एपिस्क्लेराइटिस - Episcleritis in Hindi

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October 30, 2020

October 30, 2020

एपिस्क्लेराइटिस
एपिस्क्लेराइटिस

एपिस्क्लेराइटिस क्या है?

एपिस्क्लेरा में होने वाली सूजन व लालिमा को एपिस्क्लेराइटिस कहा जाता है। एपिस्क्लेरा पारदर्शक ऊतकों की एक पतली परत है, तो आंख के सफेद हिस्से को ढक कर रखती है। एपिस्क्लेरा आंख की पुतली की सबसे ऊपरी परत (स्क्लेरा) और त्वचा के बीच मौजूद होती है।

जब एपिस्क्लेरा में मौजूद रक्त वाहिकाएं किसी कारणवश क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो उनसे निकलने वाले खून के कारण आंखों के सफेद हिस्से में रक्त दिखाई देता है। एपिस्क्लेराइटिस आमतौर पर सिर्फ एक आंख में ही होता है। हालांकि, यह एक साथ दोनों आंखों में भी हो सकता है। एपिस्क्लेराइटिस में होने वाली सूजन व लालिमा आमतौर पर आंख आने (कंजक्टिवाइटिस) जैसी स्थिति लगती है। लेकिन इस दौरान आंख से किसी प्रकार का चिपचिपा पदार्थ नहीं निकलता है।

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एपिस्क्लेराइटिस के प्रकार - Types of Episcleritis in Hindi

एपिस्क्लेराइटिस आमतौर पर दो प्रकार का होता है, जो निम्न हैं -

  • सिंपल एपिस्क्लेराइटिस -
    ​यह सबसे आम प्रकार का एपिस्क्लेराइटिस है, जिसके अन्य दो उप प्रकार हैं -
    • सेक्टोरल - इसमें लालिमा आंख के किसी हिस्से में दिखाई देती है।
    • डिफ्यूज - इसमें लालिमा आंख के पूरे सफेद हिस्से में दिखाई देती है।
       
  • नोड्यूलर एपिस्क्लेराइटिस -
    इसमें आंख की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे दाने बनने लगते हैं। एपिस्क्लेराइटिस का यह प्रकार काफी परेशान कर देने वाली स्थिति पैदा कर सकता है।

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एपिस्क्लेराइटिस के लक्षण - Episcleritis Symptoms in Hindi

एपिस्क्लेराइटिस के क्या लक्षण हैं?

एक या दोनों आंखों में लालिमा या सूजन होना ही एपिस्क्लेराइटिस का सबसे प्रमुख लक्षण माना जाता है। हालांकि, कुछ लक्षण रोग के प्रकार और उसकी गंभीरता के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि एपिस्क्लेराइटिस के मुख्य दो प्रकार हैं और उनके अनुसार निम्न लक्षण अलग-अलग हो सकते  हैं -

  • सिंपल एपिस्क्लेराइटिस -
    इसमें बहुत ही कम मामलों में आंख में सूजन आती है या बहुत ही कम सूजन आती है, जबकि लालिमा भी आंख के किसी छोटे हिस्से में ही देखी जाती है।
     
  • नोड्यूलर एपिस्क्लेराइटिस -
    इसमें आंख के सफेद हिस्सों में फैली हुई लाल रक्त वाहिकाएं दिखने लगती हैं और साथ ही सफेद हिस्सों में छोटे-छोटे दाने भी बनने लग जाते हैं। नोड्यूलर एपिस्क्लेराइटिस में प्रभावित हिस्से में दर्द व अन्य तकलीफें महसूस होती हैं।

इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी हैं, जो एपिस्क्लेराइटिस से ग्रस्त लोगों में देखे जा सकते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -

ये लक्षण आमतौर पर आपकी दृष्टि को प्रभावित नहीं करते हैं। आमतौर पर ये लक्षण कुछ ही समय के लिए आते हैं और अपने आप धीरे-धीरे कम होकर गायब हो जाते हैं। एपिस्क्लेराइटिस की गंभीरता के अनुसार इसके लक्षण ठीक होने में एक हफ्ते से महीने तक का समय लग सकता है।

डॉक्टर को कब दिखाएं?

यदि आपकी आंख के सफेद हिस्से में लाल धारियां या निशान बन गए हैं, तो आपको डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए। इसके अलावा यदि आपको ऊपरोक्त में से कोई भी लक्षण महसूस हो रहा है या फिर किसी भी स्थिति में आपको संदेह है कि आपको एपिस्क्लेराइटिस हो सकता है, तो नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर (Ophthalmologist) से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए।

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एपिस्क्लेराइटिस के कारण - Episcleritis Causes in Hindi

एपिस्क्लेराइटिस के क्या कारण हैं?

