फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम के अन्य नाम
- Dilantin एम्ब्रियोपैथी
- फ़िनाइटोइन एम्ब्रियोपैथी
- Hydantoin एम्ब्रियोपैथी
फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम मानसिक और शारीरिक जन्म दोषों का एक विशिष्ट पैटर्न है, जो गर्भावस्था के दौरान एंटीकन्वल्सेंट्स (दौरे रोकने वाली) दवा फेनीटोइन (Dilantin) के उपयोग की वजह से होता है। इससे प्रभावित शिशुओं में इसकी गंभीरता और विभिन्नता की आसामंताए काफी अलग-अलग होती हैं। हालांकि लक्षणों में मुख्य रूप से चेहरे व खोपड़ी में विकृति, शारीरिक विकास की कमी, पैरों व हाथों की उंगलियों और अंगूठो के नाखूनों का अंदर की तरफ विकास होना या धीमी गति से विकास होना आदि शामिल हैं। इस रोग से ग्रस्त अन्य लक्षण हैं फटे और झुके होंठ, शिशु की उम्र और लिंग के अनुसार सिर के आकार का छोटा होना और विशेष रूप से उंगलियों व हाथों की हड्डियों में विकृति होना। भ्रूण के कारण फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम के जोखिम को अभी तक पूरी तरह से नहीं समझा जा सका है, लेकिन केवल 5% से 10% मामलों में ही भ्रूण फेनीटोइन के संपर्क में आने के कारण इस विकार से ग्रस्त हुए हैं।
फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम के लक्षण
फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम के विशिष्ट और शारीरिक लक्षण हर शिशु में बेहद अलग-अलग होते हैं। जन्म के दौरान लक्षणों को शायद पहचाना न जा सकें, लेकिन शिशु के विकास के साथ-साथ यह सामने आने लगते हैं।
प्रभावित शिशु जन्म के समय वृद्धि की कमी के कारण आकर में छोटे हो सकते हैं। विकार की गंभीरता के अनुसार उसकी शारीरिक वृद्धि कम या अधिक हो सकती है और यह स्थिति नवजात शिशु में जारी रह सकती है।
चेहरे में कुछ विशिष्ट भिन्नताएं भी हो सकती हैं जैसे नाक चौड़ी या सपाट होना, आंखों का एक दूसरे से दूर होना (हाइपरटेलोरिज्म), भेंगापन, पलकें नीचे की तरफ झुक जाना, मुंह सामान्य से अधिक चौड़ा होना, कान संबंधी विकृति और माइक्रोसेलोफैली आदि। प्रभावित शिशुओं को अक्सर क्लेफ्ट पैलेट भी होता है, जिसमें ऊपरी होंठ और कुछ मामलों में तालु के बीच से दो भाग होते हैं, जिसमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसका होंठ कटा हुआ है।
कुछ शिशु और बच्चों के विकास में कमी के कारण शायद उन्हें कई चीजों को सीखने में समय लगे जैसे कि बैठना और घुटनों के बल चलना। प्रभावित बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं वैसे-वैसे उनके विकास की गति बेहतर होती जाती है, लेकिन अध्ययनों के अनुसार बच्चे विकास में अपने स्वस्थ भाई-बहनों से थोड़े पीछे रहते हैं। कुछ मामलों में हल्की बौद्धिक विकलांगता पाई गई है और कुछ अध्ययनों के अनुसार गर्भ में फेनीटोइन से प्रभावित हुए बच्चों को सीखने व समझने से संबंधित समस्याएं हो जाती हैं
फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम के अन्य लक्षणों में शामिल हैं-
- जन्मजात हृदय रोग
- व्यवहार संबंधी असामान्यताएं
- अति सक्रियता विकार
- ओकुलर दोष
- निकट दृष्टि दोष
- किडनी संबंधी असामान्यताएं
- अम्बिलिकल हर्निया
फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम के कारण
फ़िनाइटोइन जैसी दौरे रोकने वाली दवाओं के उपयोग से (जिन्हें अक्सर मिर्गी के दौरा पड़ने पर इस्तेमाल किया जाता है) गर्भ में पल रहे भ्रूण पर कई प्रभाव पड़ सकते हैं, जिसमें फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम भी शामिल है।
इस बात का अभी तक पता नहीं चल पाया है कि फेनीटोइन की कितनी मात्रा के कारण यह विकार विकसित होता है। फेनीटोइन को अक्सर अन्य दौरे की दवाओं के साथ दिया जाता है, जो विकार के विकास को प्रभावित कर सकते हैं। फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम का कारण जींस और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन भी हो सकता है।
चिकित्सकों के अनुसार कई मामलों में यह पाया गया है, कि मिथाइलनेटेट्राहाइड्रोफोलट रिडक्टेस जींस की म्यूटेशन से ग्रस्त महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशु को फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम का अधिक जोखिम होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इस जीन के प्रोटीन पदार्थ फिनेटोइन या उसके मेटाबॉलाइट्स को तोड़ने में (मेटाबॉलिज्म) अहम भूमिका निभाता है।
फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम का इलाज
फीटल हाइडेंटॉइन सिंड्रोम का इलाज उसके लक्षणों पर निर्भर करता है जो हर शिशु में अलग-अलग होते हैं। इलाज में कई विशेषज्ञों की टीम के प्रयासों की आवश्यकता पड़ सकती है। शिशु के इलाज की प्रक्रिया में मौखिक सर्जन, प्लास्टिक सर्जन, न्यूरोलॉजिस्ट, मनोवैज्ञानिक और अन्य कई विशेषज्ञ चिकित्सकों को एक साथ मिलकर काम करना पड़ सकता है।
प्रभावित शिशु को व्यावसायिक, शारीरिक और स्पीच थेरेपी से लाभ पहुंच सकता है। कई प्रकार की रिहेबिलिटेशन और बिहेवियरल थेरेपी भी इस स्थिति में काफी फायदेमंद रह सकती है। इसके अलावा इलाज में समाजिक या व्यावसायिक सेवाओं की जरूरत हो सकती है।
क्लेफ्ट पैलेट का इलाज करने के लिए सर्जिकल प्रक्रियाओं की आवश्यकता पड़ती है। आमतौर पर सर्जन होंठ को शिशु अवस्था के दौरान ही ठीक कर देते हैं। कुछ मामलों में शिशु के बड़े होने पर दूसरी सर्जरी की आवश्यकता होती है। मुंह के ऊपरी हिस्से में गैप को भरने के लिए सर्जरी या किसी कृत्रिम उपकरण (नकली अंग) का उपयोग किया जाता है जिसे खाली जगह में लगा दिया जाता है। सर्जिकल इलाज को कई चरणों में या एक ही बारी में किया जा सकता है, यह स्थिति के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है।