इसमें कोई शक नहीं कि हमारी दृष्टि यानी देखने की क्षमता, सबसे अहम ज्ञानेंद्रियों में से एक है। इंसान की आंखें जो उन्हें देखने में मदद करती हैं, उनका अंदरुनी कामकाज बेहद जटिल होता है और आंखों की संरचना भी बेहद पेचीदा होती है।
हम अपनी आंखों की तुलना डिजिटल कैमरे के साथ कर सकते हैं। कैमरे के लेंस की ही तरह आंखों की पुतली की जो सामने वाली घुमावदार सतह होती है जिसे कॉर्निया कहते हैं, वह रोशनी को केंद्रित करने में मदद करती है। आंखों का रंगीन हिस्सा जिसे आइरिस कहते हैं, वह कैमरे के शटर या डायफ्राम की तरह काम करता है और आंखों की पुतली या प्युपिल (रंगीन आइरिस के अंदर काले रंग का गोलाकार केंद्र कैमरे के अपर्चर यानी छिद्र की तरह काम करता है) के साइज को अडजस्ट करता है ताकि आंखों में प्रवेश करने वाली रोशनी की मात्रा को कंट्रोल किया जा सके और तस्वीर को बेहतर तरीके से देखने में मदद मिले। आंखों की पुतली के जरिए, रोशनी आंखों के पारदर्शी लेंस पर पड़ती है जो उसे और अधिक फोकस करती है। कॉर्निया और पारदर्शी लेंस द्वारा फोकस की गई रोशनी फिर रेटिना (आंखों की सबसे अंदरुनी सतह) पर पड़ती है जो इमेज सेंसर की तरह काम करता है और इस ऑप्टिकल यानी प्रकाश संबंधी तस्वीर को इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल में परिवर्तित कर देता है और ऑप्टिक तंत्रिका, ब्रेन में मौजूद विजुअल कॉर्टेक्स तक इस सिग्नल को लेकर जाता है जहां पर वह वस्तु क्या है उसकी व्याख्या की जाती है।
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आंखों का कैंसर एक असाधारण बीमारी है। प्राथमिक आई कैंसर जो आंखों में ही शुरू होता है उस कैंसर की तुलना में दुर्लभ है जो शरीर के किसी और अंग में शुरू होता है लेकिन फिर फैलते हुए आंखों तक पहुंच जाता है। वयस्कों में पाया जाने वाला आंखों के कैंसर का सबसे कॉमन रूप आइरिस, सिलिअरी बॉडी और कोरॉइड यानी रक्तक का मेलानोमा है जो हर साल करीब 10 लाख लोगों में से सिर्फ 5 लोगों में डायग्नोज होता है।
विस्तृत रूप से देखा जाए तो आंखों का कैंसर 2 तरह का होता है। पहला वो जो आंखों के अंदर मौजूद संरचनाओं में उत्पन्न होता है और दूसरा वो जो आसपास मौजूद सहयोगात्मक ऊत्तकों जैसे- पलकें आदि में होता है। अक्सर यह देखने में आता है कि आंखों का कैंसर सही समय पर डायग्नोज नहीं हो पाता क्योंकि इसमें मरीज को किसी तरह का दर्द महसूस नहीं होता है। व्यक्ति की देखने की क्षमता का धीरे-धीरे कमजोर होना ही इसका सामान्य लक्षण है। बाहरी संकेतों की बात करें तो इसमें आंखों की पुतलियों में उभार नजर आना और आंखों के आसपास मौजूद संरचनाओं में किसी तरह की गांठ दिखना शामिल है।
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आंखों के कैंसर को डायग्नोज करने के लिए ऑप्थैल्मोस्कोपिक परीक्षण, ब्लड टेस्ट और इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसका निश्चित इलाज या तो सर्जरी हो सकती है या फिर रेडियोथेरेपी। बेहतर नतीजे हासिल करने के लिए लेजर थेरेपी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर यह कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों तक न फैले तो रोग का निदान अच्छी तरह से हो सकता है।