर फोकस न कर पाना, गेमिंग के कारण होमवर्क कंप्लीट न कर पाना, स्टडी पर फोकस न करना या पढ़ने में समस्याएं होना, कोई भी काम करते हुए समस्या होना भी गेमिंग डिसऑर्डर है. साथ ही आपकी सोशल, फैमिली और निजी लाइफ प्रभावित होना. इन सभी समस्याओं के बावजूद गेम खेलते रहना गेमिंग डिसऑर्डर ही है.

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एक ही पैर्टन फॉलो करना

हर कोई जो बहुत ज्यादा गेम खेलता है, उसे गेमिंग डिसऑर्डर की समस्या नहीं होती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऐसे लोगों को दोष देना खतरनाक हो सकता है, जो गेमिंग को लेकर बहुत एक्साइटेड होते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जिस व्यक्ति को गेमिंग डिसऑर्डर होता है, वो 12 महीने तक एक ही पैर्टन में व्यवहार करता है, जैसे - गेमिंग हैबिट पर अपना कंट्रोल खो देना, हमेशा गेमिंग को प्राथमिकता देना, नकारात्मक प्रभाव पड़ने पर भी गेमिंग खेलने के पैर्टन में कोई बदलाव न आना.

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गेमिंग डिसऑर्डर का इलाज - Gaming Disorder Treatment in Hindi

ज्यादा गेमिंग की आदत किसी व्यक्ति की डेली लाइफ और कामकाज पर बुरा असर डाल सकती है. इसलिए, गेमिंग डिसऑर्डर वाले लोगों को समय पर ट्रीटमेंट देना जरूरी है. हालांकि, इसका कोई पुख्ता इलाज नहीं है, लेकिन अन्य एडिक्टिव बिहेवियर की तरह ही इसका इलाज किया जा सकता है. गेमिंग डिसऑर्डर के इलाज के दौरान साइको बिहेवियरल या ड्रग ट्रीटमेंट दिया जाता है. आइए, गेमिंग डिसऑर्डर के इलाज के बारे में विस्तार से जानते हैं -

साइकोएजुकेशन

गेमिंग बिहेवियर और मेंटल हेल्थ पर प्रभाव के बारे में मरीज को एक्सपर्ट द्वारा समझाया जाता है. मरीज को काउंसलिंग के जरिए यह अहसास दिलाने का प्रयास किया जाता है कि गेमिंग डिसऑर्डर के चलते उसके जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ रहा है.

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लक्षणों को कम करना

गेमिंग डिसऑर्डर होने पर एडिक्शन के लक्षणों को कम करने पर काम किया जाता है. इसके लिए मरीज को ऑनलाइन या मोबाइल गेम खेलने की इच्छा को कंट्रोल करने के लिए उस पर फोकस करने के लिए कहा जाता है. साथ ही इस समस्या से जूझने के लिए प्रॉब्लम सॉल्विंग तकनीक भी बताई जाती हैं.

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इंट्रापर्सनल

इसके जरिए गेमिंग डिसऑर्डर के मरीजों को खुद की क्षमता को फिर से पहचानने और अपना आत्मविश्वास वापस लाने का अभ्यास कराया जाता है.

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इंटरपर्सनल

इसमें मरीज को यह सिखाया जाता है कि कैसे दूसरों के साथ व्यवहार करना है, उनके साथ कैसे बात करनी है और अन्य लोगों के साथ कैसे मिलना है.

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फैमिली इंटरवेंशन

अगर गेमिंग डिसऑर्डर के चलते पारिवारिक रिश्तों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा हो, तो मरीज की थेरेपी के लिए परिवार के सदस्यों को भी शामिल किया जा सकता है. इसके अलावा, ग्रुप थेरेपी या कंबाइन थेरेपी भी दी जा सकती है.

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लाइफस्टाइल में बदलाव

गेमिंग डिसऑर्डर से छुटकारा पाने के लिए मरीज को अपनी स्किल्स और एबिलिटीज को पहचानना जरूरी है. इसके लिए उसे अपने रोजाना के लक्ष्य निर्धारित करके दूसरी एक्टिविटीज या अपनी फेवरेट एक्टिविटीज में व्यस्त होने के लिए प्रेरित किया जाता है.

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दवाओं से इलाज

गेमिंग के कारण डिप्रेशन, स्ट्रेस या एंजाइटी डिसऑर्डर होने पर उसका दवाओं से भी इलाज किया जा सकता है. इसके अलावा, गेमिंग डिसऑर्डर के लिए कुछ अन्य ड्रग थेरेपी (ज्यादातर एंटीडिप्रेसेंट) भी दी जाती हैं. साथ ही लक्षणों को देखते हुए कुछ अन्य दवाएं जैसे बूप्रोपियोनएसिटैलोप्रैममिथाइलफेनाडेट व नाल्ट्रेक्सोन दी जा सकती हैं.

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सारांश – Summary

गेमिंग डिसऑर्डर के दौरान व्यक्ति को हर समय गेम खेलने या उसके बारे में सोचने की आदत पड़ जाती है. इसके चलते डेली लाइफ, रिलेशनशिप और काम सभी कुछ इफेक्ट हो सकता है. यदि 1 साल तक मरीज का यही बिहेवियर रहता है, तो उसे गेमिंग डिसऑर्डर कहा जाता है. इसके लक्षणों में दिनभर गेम खेलना, उसके बारे में सोचना, गेम खेलने न दिए जाने पर बुरा लगना, मूड खराब हो जाना सभी गेमिंग डिसऑर्डर है. इसके इलाज के लिए कई तरह की थेरेपी और दवाएं दी सकती हैं. आमतौर पर डॉक्टर लक्षणों के आधार पर ही ट्रीटमेंट निर्धारित करते हैं. 

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