अभी तक विशेषज्ञों को एपिस्क्लेराइटिस के अंदरूनी व सटीक कारण का पता नहीं चल पाया है। इसलिए अधिकतर मामलों में एपिस्क्लेराइटिस के अंदरूनी कारण का पता नहीं चल पाता है। जबकि, कुछ कम मामलों में एपिस्क्लेराइटिस से ग्रस्त लोगों को कोई ऐसा रोग मिलता है, जो उनके पूरे शरीर को ही प्रभावित कर रहा होता है और इससे सिर्फ आंखों में ही नहीं बल्कि शरीर के अन्य कई हिस्सों में भी ये लक्षण देखे जा सकते हैं। इस स्थिति को सिस्टेमिक डिसऑर्डर (प्रणालीगत विकार) कहा जाता है। इनमें निम्न शामिल हो सकते हैं -

इसके अलावा एपिस्क्लेराइटिस के कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -

  • दवाएं जैसे टोपिरामेट और पैमिड्रोनेट
  • आंख या उसके आस-पास चोट लगना

एपिस्क्लेराइटिस होने का खतरा कब बढ़ता है?

कुछ कारक हैं, जो एपिस्क्लेराइटिस रोग होने के जोखिम को बढ़ाते हैं, इनमें निम्न को शामिल किया जाता है -

  • लिंग -
    एपिस्क्लेराइटिस रोग पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक देखा गया है।
     
  • उम्र -
    एपिस्क्लेराइटिस बच्चों को भी हो सकता है, लेकिन, यह 40 से 50 साल के वयस्कों में अधिक देखा जाता है।
     
  • संक्रमण -
    कुछ निश्चित प्रकार के बैक्टीरिया, फंगी या वायरस से होने वाले संक्रमण से भी एपिस्क्लेराइटिस हो सकता है। उदाहरण के लिए वेरिसेला नामक वायरस जो शिंगल्स का कारण बनता है, वह एपिस्क्लेराइटिस होने का कारण भी बन सकता है।
     
  • कैंसर -
    कुछ अत्यधिक दुर्लभ मामलों में एपिस्क्लेराइटिस टी-सेल ल्यूकेमिया और होजकिंग लिम्फोमा जैसे कैंसर से संबंधित भी हो सकता है।
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एपिस्क्लेराइटिस का परीक्षण - Diagnosis of Episcleritis in Hindi

एपिस्क्लेराइटिस का परीक्षण कैसे किया जाता है?

एपिस्क्लेराइटिस का परीक्षण नेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर यानि ऑफ्थैलमोलॉजिस्ट के द्वारा ही किया जाना चाहिए। परीक्षण के दौरान ऑफ्थैलमोलॉजिस्ट आंख की अच्छे से जांच करते हैं। जिसमें सबसे पहले आंख के रंग की जांच की जाती है यदि रंग लाल है तो एपिस्क्लेराइटिस और यदि लालिमा से अधिक बैंगनी या नीला दिखाई दे रहा है, तो यह स्क्लेराइटिस हो सकता है।

एपिस्क्लेराइटिस की पुष्टि करने के लिए डॉक्टर स्लिप लैंप परीक्षण भी कर सकते हैं। इसमें स्लिप नामक एक विशेष उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी मदद से डॉक्टर आपकी आंख के अगले हिस्से को 3डी में देख पाते हैं। स्लिप लैंप एक्जाम शुरू करने से पहले डॉक्टर कुछ आई ड्रॉप भी डाल सकते हैं, जिससे असामान्यताओं को देखने में थोड़ी आसानी रहती है।

एपिस्क्लेराइटिस का इलाज - Episcleritis Treatment in Hindi

एपिस्क्लेराइटिस का इलाज कैसे किया जाता है?

एपिस्क्लेराइटिस का इलाज करने से पहले उसके प्रकार का पता लगाना बहुत जरूरी होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सिंपल एपिस्क्लेराइटिस आमतौर पर 10 से 15 दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है। नोड्यूलर एपिस्क्लेराइटिस भी आमतौर पर अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन इसमें समय अपेक्षाकृत अधिक लगता है। हालांकि, मरीज को हो रहे लक्षणों को कम करने के लिए डॉक्टर कुछ दवाएं दे देते हैं।

उदाहरण के लिए यदि मरीज को आंख में जलन या अन्य तकलीफ हो रही है, तो डॉक्टर कुछ लुब्रिकेंटिंग दवाएं दे देते हैं, जिससे आंख में नमी रहती है। गंभीर लालिमा या सूजन के मामलों में डॉक्टर कुछ नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाएं दे सकते हैं, जैसे आइबुप्रोफेन। ये दवाएं आंख में डालने के लिए आई ड्रॉप के रूप में, लगाने के लिए क्रीम के रूप में और खाने के लिए टेबलेट के रूप में उपलब्ध होती हैं।

इसके अलावा डॉक्टर कुछ घरेलू उपायों के बारे में भी बता सकते हैं, जिनकी मदद से एपिस्क्लेराइटिस में होने वाली जलन व अन्य तकलीफों को कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए आंखों की ठंडी सिकाई से जलन व खुजली आदि को कम किया जा सकता है। इसके अलावा डॉक्टर आपको अधिक प्रकाश में रहने, धूल व मिट्टी आदि से दूर रहने और किसी भी प्रकार के केमिकल जैसे बॉडी स्प्रे आदि से दूर रहने की सलाह दे सकते हैं। क्योंकि ये कारक एपिस्क्लेराइटिस की स्थिति को गंभीर बना देते हैं और अपने आप से ठीक होने की प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है।

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